श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम-duryodhna ne apni sena mai utsah kaise bhara
प्रथम अध्याय – श्लोक 11 से 13
“अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: |
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि ||11||
अर्थ – इसके बाद दुर्योधन ने समस्त सैनिको से कहा-सब मोर्चोंपर अपनी-अपनी जगह पर स्थित रहते हुए आप लोग भीष्म पितामह की सब ओर से रक्षा करें।
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरूवृद्ध: पितामह: |
सिंहनादं विनघोच्चै: शड़्खं दध्मौ प्रतापवान् ||12||
अर्थ – दुर्योधन की बाते सुनकर सेनापति भीष्म खुश हुए तथा उन्होंने सिंह के दहाड़ के समान गर्जना कर शंख बजाया।
तत: शड़ख्श्र्च भेर्यश्र्च पणवानकगोमुखा: |
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोअभवत् ||13||
अर्थ – भीष्म के शंख बजाने के बाद ही शंख,नगाड़े,ढोल,मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे बज उठे। बाजे बजने की भयंकर आवाजे सब ओर फैल गई।
जब दुर्योधन ने पांडवो के सेनापति भीम तथा कौरवो के सेनापति भीष्म की तुलना कर भीष्म को श्रेष्ठ बताया तथा समस्त सैनिको को कहां कि सभी अपने-अपने दल में व्यवस्थित रहते हुए भीष्म की आज्ञा माने तथा भीष्म की सभी लोग सुरक्षा करे अर्थात जिस प्रकार मैं भीष्म का सम्मान करता हूं
उसी प्रकार तुम सब लोग इन्हीं की आज्ञा माने क्योंकि पुरी सेना की शांति इन्हीं पर निर्भर है तथा भीष्म की रक्षा करते हुए तुम्हे जो विभाग दिया है उसी में रहते हुए भीष्म की सुरक्षा करनी है।
जब भीष्म-पितामह ने दुर्योधन के यह शब्द सुने तो उनका मन हर्ष से भर उठा तथा उन्होंने जयघोष करते हुए शंख बजाया तथा शंख की आवाज करते ही शंख की आवाज के साथ युद्ध के बाजे बज उठे तथा एक प्रकार से पुरी सेना में उत्साह की लहर फैल गई।
duryodhna ne apni sena mai utsah kaise bhara
इन श्लोको में यह बताया गया है कि हम जीवन में कोई भी कार्य करे,युद्ध करे या बिजनेस या खेल, हमें यदि हमारी टीम में उत्साह भरना है तो टीम की प्रशंसा करनी चाहिये क्योंकि प्रशंसा ऐसा मूल मंत्र है जो टीम में उत्साह भर देता है।
साथ ही कार्य करते वक्त हमें जो विभाग सौपा है उसमें ही व्यवस्थित रहते हुए अपना कार्य करना है तथा टीम के लीडर के निर्देशो के अनुसार चलना है।
जिस टीम का लीड़र उत्साहित होता है उसकी पुरी टीम उत्साहित रहती है। दुर्योधन ने जिस प्रकार सेनानायक भीष्म की प्रशंसा की उससे भीष्म उत्साह से भर उठे तथा
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भीष्म के उत्साह में भरने के साथ-साथ पुरी सेना में नए उत्साह का संचार हुआ उसी प्रकार यदि हम जीवन में दुसरे की प्रशांसा करने का गुण अपना लेंगे तो जिसकी प्रशंसा की जाती है वह व्यक्ति आपका अच्छा मित्र बन जायेगा तथा आपके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जायेगा।
यदि आप किसी व्यक्ति के कपड़ो की तारीफ करते है तो वह व्यक्ति जब भी उन कपड़ो को पहनेगा तब-तब वह आपको याद करेगा। यदि किसी के गुणो की तारीफ करते है
तो वह आपका अभिन्न मित्र बन जायेगा परन्तु इस बात का ध्यान रखना है कि प्रशंसा झुठी नहीं होनी चाहिये।
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