श्रीमद् भगवत् गीता प्रथम अध्याय
प्रथम अध्याय – श्लोक 4 से 10
“अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो विराटश्र्च द्रुपदश्र्च महारथ: ||4||
धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्र्च वीर्यवान् |
पुरूजित्कुन्तिभोजश्र्च शैब्यश्र्च नरपुग्डव: ||5||
युधामन्युश्र्च विक्रान्त उत्तमौजाश्र्च वीर्यवान् |
सौभद्रो द्रौपदेयाश्र्च सर्व एव महारथा: ||6||
(दुर्योधन इन श्लोको में पांडवो की सेना के बारे में द्रोणाचार्य को कह रहा है।)
अर्थ – इस सेना में भीम और अर्जुन के समान अनेक अलौकिक तथा शस्त्र विद्या में पारंगत शूरवीर है। इस सेना में महायोद्धा युयुधान और विराट तथा महावीरो में श्रेष्ठ द्रुपद भी आये है।
धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज,पुरूचित,कुन्तिभोज,मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य,पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा,सुभद्रापुत्र अभिमन्यु तथा द्रोपदी के पुत्र व दुसरे ऐसे बहुत से महारथी है जिनकी संख्या का अंत नहीं है।
“अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ||7||
अर्थ – हे ब्राह्मणश्रेष्ठ अपने पक्ष में भी जो विशेष है उनको आप समझ लीजिये।आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना में जो प्रमुख शूरवीर है उनको बतलाता हूँ।
भवान्भीष्मश्र्च कर्णश्र्च कृपश्र्च समितिञ्जय: |
अश्र्वत्थामा विकर्णश्र्च सौमदत्तिस्तथैव च ||8||
अर्थ – आप और पितामह भीष्म तथा कर्ण औऱ संग्राम विजय करने वाले कृपाचार्य अश्वथामा,विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ।
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता: |
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा: ||9||
अर्थ – और भी मेरे लिए अपने जीवन का त्याग करने वाले बहुत से शूरवीर,अनेक प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और सबके सब युद्ध में चतुर है।
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ||10||
अर्थ – भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी सेना सब प्रकार से अजेय है और उन लोगों की सेना की रक्षा भीम कर रहा है अत: उन लोगो की सेना को जीतना सरल है।
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प्रारम्भ में दुर्योधन पांडवो की सेना के पराक्रमी वीरो के बारे में बताता है जो युद्ध करने के लिए रणभूमि में आये हुए है तथा बाद में अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं के बारे में द्रोणाचार्य को बताता है तथा साथ ही द्रोणाचार्य को भी आश्वस्त करने के साथ-साथ वह अपने मन के भय को कम करने के लिए तुलना करता है कि हमारी सेना के सेना नायक गंगापुत्र भीष्म है तथा पांडवो की सेना का नायकत्व उदंड भीम ने संभाल रखा है अत: भीम की तुलना में भीष्म निश्चित श्रेष्ठ है अत: निश्चित ही हमारी सेना पांडवो पर विजय प्राप्त करेगी यह विश्वास मन में पैदा करने की चेष्टा करता है।
वह सोचता है कि गंगापुत्र भीष्म ने कई लडाईयाँ लड़ी है तथा सबमें अनुभवी है जबकि भीम का कार्य तो खाना-पीना व कुश्ती लड़ना है। वह कैसे अपनी सेना को सही दिशा देगा तथा कितने भी योद्धा उनके पास है परन्तु उसका नायक भीम जैसा उदंड़ है तो निश्चित ही हमारी विजय होगी ऐसा मान कर मन को निर्भय बनाने का प्रयत्न करता है।
मेरे लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले बहुत से श्रेष्ठ वीर मेरी सेना में है यह कहकर दुर्योधन अपने अभिमान को पुष्ट करता है तथा यह दर्शाना चाहता है कि वह महत्वपुर्ण है तभी तो उसके लिए कई वीर जान न्यौछावर करने के लिए तैयार है द्रोणाचार्य को यह कहकर वह दर्शाना चाहता है कि आपने मुझे महत्व न देकर हमेशा पांडवो को महत्व दिया परन्तु में भी महत्वपुर्ण हूँ।
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