krishna arjun jivandarshan

मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं ऐसा अर्जुन ने क्यों कहां ?

अध्याय प्रथम
श्लोक 31 से 32
मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं ऐसा अर्जुन ने क्यों कहां ?
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।।31।।
अर्थः-
हे केशव युद्ध में अपने ही लोगो को मारनेमारने में मुझे कोइ कल्याण नहीं दिखता मेहैं मुझे अच्छे शकुन नहीं हो रहे है ।
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ।।32।।
अर्थः-
हे कृष्ण न तो में युद्ध में विजय होना चाहता हूं न राज्य सुख को चाहता हूं। है गोविन्द ऐसे राज्यराज्य सुख के भोगों से क्या लाभ है।

तात्पर्यः- अर्जुन सोचता है कि अपने सगे-सम्बन्धियों को मारने से कोइ लाभ नहीं होगा क्योंकि अपने स्वजनों के मरने से चित्त दुःखी हो जाएगा तथा उन्हें मारने से पाप लगेगा। इन्हें मारने से इस लोक में भा दुःख प्राप्त होगा तथा परलोक में भी दुःख प्राप्त होगा ऐसे राज्य सुख के भोग करने से क्या लाभ ?
हे केशव में लक्षणों के विपरीत देख रहा हूं यह कहकर अर्जुन कृष्ण को बताना चाहता है कि शकुन अच्छे नहीं हो रहे है अतः हमें असफलता प्राप्त होगी। हम भी आज कोइ भी कार्य प्रारम्भ करना चाहते है तो शकुन-अपशकुन को महत्व देते है अर्जुन के मन में भी अन्धविश्वास डेरा डाले हुए है ऐसा प्रतीत होता है। आजकल जो अन्धविश्वास प्रचलित है उनको नही मानने वाले को हम नास्तिक समझते है तथा जो व्यक्ति अन्धविश्वासो का पालन करता है उसे धार्मिक मानते है वह पुरी तरह असत्य है ।




हमारे मन में भा तारे का टुटना,बिल्ली का रास्ता काटना,छीके आना,विधवा का मार्ग में मिलना यहां तक की कार्य के शुभारंभ में जो नारीयल फोंडते है वह खराब निकल जाय तो हम शंका से भर जाते है तथा कार्य के असफल होने की कल्पना करने लगते है। अंधविश्वास के जाल से हम तब तक मुक्त नहीं हो सकते जब तक कोइ सदगुरू हमाहमारे चित्त के अहंकार को दुर नहीं करे तथा चित्त में परमात्मा के प्रेम की ज्योत न जलावे।
यदि शकुन-अपशकुन से ही सफलता व असफलता मिलती तो कर्म का महत्व ही नहीं रह जाता। अंधविश्वास मन को कमजोर करते है यदि बुरा शकुन हो जाये तो मन में असफलता का डर बैठ जाता है तथा यहीं असफलता का डर भविष्य में हमें असफल कर देता है ।
जो कर्मक्षेत्र के योद्धा है वह अपनेअपने कर्म पर विश्वास रखतेरखते है तथा सफलता की कामना मन में लिये पूर्ण मनोयोग से काम में जुट जाते है सफलता ऐसे बिरलों के कदम चुमती है।
कहते है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत मन को कमजोर करने वाले अंधविश्वासो को छोड़ दो।

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