Goraji kumhar story in hindi – पंढ़रपुर में विट्ठलनाथजी के परम् भक्त गोराजी कुम्हार अपनी पत्नी तथा दो वर्ष के बच्चें के साथ रहते थे। गोराजी मन में प्रभु का सुमिरन करते तथा मिट्टी के बर्तन बनाते ।
गोराजी कुम्हार की कथा (Goraji kumhar story in hindi)
एक दिन उनकी पत्नी पानी भरने गई तथा बालक को गोराजी के पास छोड़ गई । पहले पानी दुर-दुर से लाना होता था। बच्चे को खेलता देखकर गोराजी ने सोचा की कुछ काम कर लेना चाहिए ।
वे मिट्टी के ढ़ेर पर पानी छांटकर पैरों से मिट्टी कुचलने लगे तथा मुंह से विट्ठल-विट्ठल नाम का जप करने लगे । पैरों से मिट्टी कुचलते-कुचलते उनकी आँखे बंद हो गई तथा वह परमात्मा में स्थिर हो गये।
पैर से मिट्टी कुचलने का कार्य चालु तथा समाधी सी लग गई थी। उनके बालक की नजर खेलते-खेलते पिता पर पड़ी तो वह उनकी ओर आया सोचा पिता उनसे प्यार करेंगे परन्तु बालक जैसे ही पास आया गोराजी का पैर बालक पर पड़ा ओर बालक मिट्टी में दब गया बालक चीखा परन्तु गोराजी तो भक्ति में मग्न थे।
बालक की आवाज उनकें कानों तक नहीं पहुंची तथा बालक मिट्टी में मिल गया उनके पैरों से कुचला गया व हड़ड़ियाँ निकल आई ओर बालक मर गया ।
उनकीं पत्नी पानी लेकर आई तो बालक नहीं दिखा तो हर जगह ढुँढने लगी उसके रोने पर आस-पास के लोग इकठ्ठे हो गये।
गोराजी तो भक्ति में मग्न थे उन्हें कोई होश नहीं था ।
परन्तु जब पत्नी ने उन्हें स्पर्श किया व हिलाया तो उनकीं समाधी टुट गई जब उन्होंने पड़ोसियों व गाँव वालो को देखा तो पुछने लगे की क्या हुआ तो पत्नी ने पुछा की बालक को आपके पास छोड़ कर गई थी।
वह बालक कहां है बालक मिल नहीं रहा है। तभी अचानक पत्नी की दृष्टि मिट्टी पर पड़ी तो देखा कि बालक कि हड्डियाँ निकल गई है तथा मिट्टी में मरा पड़ा है जब यह दृश्य देखा तो उनकीं पत्नी जोर-जोर से रोने लगी।
पडौसी भी गोराजी को कहने लगे की… ऐसी भक्ति क्या काम की बालक पैरों में कुचला गया फिर भी पता न लगा तथा गोराजी को भला-बुरा कहने लगे।
भक्ति की लीला –
उनकी पत्नी के मुंख से भी पुत्र मोह में गोराजी को ईश्वर भक्ति के विरूद्ध बुरे शब्द निकल गये। जब पत्नी ने कहां तो गोराजी को बुरा लगा तथा कहने लगे कि बालक का समय आ गया होगा इसलिए चला गया ये जीवन स्वपन है इसलिए चिंता न कर प्रभु जो करता है अच्छा ही करता है अत: शोक न कर।
प्रभु ने जब देखा तो भक्त की परेशानी दुर करने के लिए भगवान योगी का रूप धर कर गोराजी के द्वार पर आये तथा अलख जगाई। गोराजी की पत्नी का नियम था कि घर आये अतिथी को भोजन कराये बिना कभी भी जाने नहीं देती ।
द्वार पर साधू को आया देखकर उसने पुत्र को वस्त्र से ढँक दिया तथा योगी को आसन देकर भोजन बनाने रसोइघर में गई….
