अर्जुन रथ के पिछले भाग में क्यों चले गए ?
अध्याय प्रथम का अंतिम श्लोक 47
सञ्जय उवाच
एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।47।।
अर्थः-संजय बोले – युद्ध भूमि में शोक से उद्धिग्न मन वाले अर्जुन एस प्रकार कहकर,बाण सहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये ।
तात्पर्यः-अर्जुन ने विभिन्न तर्क दिये शास्त्रों की बातों को भी कृष्ण के सामने रखा । अर्जुन के मन में वैराग्य के जो भाव पैदा हो रहे थे वह भी कृष्ण के सामने रखे । व्यक्ति जब दुविधा ग्रस्त हो जाता है तथा वह निर्णय नहीं कर पाता की क्या करना चाहिये तथा क्या नहीं करना चाहिये।
क्या में कर रहां हूं वह सही है या नहीं ? कहीं मैं गलत तो नहीं कर रहां हूं ? तब निर्णय करने के लिए वह अपने गुरू के सम्मुख अपनी बात रखता है तथा आशा करता है कि उसे सही मार्ग दर्शन मिले क्योंकि उसकी बुद्धि कुंठित हो चुकी होती है।
यहीं हाल अर्जुन का है सारी अपनी बात कहकर जब अर्जुन ने देखा कि कृष्ण कुछ नहीं कह रहे है तो उसका मन शोक से भर उठा तथा उसने निर्णय कर लिया कि वह युद्ध नहीं करेगा तथा अपने हथियार डालकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया तथा कृष्ण की ओर देखने लगा कि जगद्गुरू श्री कृष्ण अपनी क्या राय देते है।