श्रीमद्भगवद्गीता – द्वितीय अध्याय :- श्लोक 4 व 5
अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।2.4।।
अर्थः- अर्जुन बोले – हे मधुसुदन मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य के विरूद्ध लडूंगा ? क्योंकि हे अरिसूदन ! वे दोनो ही पूजनीय है ।।2.4।।
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।।2.5।।
अर्थः- इसलिए इन महानुभाव गुरूजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ । क्योंकि गुरूजनों को मारकर भी इस लोक में रूधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को हीं तो भोगुंगा।
तात्पर्यः- अर्जुन एक भक्त है तथा उसमें सनातन संस्कृति का ज्ञान है भारतीय संस्कृति के शिष्टाचार में बचपन से यह बात सिखाई जाती है कि अपने से बड़ो का सदैव सम्मान करें सदैव। अपने से बड़े यदि हमें डाँटे तो भी उनके सामने नन बोले अर्थात उनका मान सम्मान करें। पितामह भीष्म तथा गुरू जिन्होंने अर्जुन को शास्त्र दिक्षा दी है उनके सामने भी वाद-विवाद करने या बोलने को भी अच्छा नहीं समझा जाता।
उनके विरूद्ध में शस्त्र का प्रहार कैसे करू क्योंकि वह मेरे पूजनीय है।इन पर हथियार उठाने की अपेक्षा में यहाँ से चला जाऊ तथा यदि भीख माँगकर भी मुझे जीना पड़े तो भी मेरे लिए वह कल्याणकारी होगा। तथा यदि युद्ध में इन्हे मारकर मुझे राज्य सुख प्राप्त हो या धन-दौलत मिले तो इनके रक्त से सने हुए वैभव को में कल्याणकारी नहीं समझता।
अर्जुन के यह सन्यासी की भाँति विचार सुनने में बहुत अच्छे लग रहे है कि वह अपने से बड़ो व गुरूजनों का बहुत मान सम्मान करता है संस्कारवान है। परन्तु अगर वह युद्धभूमि में नहीं होता तथा शिष्टाचार की बात करता तो उचित था परन्तु वह क्षत्रिय वर्ण का है तथा उसका कर्तव्य युद्ध करना है तथा वह युद्ध करने के निमित्त युद्धभूमि में आया है यदि वह अपने कर्तव्य का निर्वहन न करके सन्यासी की भॉति बात करता है तो वह गलत है। यदि आपका कोई बड़ा यदि स्वयं गलत कार्य करे तथा गलत का साथ दे तो ऐसी स्थति में आपको उसके विरूद्ध भी खड़ा होना पड़े तो होना चाहिये।
चाहे आप उनका कितना भी मान सम्मान करते हो । वर्तमान में आसाराम बापु को जेल में डाला गया। उनकों गिरफ्तार करने गये पुलिस प्रशासन में उनका कोई भक्त भी हो सकता है जिसने आसाराम बापू से दीक्षा ले रखी हो। परन्तु जब उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश मिला तो पुलिस को अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उन्हे गिरफ्तार करना ही पड़ा या बहुत से ऐसे उदाहरण देखने को मिलते है कि पुत्र ने पिता को गिरफ्तार किया या शिष्य ने गुरू को गिरफ्तार किया क्योंकि पुलिस का कर्तव्य है कि जो भी व्यक्ति स्वयं गलती करे या गलत का साथ दे तो उसे गिरफ्तार करना चाहे सामने कोई भी हों यदि कोई पुलिस वाला यह कहकर नट जाय की सामने वाला उसका सम्मानीय है अतः उसे गिरफ्तार नहीं करूंगा तो उसे अपशय का भागी बनना पड़ेगा।
यदि बात अर्जुन के लिए है उसका कर्तव्य है युद्ध करना तथा यदि वह युद्ध नहीं करता तो उसको अपकीर्ति का शिकार होना ही पड़ेगा। कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि पिता के साथ पुत्र को व्यापार में कम्पीटिशन करना पड़े। चाहे पुत्र पिता का बहुत आदर करे सम्मान करे परन्तु बिजनेस में कम्पीटिशन भी एक युद्ध की तरह है हमें अपने बिजनेस में सफल होने के लिए अपने रिश्तेदारों से कम्पीटिशन करना पड़े तो भी करना चाहिये वह गलत नहीं है।