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      Sudarshan Rawal

मेरा बचपन

दोस्तो मेंरी सोच मेरे विचार बचपन से ही अलग रहे है चाहे वो स्कुल टाइम की बात हो,चाहे खेल-कुद की बात हो..में ऐसा नहीं कहता की मेरे ख्याल किसी से मिलते नहीं थे पर बचपन से ही में जो कुछ भी सोचता था वो दुसरो की तुलना मे अलग होती थी. जो मुझे ही पता था लोग क्या सोचते थे वो मैंने कभी सोचा नहीं अगर लोग क्या सोचेंगे वो में सोचता तो शायद अभी ये लिख नहीं पा रहा होता…

बचपन से ही मेरा नज़रिया काफी अलग था. मुझे हर बात को जानने की बड़ी इच्छा रहती थी…और बचपन के दोस्तो मे ना तो इतनी जिज्ञासा थी….ओर नाही वो अपने दिमाग पर इतना ज़ोर लगाते थे..फिर जब मेंरी जानने की इच्छा प्रबल हो जाती थी…तो में अपनी बड़ो से उन चीज़ो को लेकर बात करता था…ओर यही मेंरी जिज्ञासा ने मुझे बड़ो के साथ रहने पर मज़बुर किया…जिससे मेरे अंदर समाज,सभ्यता,संस्कृति,मान मर्यादा, व्यहवार,बडी सोच..वो चिज़े मुझमे बढ़ने लगी….

दोस्तो में आपको ये नहीं कहता कि मेरी सोच सही है..पर दोस्तो इसी सोच की वजह से में आज यहां हुं…मेरी इस लाइफ में मेंने हर काम अपनी सोच से ओर अपने डिसीजन से किया….चाहे वो गलत साबित हो उसकी जिम्मेदारी भी खुद ही ली….

मेरा परिवार

दोस्तो परिवार की बात बताऊ तो में बहुत ही साधारण परिवार से हुं…मेरा पुरा परिवार शान्त ओर खुशी से जीवन जीने की सोच रखता है…साथ ही हमारा परिवार संयुक्त परिवार रहा है…सबसे खुशी की बात ये है कि मेने अपना बचपन अपने परदादा ओर परदादी के साथ बिताया है…दुसरा मेरी पुरी फैमेली आध्यात्मिक विचारो से ओत प्रोत थी…में आपको ये बताना तो भुल गया कि में पेशे से ब्राह्मण हुं….पुजा पाठ,भजन कीर्तन,ज्योतिष विद्धया बहुत आम बात थी…तो मुझ पर भी उन्ही बातो की झलक रही…

दोस्तो जैसा कि मेने बताया कि में उम्रदराज़ लोगो के साथ ज्यादा रहना ज्यादा पसंद करता था…तो बचपन मे मेरे दादाजी के उसुलो,उनकें स्वाभिमानी व्यक्तित्व,औऱ उनकी सघर्ष भरी ज़िन्दगी की बातो का मुझ पर बहुत असर पड़ा था..वो एक सिद्धान्तवादी व्यक्तित्व के धनी थे…ओऱ उऩके साथ ज्यादा रहने की वज़ह से वो हर बार उनकें सामने ओर उनकी आस-पास की घटना पर टिप्पणी करते थे ओर मुझे समझाते थे…समाज, व्यहवार,अनुशासन ,उनके अऩुभव,लोगो को परखने की कला..बहुत कुछ..दोस्तो में आपसे भी मेंरे दादाजी का एक ऊसुल शेयर करना चाहुंगा जिससे आप उनके वयक्तित्व और उनकीं सोच को समझेगे….उनका कहना था कि “बेटा फटा कपड़ा पहन लेना पर कभी किसी से मांग कर मत पहनना” हम तो मन से ओर तन दोनो से ही सुन्दर है फटा कपना पहनेंगे तो भी दुनिया हमें ही देखेंगी..और दुनिया अच्छे कपड़ो को नहीं अच्छे गुणो का गुणगान गाती है…हमारी सुन्दरता हमारे विचारो,गुणो,ओर स्वाभिमानी होने के तेज़ से है….

 

 

मैंरे आध्यात्मिक विचारो की शुरुवात

हम पुजारी थे तो मंदिर मे पुजा करने जाया करते थे…तो मे भी मेरी दादी के साथ जाता था..फिर मेरी दादी ने मुझे कहा कि बेटा भगवान का नाम लेते लेते चलो…तो मेने कहा कि किसका नाम लु…तो उन्होंने मुझे भगवान शिव का मंत्र दिया और बोला कि पुरे रास्ते में वही नाम लेना में पुजा करू तब भी यही नाम लेना जब तक की मेरी पुजा खत्म ना हो जाए वो नाम लेते रहना…सॉरी दोस्तो मुझे इतना ज्यादा याद नहीं है…पर मेंने घर पहुचते तक अपना नाम लेता रहा…इसी तरह मुझे जो कोई भी जैसा भी करने को बोलता में करता रहता…उसके बाद मेरे घर में सभी भजन सुनने के शौकीन थे तो उनकों सुनते सुनते मुझे भी शौक हुआ और में भी गुनगुनाने लगा…उसके बाद मेरे परिवार के संस्कार मुझ पर हावी रहे….उसी शुरूवाती आध्यात्म ने मुझे आध्यात्म मे आगे बढने में मदद की जो मेरे आध्यात्मिक विचारो की पोस्ट में आपको देखने मिलेंगी…इन सब बातो में मेंने आपको ये नहीं बताया कि मेंरे गुरू कौन है..जिनकी कृपा से में इतनी बड़ी – बड़ी बाते कर रहा हुं.. दोस्तो ये बात सच है कि जीवन में बिना गुरू के आप कभी आगे नहीं बढ़ सकते…ना ही आप नई दिशा को छु सकते है वैसे तो मेंरे कई गुरू रहे है जिनका मुझ पर सदैव आशीर्वाद रहा है पर मेंरे आध्यात्मिक गुरू मेरे पापा है…जिनकीं वजह से मैंने आध्यात्म में ऊचाईयों को छुआ…और जिनकी वजह से मे आज यहां हुं….उन्हीं के आशीर्वाद से मै आपको ये भी बताऊंगा की परमात्मा क्या है,,,,परमात्मा से जुड़े मेरे अनुभव क्या है,,,,,कैसे परमात्मा हमारी मदद करता है,,,,परमात्मा को कैसे महसुस किया जाता है…जो आप धीरे –धीरे मेरी पोस्ट पढ़कर समझेगे….

मेरा उद्देश्य:-

  • युवा लोगो में नया जोश नई उम्मीद लाना
  • आध्यात्मिकता का नया आयाम
  • सक्सेस होने के मंत्र
  • युवा लोगो में खुद पर भरोसा जगाना