thand se bachne ke upay-21 दिसम्बर 2018 शुक्रवार से शिशिर ऋतु प्रारंभ ।शीत ऋतु के अंतर्गत हेमंत और शिशिर ऋतुएँ आती हैं। इस काल में चन्द्रमा की शक्ति विशेष प्रभावशाली होती है।
इसलिए इस ऋतु में औषधियों, वृक्ष, पृथ्वी व जल में मधुरता, स्निग्धता व पौष्टिकता की वृद्धि होती है, जिससे प्राणिमात्र पुष्ट व बलवान होते हैं। इन दिनों शरीर में कफ का संचय व पित्त का शमन होता है।
शीत ऋतु में स्वाभाविक रूप से जठराग्नि तीव्र होने से पाचनशक्ति प्रबल रहती है। इस समय लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है।आहारः-
आहारः-
- शीत ऋतु में खारा तथा मधुर रसप्रधान आहार लेना चाहिए।
2. पचने में भारी, पौष्टिकता से भरपूर, गरम व स्निग्ध प्रकृति के, घी से बने पदार्थों का यथायोग्य सेवन करना चाहिए।
3. मौसमी फल व शाक, दूध, रबड़ी, घी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, तिल, नारियल, मेथी, पीपल, सूखा मेवा तथा अन्य पौष्टिक पदार्थ इस ऋतु में सेवन योग्य माने जाते हैं।
रात को भिगोये हुए चने (खूब चबा-चबाकर खायें), मूँगफली, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़ा, आँवला आदि कण खर्च में खाये जाने वाले पौष्टिक पदार्थ हैं।
4. इस ऋतु में बर्फ अथवा बर्फ का या फ्रिज का पानी,रूखे-सूखे, कसैले, तीखे तथा कड़वे रसप्रधानद्रव्यों, वातकारक और बासी पदार्थोंका सेवन न करें। शीत प्रकृति के पदार्थों का अति सेवन न करें। हलका व कम भोजन भीनिषिद्ध है।
5. इन दिनों में खटाई का अधिक प्रयोग न करें,जिससे कफ का प्रकोप न हो और खाँसी, श्वास (दमा), नजला, जुकाम आदिव्याधियाँ न हों।
ताजा दही, छाछ, नींबू आदि का सेवन कर सकते हैं। भूख को मारनाया समय पर भोजन न करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
शीतकाल में जठराग्नि केप्रबल होने पर उसके बल के अनुसार पौष्टिक और भारी आहाररूपी ईंधन नहीं मिलने पर यहबढ़ी हुई अग्नि शरीर की धातुओं को जलाने लगती है
जिससे वात कुपित होने लगता है।अतः इस ऋतु में उपवास भी अधिक नहीं करना चाहिए।thand se bachne ke upay
विहार:-
1.शरीर को ठंडी हवा के सम्पर्क में अधिक देर तक न आने दें।
2.प्रतिदिनप्रातःकाल दौड़ लगाना, शुद्ध वायु सेवनहेतु भ्रमण, शरीर की तेलमालिश,व्यायाम, कसरत व योगासन करने चाहिए।
3.जिनकी तासीर ठंडीहो, वे इस ऋतु में गुनगुनेगर्म जल से स्नान करें। अधिक गर्म जल का प्रयोग न करें।
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हाथ-पैर धोने में भी यदिगुनगुने पानी किया जाय तो हितकर होगा।
4.शरीर की चंपीकरवाना एवं यदि कुश्ती अथवा अन्य कसरतें आती हों तो उन्हें करना हितावह है।
5.तेलमालिश के बादशरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना हितकारी है।
6.कमरे एवं शरीर कोथोड़ा गर्म रखें। सूती, मोटे तथा ऊनीवस्त्र इस मौसम में लाभकारी होते हैं।
7.प्रातःकाल सूर्य की किरणों का सेवन करें। पैर ठंडे न हों, इस हेत जुराबेंअथवा जूतें पहनें।
बिस्तर, कुर्सी अथवा बैठनेके स्थान पर कम्बल, चटाई, अथवा टाट की बोरीबिछाकर ही बैठें। सूती कपड़े पर न बैठें।
8.इन दिनों स्कूटरजैसे दुपहिया खुले वाहनों द्वारा लम्बा सफर न करते हुए बस, रेल, कार जैसे वाहनोंसे ही सफर करने का प्रयास करें।
9.दशमूलारिष्ट,लोहासव, अश्वगंधारिष्ट, च्यवनप्राश अथवा अश्वगंधावलेह अथवा अश्वगंधाचूर्ण जैसे देशी व आयुर्वेदिकऔषधियों का सेवन करने से वर्ष भर के लिए पर्याप्त शक्ति का संचय किया जा सकता है।
10.हेमंत ऋतु में बड़ी हरड़ के चूर्ण में आधा भाग सोंठ काचूर्ण मिलाकर तथा शिशिर ऋतु में अष्टमांश (आठवां भाग) पीपल मिलाकर 2 से 3 ग्राम मिश्रण प्रातः लेना लाभदायी है। यह उत्तम रसायन है।
वैद्य रवीन्द्र गौतम. 9414752038.
चिकित्साधिकारी
आयुर्वेद- विभाग ,राजस्थान- सरकार।