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श्रीमद् भगवद्गीता – द्वितीय अध्याय
श्लोक – 10 व 11
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।2.10।।

अर्थः-

हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अन्तर्यामी श्री कृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हंसते हुए से यह वचन बोले ।।10।।

श्री भगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।

अर्थः- भगवान बोले –

हे अर्जुन ! तु जिन मनुष्यों के लिए शोक करता है वह शोक करने योग्य नहीं है और पण्डितों की तरह वचनों को कहता है। परन्तु जिनके प्राण चले गये है उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गये है उनके लिए पण्डितजन शोक नहीं करते है। ।।11।।

baldev rawal
बलदेव रावल

तात्पर्यः-

दसवें श्लोक में अर्जुन पहले तो बड़े साहस के साथ रथ को दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करने को कहते है तथा अर्जुन अब पारिवारिक मोह के कारण युद्ध नहीं करने को कहते है तथा शोक से व्याकुल हो रहे है। यह देखते हुए भगवान श्री कृष्ण हंसते हुए अर्जुन को कहते है।

हे अर्जुन तुमने कहा कि युद्ध क्षेत्र में डटे युद्ध के अभिलाषी रिश्तेदारो को देखकर मेंरे अंग शिथिल हुए जा रहे है मुख सुख रहा है तथा शरीर के कॉपने से धनुष गिर रहा है तथा मन भ्रमित हो रहा है।

इसलिए मैं खड़ा होने में असमर्थ हूँ साथ ही तुमने कहा कि हम लोग बुद्धिमान होकर भी पाप करने को तैयार हो गये है तथा राज्य और सुख के लोभ में स्वजनों को मारने के लिए तैयार हो गये इन सब बातों पर तुम शोक कर रहे हो वह सब बाते करके तुम पण्डितों के समान वचन बोल रहे हो अर्थात ज्ञानी जैसे बात करते है वैसे तुम बात कर रहे हो।

अर्जुन ने क्या कहा –

तुमने कहा कि केशव मैं लक्षणों को विपरीत देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजनों को मारने में अपना कल्याण नहीं देखता। मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य सुखों को ही। ऐसे भोगो व जीवन से क्या लाभ है जिन्हें प्राप्त करने के लिए हमें उन लोगो सो युद्ध करना पड़े जिनके लिए हम राज्य सुख चाहते है ।

साथ ही तुमने कहा कि मैं बाणों से भीष्म पितामह व द्रौणाचार्य के विरूद्ध किस प्रकार लडुंगा क्योंकि वह दोनो प्रकार मेरे पुजनीय है तथा मैं गुरूजनों को मारने की अपेक्षा भिक्ष मॉगकर जीवन निर्वाह करना श्रेष्ठ समझता हूं क्योंकि गुरूजनों को मारकर मैं अर्थ व कामरूप भोगो को ही तो भोगुंगा।

अर्जुन में कुल के नाश से उत्पन्न होने वाले महान पाप आदि की बात करते हुए तथा पण्डित या ज्ञानी की भॉति तर्क करते हुए अपनी बात कहीं इसलिए भगवान ने अर्जुन को कहां की तुम पण्डितों के समान वचन बोल रहे हो।

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भगवान श्री कृष्ण ने पंडितो के लिए क्या कहा –

फिर कृष्ण ने कहां कि जो पण्डित अर्थात ज्ञानी है वह जो मर गये है उनका तथा जो बाद में मरने वाले है उनका पण्डित अर्थात ज्ञानी कभी शोक नही करते है क्योंकि जो ज्ञानी है वह जानता है कि आत्मा अमर है तथा उसका कभी नाश नहीं हो सकता।

यहां पर कृष्ण अर्जुन को कह रहे है कि तुम ज्ञानियों के समान बात कर रहे हो तथा यदि तुम ज्ञानी हो तो इस बात को जानते होंगे की आत्मा अजर-अमर है उसे नष्ट नहीं किया जा सकता। ज्ञानी जो हो गया या जो होने वाला है उसके लिए शोक या दुःख नहीं करता अर्थात वह वर्तमान में रहता है जो भुतकाल है उसका तथा जो भविष्य में होने वाला है उससे प्रभावित नहीं होता तथा शोक नहीं करता है बल्कि जो भी कार्य उसके सामने है उसको वर्तमान अवस्था में रहकर पुरा करता है।

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अर्थात भगवान हंसते हुए इसलिए बोले क्योंकि वह जानते थे कि अर्जुन पंडित नहीं है परन्तु शास्त्रों की बातें पढ़कर ही पंडित की भॉति बोल रहा है सच्चा पंडित तो वही है जिसकी दृष्टि में सच्चिदानंद ब्रह्म ही नित्य व सत् वस्तु है उससे भिन्न कोई वस्तु नहीं है तथा वहीं सबकी आत्मा है तथा उसका किसी प्रकार ने नाश नहीं हो सकता

अर्थात अर्जुन मानना है जानता नहीं है अर्थात वह सच्चा पंडित अर्थात ज्ञानी नहीं है सच्चा पंडित वही है जिसने परमात्मा का अनुभव कर लिया है केवल शास्त्रों की बातो से मानता ही नहीं है बल्कि जान लिया है अर्थात जिन्होंने परमात्मा का अनुभव कर लिया हो वहीं ज्ञानी है।
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