shrimad bhagwat geeta in hindi

अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था ? shrimad bhagwat geeta in hindi

shrimad bhagwat geeta in hindi-अध्याय प्रथम
श्लोक 33 से 34
अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था ?
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।।33।।

अर्थः- हमें जिनके लिए राराज्य भोग एवं सुख की इच्छा है वे सभी युद्ध में प्राण देने के लिए तैयार खड़े है।

आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।

मातुलाः श्चशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा।।34।।

अर्थः- गुरू,ताऊ,चाचे,लड़के औऔर उसी प्रकार दादे,मामे,ससुर ,पौत्र,साले तथा और भी सम्बन्धी है।

तात्पर्यः- अर्जुन कह रहे है कि है गोविन्द हम राज्य सुख अपने बन्धुओ के लिए चाहते है तथा वहीं सब रिश्तेदार अपना प्राण देने के लिए युद्ध में तैयार खड़े है।

मुझे तो राज्यसुख की अभिलाषा अपने सगे सम्बन्धियों के लिए है न कि अपने लिए यदि सभी सम्बन्धी युद्ध में अपने प्राण त्याग देंगे तो उनके मर जाने के पश्चात् मैं राज्य-सुख का उपयोग कैसे करूंगा क्योंकि राज्य-सुख की चाह ही सम्बन्धियो के लिये है।

हर व्यक्ति अपने वैभव का प्रदर्शन अपने मित्रों,रिश्तेदार जाति के लोग तथा कुटुम्ब के लोगो के सामने करना चाहता है एक प्रकार से ऐसा महसुस होता है कि दौड़ चल रही हो तथा दौड़ में जीतना है तथा

shrimad bhagwat geeta in hindi

अर्जुन भी आजकल के व्यक्तियों की तरह सोच रहा है। यदि सारे मित्र एवं कुटुम्बी नष्ट हो जायेंगे तो ऐसे राज्य को में लेकर क्या करूंगा।

राज्य को जीतकर अपने वैभव का प्रदर्शन किसके सामने करूंगा।

जब मन में यह भाव होता है की में अपने लोंगो से आगे निकल जाऊ तथा यदि ऐसे भावभाव रखने वाले को असफलता मिलती है तो वह टुट जाता है तथा अपने लोगो से ऑख नहीं मिला सकता तथा हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है

इसलिए कोइ भी कार्य करो तो खुद से कम्पीटीशन करो दुसरे लोगों से नहीं। यदि दुसरो से कम्पीटीशन करते हुए असफल हो गये तो टुट जाओगे।

क्या अर्जुन के मन में उठता वैराग्य भाव झुठ था ?

मन में भाव होना चाहिये मुझे अच्छा से अच्छा करना है मुझे सफल होना है क्योंकि मेरी रूची इस कार्य में है।

कोइ भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता मुझे दुसरे की तुलना में श्रेष्ठ नहीं होता है बल्कि मुझे श्रेष्ठ होना है अपने लिए।

चाहे सफलता मिले या असफलता मुझे जीतना ही है। यदि असफल भी हो गया तो में बार-बार प्रयत्न करता ही रहुंगा।

अर्थात बिना परिणाम के बारे में सोचे कार्य करना है परिणाम कैसा भी हो हमें अपना प्रयत्न पुरा करना है प्रत्येक कोशिश कुछ न कुछ सिखाती है तथा हमें निखारती है।

एक समय ऐसा आयेगा की कार्य को करते-करते तुम पारंगत हो जाओगे तथा सफलता तुम्हारे कदम चुमेगी। आज जितने भी सफल लोग हुए है।

जिन्हें हम सफल मानते है वे प्रारम्भ में कई बार असफल हुए परन्तु उनकी असफलता को दुनियां ने भुल दिया तथा सफलता को ही दुनियां याद करती है।

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