क्या अर्जुन के मन में पक्षपात करने की भावना थी ?
अध्याय प्रथम श्लोक 36 से 37 क्या अर्जुन के मन में पक्षपात करने की भावना थी ? निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन। पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।।36।। अर्थः- हे जनार्दन ! धृतराष्ट्र के पुत्रो को मारने पर हमें थोड़ीसी भी प्रसन्नता नहीं होगी बल्कि इन आततायियो को मारने से हमें पाप लगेगा। तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्। स्वजनं हि कथं […]
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