Enjoy in life in hindi by jivandarshan

मौज में कैसे रहे ? Enjoy in life in hindi (जीवन में आंनद लाने के लिए क्या करे)

Enjoy in life in hindi – प्रसन्न चित्त रहना हमारा मूल स्वभाव है । आपने देखा होगा की छोटा बच्चा अकेले-अकेले प्रसन्न चित्त रहता है। छोटा बालक जब खेलता है तो वह खेल में खो जाता है तथा अपने हाथों को चलाता है पैरो को चलाता रहता है

तथा उसके मुख मंडल पर एक अद्भुत आभा आ जाती है जो बालक की ओर आकर्षित करती है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है वह अकेलेपन के आनंद से दुर होता जाता है।

जीवन में आंनद लाने के लिए क्या करे(Enjoy in life in hindi)

प्रसन्न रहना हमारे चित्त का स्वभाव है। परन्तु हम बड़े हो जाने पर प्रसन्न होने के लिए दुसरों पर निर्भर हो जाते है। कोई हमारी बुराई करे तो हम दुखी हो जाते है तथा कोई हमारी तारीफ करे तो हम सुखी हो जाते है सुखी व दुखी होना मन का स्वभाव है चित्त का नहीं प्रसन्न रहने के लिए हमें किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी है।

प्रसन्न रहने के लिए वर्तमान में जीओ भविष्य में जो होगा देखा जाएगा। कृष्ण भगवान ने कहा है कि कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर।
आप प्रातः काल जैसे ही उठे तो ऑखें खुलने पर परमात्मा को धन्यवाद करे कि आप जीवित है

क्योंकि इस संसार में कई लाखों लोग ऐसे है जो मर गये । आप मुस्लिम है तो अल्ला का, ईसाई है तो गॉड़ का आप जिस देवी देवता या परमात्मा को मानते हो उसको धन्यवाद करे की आप किस्मत वाले है कि प्रातः जीवित उठे ।

फिर अपने परिवार के सदस्यों की ओर अपने बंधु बांधवो के बारे में पता करे यदि वह भी सकुशल हो तो परमात्मा का धन्यवाद करे। अपने जीवित उठने की खुशी को मन में भर दे।

प्रातः काल आप उठते ही प्रसन्न चित्त रहोगे तो आपका पुरा दिन अच्छा जायेगा।Enjoy in life in hindi

जब आप प्रसन्नचित्त होते हो तो शरीर में डोपामीन नामक हार्मोन रिलीज होता है। जितना ज्यादा डोपालीन हार्मोन रिलीज होगा तुम उतना ही ज्यादा प्रसन्नचित्त रहोगे तथा आपको जो समाचार प्राप्त होंगे वह भी खुशी के ही होंगे।

हमारा चित्त जब परमात्मा के सम्पर्क में आता है तो आनन्द का झरना बहने लगता है तथा सबके प्रति प्रेम का उदय होता है।

यदि प्रार्थना करने के बाद चित्त में प्रेम का अनुभव न हो तो समझना चाहिये की आपकी प्रार्थना परमात्मा तक नहीं पहुंची तथा आपने सच्चे मन से प्रार्थना नहीं की है जब आप प्रार्थना करते है

तथा आपकी प्रार्थना जब ईश्वर तक पहुँच जाती है तो मन में शांति महसुस होती है।

शांत व प्रसन्न चित्त ही इस बात को दर्शाता है कि आपकी पुजा,प्रार्थना ईश्वर ने स्वीकार कर ली है।

अपने-अपने धर्म की पुजा,उपासना,प्रार्थना आदि आदि करते रहने पर भी आपके मन में दुसरे के प्रति द्वेष भाव रहता है तो निश्चित माने की आपकी उपासना पद्धति में कोई ना कोई कमी रह गई है।

परमात्मा का सुमिरन ही आपको हमेशा प्रसन्न चित्त रख सकता है परमात्मा से जुड़ने पर आप हमेशा मौज में रहेंगे। फिर संसार की कोई भी वस्तु आपको दुखी या सुखी नहीं कर सकेगी।

जब आप अपनी आत्मा या परमात्मा का अनुभव कर लेते है तो आप में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना अर्थात पुरा विश्व मेरा परिवार है ऐसी भावना विकसित हो जाती है….
धन्यवाद

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