Guru bhakti kaise kare in hindi by jivandarshan

गुरू भक्ति कैसे करे पार्ट-3 (Guru bhakti kaise kare in hindi )

Guru bhakti kaise kare in hindi – सदगुरू के चरणों में बैठो तो अपना ज्ञान,अपना अहंकार छोड़कर बैठना है आपको कोरा कागज बन जाना है। जब तक मन में एक भी प्रश्न है तो श्रद्धा तथा विश्वास पैदा होना असंभव है ।

गुरू के प्रति पूर्ण समर्पण करे।(Guru bhakti kaise kare in hindi )

आपके तन,मन,धन सभी को गुरू को समर्पित करना है तभी गुरू के शक्तिपात से तुम्हारे अंदर जो बीज छुपा हुआ है वह शक्तिपात रूपी खाद पाकर प्रेम की भूमि में अंकुरित होगा।

तुम्हारे अन्दर जो बीज छुपा हुआ होगा वहीं वृक्ष बनेगा। गुरू की शक्ति तुम्हारे अन्दर छिपे बीज को अंकुरित करने का काम करेगी।

ध्यान रखना सदगुरू तुम्हे खाद व पानी देते है परन्तु आप जो होंगे वही बनोंगे ।

सदगुरू तुम्हे बदलने की कोशिश कभी नहीं करेंगे इसलिए कोई गुलाब,कोई कमल,तो कोई गेंदा का फुल बनेगा जो संभावनाएं आपमें छिपी हुई होंगी वहीं आप बनोगे।

जैसे ही सदगुरू की कृपा आप पर बरसेगी आपके सारे प्रश्न स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे तथा आध्यात्मिक ऊंचाईयों को छुना है तो सदगुरू को कभी शरीर मत मानना।

सदगुरू को आपने शरीर माना तो आपको गुरू तत्व का बोध होना कठिन है मैने पहले भी कहां है गुरू तो सबमें विघमान है

प्रत्येक व्यक्ति,प्रत्येक छोटे से छोटे जीव में वहीं विघमान है। यहां तक की शुन्य में भी वहीं है।

गुरू तत्व को सर्वत्र व्याप्त मानने पर सदगुरू का मार्गदर्शन आपको सर्वत्र प्राप्त होगा। उड़ते-उड़ते एक कागज के टुकड़े पर नजर पड़ेगी तो वह मार्गदर्शन करेगा ।

गुरू भक्ति क्या है 

कोई व्यक्ति चर्चा कर रहे हो उनकी आवाज आपके कानों में पड़ेगी तो वहां से आपको मार्गदर्शन प्राप्त हो जायेगा।

आपके आस-पास कोई भी घटना घटती है तो उस घटना के माध्यम से सदगुरू आपको संकेत करेंगे क्योंकि गुरू तत्व तो सर्वत्र व्याप्त है।

सदगुरू की कृपा प्राप्त होने पर आपका मन प्रेम से परिपूर्ण हो जायेगा।

टी.वी चालु करोगे तो वहां से मार्गदर्शन मिलेगा यहां तक कि आपको महसुस होगा की गुरू तत्व की इजाज़त के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता है।

गुरूजी के मिलने के बाद मैं जब ध्यान करने बैठता था तो पालथी लगाकर बैठता तथा दोनो हाथ अंगुलिया मिलाकर गोद में रख देता फिर प्रारम्भ मे मैं मेरे अन्दर गुरू विघमान है मेरे बाहर गुरू विघमान है ।

मेरे दायें गुरू,बायें गुरू,आगे गुरू,पीछे गुरू,ऊपर गुरू, नीचे गुरू इस प्रकार प्रत्येक स्थान पर गुरू की कल्पना कर गुरू मंत्र “ऊँ श्री गुरूवे नम:” जपता था।

ऐसा करते-करते ध्यान में चला जाता तथा ऐसा महसुस होता था कि यह शरीर मेरा नहीं बल्कि गुरूजी का है वहीं ध्यान करने बैठे है।

यहां तक की मेरी आँखे बंद होती तो जो गुरूजी देखते वह मै देखता एक प्रकार से मेरे में व गुरू मे भेद बिल्कुल खत्म हो गया था।

ध्यान के साथ-साथ मै गुरू मंत्र का जब भी खाली होता मानसिक जप करता । कभी-कभी तो ऐसा महसुस होता शिव भी मे ही हूं। तथा कभी महसुस होता भैरव में ही हूं।

मैं पेशे से अध्यापक हूं प्राथमिक शाला में पढ़ाता था जब मेरी आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ हुई।

मेरी कुण्डलिनी शक्ति जब जाग्रत हुई जब मेरे पर गुरूकृपा हुई तो मुझे पता नहीं था कि मेरे गुरू कौन है । क्योंकि मेरे गुरू परमहंस अवस्था के साधक है तथा सामान्य रूप में रहते है।

मेरी कुण्डलिनी जाग्रत हुई तब मैं अपने साथ अपने पुत्र सुदर्शन जो 6 वर्ष का था उसके साथ सोता था।

तब मेरे मन में ख्याल आता था कि शायद मेरा पुत्र अगले जन्म में सिद्ध होगा तथा शायद उसके कारण मेरी कुण्डलिनी जाग्रत हुई है ऐसा मै मानता रहा

अर्थात पुत्र को गुरू मानता रहा परन्तु कई साधको के पाय भटकने के पश्चात भी मुझे जो अनुभव हो रहे थे उसकी व्याख्या करने में कोई भी साधक असमर्थ रहा तो

मेरे गुरूजी ने केवल एक लाइन कहीं कि यह देवी भगवती की कृपा है तथा “ऊँ श्री गुरूवे नम:” जपो उससे सब ठीक हो जायेगा तथा आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी।

फिर जब मैंने नवरात्री में इस मंत्र का पुरश्चरण किया तब पता चला की जिसने मुझे मंत्र दिया वहीं मेरे सदगुरू है तथा उनकीं कृपा से मेरी कुण्डलिनी जाग्रत हुई है।

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