Importance of occasions in hindi

Importance of occasions in hindi-जीवन के लिए बड़े काम के भी हैं त्यौहार..?

Importance of occasions in hindi-त्यौहारों का उल्लास, उत्सवों के रंग, पर्वों का उत्साह और इन सबसे जुड़ी है हमारे मन की उमंग, मन की तरंग.

त्यौंहारो का महत्व-Importance of occasions in hindi

इंसान का जीवन एक ढर्रे पर चलता रहता है. उसमें बदलाव लाने के लिए पर्व-त्यौहारों के रूप में जो सौगात हमें मिली है न, उसकी जितनी तारीफ करें कम है.

आज के दौर में ये तो ये और भी जरूरी है. हमें पूरे मनोयोग के साथ इन पर्वों से जुड़ना चाहिए क्योंकि ये त्यौहार आज के दौर में हमें तरोताजा रखने के सबसे बेहतर माध्यम हैं.

मुझे याद है स्कूल के दिनों में 15 अगस्त का दिन हमारे के लिए कितना बड़ा अवसर होता था. दो दिन पहले से ही यूनिफार्म को लकदक करके,

जूतों को पॉलिश करके और पीटी करनी हो तो सफेद जूतों को चमकाकर पहले से ही तैयार रख लिया करते थे.

फिर जन गण मन गाने का मौका यदि मॉनीटर के रूप में मिल जाए तो क्या कहने ?

परेड के लिए बैंड की थाप पर बढ़ते कदमों का जोश देखते ही बनता था. सच कहें तो ऐसा करके एक अजीब से गौरव का अनुभव भी होता था.

होली, दीवाली जैसे त्यौहारों पर भी स्थिति ऐसी ही होती थी.Importance of occasions in hindi

लेकिन जैसे जैसे बड़े हुए इन चीजों से दूर होते गए और फिर ऐसा भी अवसर आया कि ये सब केवल बातें ही रह गईं.

स्कूल के दिनों का 15 अगस्त वाकई स्वतंत्रता का ऐसा भाव जगाता था कि कई दिनों तक उसका खुमार दिलो दिमाग पर छाया रहता था. अब ऐसा नहीं होता.

ये सब इसलिए याद आ गया क्योंकि इस 15 अगस्त को मुझे मौका मिला हमारी सोसायटी के फंक्शन में शामिल होने का. बच्चों के साथ बच्चा बन जाने का.

खुद भी पुराने दिनों में जाने का इरादा था. इसलिए ध्वजारोहण, राष्ट्रगान, मार्च पास्ट सब किया. खूब नारे लगाए, फिर बच्चों के कार्यक्रमों का मजा भी लिया.

कुछ समय के लिए खुद को इस कार्यक्रम के लिए समर्पित कर दिया. यकीन मानिए आनंद तो आया ही एक अजीब तरह की स्फूर्ति भी मिली.

मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैं भी कुछ समय पहले तक सामूहिक उत्सवों में शामिल नहीं होता था.

दरअसल आज हमारे पास लगातार काम का चैलेंज है. कई सारे टारगेट्स पूरे करने होते हैं. दिन-रात इन्हें पूरे करने की उधेड़बुन कभी ये सोचने का मौका ही नहीं देती कि इन अवसरों में मन का बड़ा सुकून छिपा है.

बच्चों के साथ बच्चे बन जाने का मजा ही कुछ और है.

खैर हम पर्वों और त्यौहारों की वजह पर बात कर रहे थे. मुझे लगता है कि आज के दौर में ये छोटे-छोटे अवसर हमारे लिए बड़े काम के हैं.

जरूरत हैं इनमें पूरी तरह से शामिल हो जाने की. दरअसल त्यौहारों का उल्लास हमारे शरीर पर भीतरी और बाहरी दोनों ही तरह से असर करता है.

बाहरी तौर पर हमें लोगों से मिलने जुलने का मौका मिलता है. एक दूसरे से बातें होती हैं तो जान पहचान भी बढ़ती है. परिवार और बच्चों के साथ समय बिताने से खुशी मिलती है.

एक दूसरे से पर्वों की खुशी शेयर करने से दिल को तसल्ली मिलती है.

भीतरी तौर पर देखें तो जब हम उल्लास के रंगों में शामिल होते हैं तब कुछ समय के लिए उस ढर्रे वाले जीवन से बाहर आ जाते हैं जो हमें लगातार उलझाए रखता है.

ये तनाव से मिलने वाली थोड़ी देर की आजादी हमें बहुत ज्यादा सुकून दे जाती है. इससे ताजगी मिलती है और ये ताजगी हममें नए सिरे से जूझने का जज्बा भर देती है.

इसलिए अपने आसपास ही लोगों से मेलजोल बढ़ाइए. आपको खुशी तो मिलेगी ही, सुकून भी मिलेगा.

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