shrimad bhagwat gita

कृष्ण ने धीर पुरूष किन्हे कहां है ? ( Krishna ne dhir purush Kise kaha)

श्रीमद् भगवद्गीता

अध्याय द्वितीय – श्लोक -13

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।

तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।2.13।।

अर्थः-

जैसे जीवात्मा की इस शरीर में बालकपन,जवानी और वृद्धावस्था होती है वैसे ही मृत्यु हो जाने पर अन्य शरीर की प्राप्ति होती है। उस विषय में धीर पुरूष मोह ग्रस्त नहीं होता ।।2.13।।

baldev rawal
बलदेव रावल

तात्पर्यः-

आत्मा एक शरीर को छोड़कर जब दुसरा शरीर धारण करता है तो जो अज्ञानी होते है वह शोक किया करते है भगवान ने इस प्रकार के शोक करने को अनुचित बताया है भगवान बताते है कि जैसे प्रत्येक जीव में एक आत्मा होती होती है जीव का शरीर हर समय बदलता रहता है

बचपन में शरीर बालक रूप में रहता है तथा युवावस्था में शरीर कका रूप अलग ढंग का हो जाता है तथा वृद्धावस्था भी आने पर शरीर बलहीन हो जाता है परन्तु उस जीव की आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता।

तथा वृद्धावस्था आने के पश्चात् मृत्यु हो जाने पर आत्मा को दुसरा शरीर प्राप्त होता है तथा नई शक्ति प्राप्त होती है  जो धीर पुरूष है अर्थात जिन्होंने आत्मा व परमात्मा, भौतिक व आध्यात्मिक प्रवृति का जिनको ज्ञान है अर्थात जिन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया है

आत्मा साक्षात्कारी है वह धीर कहलाता है तथा ऐसा मनुष्य जीव की मृत्यु होने पर शोक नहीं करते है अर्थात शरीर से उनका मोह नहीं होता है।

किसने हँसते-हँसते जहर पी लिया था ।

जब सुकरात को जहर दिया गया था तो उसने हँसते-हँसते जहर का प्याला अपने होठो से लगा दिया था क्योंकि वह धीर पुरूष था तथा उसने आत्मा की अमरता का रहस्य समझ लिया था।

जब ईसामसीह को सुली पर चढाया गया तो वह हँसते-हँसते सुली पर चढ़ गये क्योंकि वह भी जानते थे कि शरीर की मृत्यु उनकी मृत्यु नहीं है तथा वह आत्मा है तथा अजर-अमर है ।

भगवान बुद्ध भी अंगुलिमान डाकु से नहीं घबराये क्योंकि वह भी आत्मा की अमरता का रहस्य जानते थे।

भक्त प्रहलाद तो भक्ति में इतने गहरे उतर गये थे कि प्रत्येक सजीव व निर्जीव वस्तु में परमात्मा का दर्शन करते थे यही कारण रहा कि उनहोंने शरीर को भी ऐसा बना लिया कि उसे कोई वस्तु नष्ट न कर सके।

अपने शरीर को अमर किसने बना दिया

भारत भूमि में सनातन धर्म में ऐसे योगी पुरूष भी हुए जैसे हनुमानजी,अश्वथामा,नौ नाथ इन्होंने अपने शरीर को भी अमर बना दिया यह आध्यात्म का उच्च स्तर है जिसमें व्यक्ति पॉचो तत्वों जिनसे शरीर बना हुआ है उन्हें अलग करके वह जहॉ चाहे वहॉ शरीर को प्रगट कर सकता है।

आत्मा के बारे में विभिन्न पंथो ने जो अनुभव किया उस सत्य को बताया है। बहुत से पंथो में जिन्हें आज मानने वालो की संख्या अधिक होने से धर्म का नाम दे दिया है। उन्होंने अपनी समझ व अनुभव के आधार पर आत्म तत्व व परमात्मा तत्व को समझा।

भगवान महावीर ने बताया कि कोई भगवान नहीं होता । बुद्ध अपने पुरे जीवन काल में इन प्रश्नों के उत्तर देने से कतराते रहे यघपि वह इसका उत्तर जानते थे तो भी उन्होंने नहीं दिया।

मोहम्मद साहब ने बताया की वह अल्लाह के पैगम्बर है यहॉ अल्लाह परमात्मा व ब्रह्म ही है। ईसा मसीह ने बताया की वह परमेश्वर के दुत है।

उसी प्रकार चुंकि कृष्ण भगवान उपदेश दे रहे है इसलिए आत्मा व परमात्मा का द्धैत साबित होता है तथा भक्ति मार्ग में चलने वाले भी परमात्मा व अपने को आत्मा मानते है जबकि सर्वं खल्विंद ब्रह्म,तत्वमसि,अहं ब्रह्मास्मि,एक मेवाद्वितीयम् आदि वाक्य अद्धैत सिद्धान्त के बारे में बताते है

जबकि कई पंथ द्धैत सिद्धान्त को मानते है इनमें दोनो ही बाते सत्य है क्योंकि जिसने भी परमात्मा का अनुभव किया उसने वैसा ही बताया जबकि सभी ने सत्य कहा तो वह परम् सत्य क्या है वास्तव में परमात्मा क्या है ?

आत्मा क्या है ?

क्या दोनो एक ही है ? अथवा दोनों अलग-अलग है इस बात को में समय-समय पर अपने विवेक से समझाने का प्रयत्न करूंगा ताकि विभिन्न पंथो में समरसता स्थापित हो तथा भगवान श्री कृष्ण के “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात पुरा विश्व मेरा परिवार है कि स्थापना जो कि सनातन धर्म का मूल है उसकी बात को समझाया जा सके ताकि में पुरा विश्व यह मान ले कि भगवान तो एक ही है जिसने इस सृष्टि को बनाया है

तथा विभिन्न धर्मों को मानने वाले चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारे वह बदल नहीं जाने वाला तथा जब समरसता सबको आपस में लड़ते-झगडते देखता है तो खुश नहीं होता धर्म में लचीलापन होना चाहिये नये विचारो का स्वागत होना चाहिये तभी यह दुनिया बचेगी वरना धार्मिक कट्टरपन ने लाखों व्यक्तियों कोको मौत के घाट उतारा है

तथा वह यह मान रहे है कि उनकीं पुस्तक में लिखा है कि उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी तो मान ले कि जब तक यह सृष्टि रहेगी वह कभी मुक्त नहीं हो सकते तथा परमेश्वर कभी भी उनके पाप को स्वीकार नहीं करेगा।

————————————अस्तु श्री शुभम्————————————————–

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