भोजन बनाने के बाद योगी को जीमने की प्रार्थना की तब योगी ने कहां कि तेरे पुत्र को बुला ओर जब तक तेरा पुत्र नहीं आयेगा मैं भोजन नहीं करूंगा तब गोराजी की पत्नी कहने लगी की बालक तो खेलने गया है
आप भोजन कर ले बालक बाद में खा लेगा परन्तु योगी ज़िद करने लगे की तुम्हारे पुत्र के बिना में नहीं खाऊंगा तो गोराजी की पत्नी ने कहा कि बालक मेहमान गया है यह कहकर रोने लगी।
तब योगी ने पुत्र की लाश पर से कपड़ा खींचा ओर बोले कि झुठ क्यों बोल रहीं है तुम्हारा लड़का तो यह रहा । जैसे ही कपड़ा खींचा बालक उठ बैठा । मृत्यु को प्राप्त हुआ बालक जीवित हो गया।
जब गोराजी को पुत्र के जीवित होने का समाचार सुनाने उनकीं पत्नी पहुंती तो गोराजी अपनी पत्नी पर गुस्सा हुए तथा कहां कि तुम्हारे कारण मेरे प्रभु को इस पृथ्वी पर वैकुण्ठ छोड़कर आना पड़ा।
यदि तुमने मेरी प्रभु भक्ति के बारे में भला बुरा न कहा होता तो आज मेरे प्रभु को कष्ट न होता। तेरे कारण मेरे प्रभु को दुख पड़ा है इसलिए आज से तुम मेरी पत्नी नहीं हो आज से तुम मेरी माता के समान हो जैसे ही उनकीं पत्नी ने यह सुना वो बेहोश होकर गिर गई।
जब होश आया तब सोचने लगी की कोई दुसरी स्त्री विवाह करके आयेगी तो पती को तकलीफ होगी क्यों न इनके साथ मेरी बहन कि ही शादी करवा दु जिससे ठीक रहेगा…
ऐसा सोचकर वह अपने पीहर गई तथा मॉ से बोली की तुम्हारे जमाई को फिर से शादी करने की इच्छा है अत: मेरी छोटी बहन की शादी इनके साथ करवा दो।
मॉ ने सोचा की बड़ी बेटी सुखी है जमाई जी भी अच्छे है अत: उन्होंने छोटी बेटी का सम्बन्ध करने में तनिक भी नहीं सोचा तथा ब्राहम्ण से नारीयल विवाह के लिए भिजवाया…ओर पत्नी के आग्रह के कारण गोराजी ने विवाह करना स्वीकार कर लिया।
विवाह के बाद विदाई के वक्त सासुजी ने जमाई से कहा कि जैसे तुम मेरी बड़ी बेटी को अच्छा रखते हो वैसे ही मेरी छोटी बेटी को अच्छा रखना तब गोराजी ने कहां कि बड़ी मॉ तो छोटी बहन ।
शादी के बाद भक्त जी घर के कार्यो मे लग गये। थोड़े दिनों तक जब पत्नी की बहन को पति सुख नहीं मिला तो वह लोगो से बाते करने लगी कि उसे पति सुख नहीं मिला तथा बड़ी बहन के कारण मेरी ज़िन्दगी खराब हो गई ।
धीरे-धीरे जब यह बात बड़ी बहन ने सुनी कि गोराजी उसकी छोटी बहन के साथ पत्नी का सम्बन्ध नहीं रखते है तो उसे बड़ा दुख हुआ तथा उसने दोनों में प्रेम हो ऐसी युक्ति सोची। जब गोराजी सो रहे थे तब एकांत में अपनी बहन को ले जाकर गोराजी के पास सुला दिया।
जब रात को गोराजी का हाथ का स्पर्श स्त्री से हुआ तो गोराजी जग गया तथा अपने आपको धिक्कारने लगा कि जिसे बहन माना उसको इन हाथो ने स्पर्श किया ऐसा सोचकर गोराजी ने अपने हाथों को काट डाला। ऐसा होते देखकर पत्नी भयभीत हो गई तथा रोने लगी।
गोराजी के हाथ कट जाने से बर्तन नहीं बनने की वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। जब भगवान ने देखा की भक्त की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है तो भक्त की परेशानियों को दुर करने के लिए भगवान विट्ठलनाथ ने कमलानाथ नामक कुम्हार का वेश धरा, गरूड़ को गधा बनाया तथा लक्ष्मी जी को कुम्हारन बनाया ओर गोराजी के घर पर आकर कहने लगे।
भगत जी मेरे देश में अकाल पड़ा है अत: हम ईधर आ गये है हमें नौकरी पर रखो। गोराजी ने कहां मै गरीब हुं भला मैं तुम्हे क्या दे सकता हुं। तुम किसी ओर के पास जाकर नौकरी करों। तब भगवान बोले की मुझे पैसा नहीं चाहिए केवल दो वक्त का भोजन दे देना। गोराजी ने हामी भर दी।
भगवान सुंदर बर्तन बनाने लगे जिससे गोराजी की आय भी बढ़ गई। एक बार संत नामदेव जी विट्ठलनाथजी के दर्शन को मंदिर में गये तो उन्हें मूर्ति में भगवान का तेज नहीं दिखा तो भगवान का दर्शन करने के लिए नामदेवजी ने जैसे ही ध्यान लगाया तब पता चला कि भगवान तो गोराजी कुम्हार के यहां नौकरी कर रहे है।
तो नामदेवजी गोराजी के घर पर गये। भक्त नामदेवजी को आता देखकर गोराजी प्रसन्न हुए तथा आसन दिया। तभी भगवान नामदेवजी को आता देखकर मिट्टी के पीछे छिप गये तथा बाद में मंदिर चले गये। जब नामदेवजी ने गोराजी को बताया कि तुमने भगवान को तकलीफ दी व तुम्हारे यहां भगवान नौकर रहे तो गोराजी पश्चाताप करने लगे।
फिर अपनी पत्नी व पुत्र के साथ भगवान के पास गये तथा भगवान से क्षमायाचना करने लगे तब भगवान ने पुछा कि तुम अपनी पत्नी के साथ संबंध क्यों नहीं रखते हो। तब गोराजी ने बताया की सासुजी के वचन के कारण में संबंध नहीं रख रहा हूं।
तब भगवान ने कहां कि पहली पत्नी का त्याग किया उसका भी निमित्त तुमने मुझे बनाया है अत: आज से मेरी आज्ञा है कि तुम दोनों स्त्रियों के साथ प्रसन्न रहो। तभी गोराजी के हाथ भी ठीक हो गये। भक्त गोराजी अच्छे से अपनी दोनों पत्नी व बच्चे के साथ अच्छे से रहने लगे।