Guru Bhakti in hindi-जब तक आत्मानुभव नहीं होता तब तक व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ नहीं होती । आत्म-तत्व का ज्ञान होने पर परमात्मा तत्व की समझ विकसित होती है क्योंकि दोनों एक ही है।
जैसे शक्कर के अणु का गुणधर्म समझ जाने पर पुरी शक्कर के बारे में जान सकते है।
उसी प्रकार इस शरीर रूपी पिण्ड़ का ज्ञान हो जाने पर व्यक्ति में पुरे ब्रहमाण्ड़ को समझने की समझ विकसित हो जाती है।
जितने भी धर्म सम्प्रदाय है उन्होंने गुरू को महान बताया है तथा कहां गया है कि गुरू के बिना ज्ञान नहीं होता। मैंने भी यह ज्ञान गुरू भक्ति से प्राप्त किया है।
यह अंदर की यात्रा है यदि गुरू नहीं है तो व्यक्ति अन्दर भटकता रहता है । गुरू मार्गदर्शक होता है क्योंकि उसने यह यात्रा की है अत: वह हमारी परेशानियों को अच्छी तरह समझ सकता है ।
हम कहीं घुमने जाते है तो जो पहले उस स्थान पर गया हो उसकी राय लेते है तो आध्यात्मिक यात्रा तो लम्बी यात्रा है इसमें गुरू की उपस्थिति अत्यन्त आवश्यक है।
जैसे किसी पदार्थ के निर्माण में उत्प्रेरक की आवश्यकता होती है… उत्प्रेरक के बिना पदार्थ नहीं बनता उत्प्रेरक स्वयं क्रिया में भाग नहीं लेता परन्तु उत्प्रेरक की उपस्थिति आवश्यक है…
उसी प्रकार आध्यात्मिक यात्रा बिना गुरू के अच्छी तरह पूर्ण नहीं हो सकती । गुरू की उपस्थिति आवश्यक है । कई व्यक्ति देवी-देवताओं को गुरू मान कर यात्रा प्रारम्भ करते है कोई हनुमान तो कोई शिव को अपना गुरू मानकर चलते है
परन्तु मेरा मानना है कि जीवित गुरू आवश्यक है।Guru Bhakti in hindi
कई व्यक्ति कहते है कि बिना गुरू के वह इस रहस्य को समझ लेंगे तो वह काफी मुश्किल है।
जब मार्ग में परेशानियाँ आती है जब जीवित गुरू तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा परन्तु देवता कैसे आपका मार्गदर्शन करेंगे अत: जीवित गुरू का होना आवश्यक है ।
गुरू भक्ति कैसे करे पार्ट-2 (कुण्डलिनी योग)
आप सब में स्थित परम् गुरू को प्रणाम करता हूं तथा आप सबके गुरू को मैं प्रणाम करता हूं । आपके गुरू ही मेरे माध्यम से आपको आध्यात्मिक मार्गदर्शन दे रहे है…
केवल मै जो कहना चाहता हूं उन शब्दों पर ध्यान न देकर जो मै समझाना चाहता हूं उसे समझे तथा अपनी आध्यात्मिक यात्रा को अपने गुरूदेव को प्रणाम कर प्रारम्भ करें।
गुरु भक्ति कैसे करे (Guru Bhakti in hindi)
जब आत्मतत्व को प्राप्त कर ले तो मुझे भुल जाय तथा अपने गुरू को याद रखे तथा अन्य को यह ज्ञान बाँटे। गुरू की आज्ञा अनुसार चले यही सफलता की कुंजी है।
गुरू से प्रेम करों गुरूदेव ही सबमें विघमान है। गुरू को ही भगवान मानों तथा गुरू वचनों को ही सदा सत्य माने।
प्रत्येक व्यक्ति में गुरूदेव ही विराजमान है यहां तक कि तुम्हारे अंदर भी गुरूदेव ही विराजमान है। गुरू ध्यान ही सफलता की सीढ़ी है। गुरू ने तुम्हे कोई मंत्र दिया है तो उस गुरू मंत्र को प्रेम से जपो।
मानसिक जप श्रेष्ट होता है इसलिए गुरू मंत्र का मानसिक जप करों लेकिन ध्यान रखना कि मानसिक जप वाहन चलाते वक्त नहीं करना है। वरना दुर्घटना होने का खतरा रहता है।
गुरू मंत्र को प्रेम से जपना ही गुरू भक्ति है । यदि तुम पुस्तक से कोई भी मंत्र लेकर जप करोंगे तो तुम्हे सफलता प्राप्त करने में काफी समय लग जाता है
परन्तु गुरू जब कोई मंत्र देता है तो उसके साथ गुरू के आशीर्वाद की शक्ति होती है मंत्र स्वयं ही जागृत होता है इसलिए जल्दी सफलता मिलती है।Guru Bhakti in hindi
लोग बहुत सारे मंत्रों को जपते है मेरा मानना है कि एक मंत्र ही तुम्हे पूर्णता तक पहुंचा देता है क्योंकि गुरू मंत्र ही प्रधान होता है। एक ही मंत्र लेकर चलेंगे तो सफलता जल्दी प्राप्त होगी।
गुरू मंत्र का मानसिक जप करने से गुरू का आशीर्वाद सदा आप पर बना रहता है। आप भौतिक रूप से तो सुखी रहते ही हो साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होता है।
धीरे-धीरे देहभाव आप भुलने लगते है । कई व्यक्ति बैठकर माला लेकर जाप करते है तब कभी-कभी तंद्रा सी आ जाता है तो माला हाथ से छुट जाती है परन्तु माला लेकर आप फिर से जप शुरू कर देते है।
गुरू भक्ति कैसे करे पार्ट-3 (Guru bhakti kaise kare in hindi )
यह अच्छी बात नहीं है आप उच्च स्थिति से निम्न स्थिति की ओर आ जाते हो क्योंकि माला हाथ से छुट जाती है तथा उस समय तुम्हारा देहभाव खत्म हो जाता है। यह अच्छी स्थिति है।
तब जप करते करते जप रूक जाता है काफी देर बैठने पर भी हमें ऐसा लगता है कि हम अभी ही बैठे है यह अच्छी स्थिति है। मानसिक जप परमात्मा प्राप्ति की अच्छी विधि है इस विधि से ही कई व्यक्तियों ने परमात्मा का अनुभव किया है।
थोड़े दिन जप करने के बाद कई बार गृहस्थ धर्म में आने वाली परेशानियों के कारण अभ्यास छुट जाता है अत: अभ्यास न छुटे इसके लिए सतसंग आवश्यक है।Guru Bhakti in hindi
समय-समय पर गुरूओं के सतसंग में जाए उनकीं बात सुने तो फिर से आप में नया जोश आएगा तथा अभ्यास नहीं छुटेगा।
बहुत बार देखा गया है कि व्यक्ति जिस गुरू से दीक्षा लेते है उसी गुरू के सतसंग में जाते है अन्य कोई गुरू उनकें शहर में सतसंग करने आए तो वे उनके सतसंग में नहीं जाते।
ऐसा न करे बल्कि ऐसा माने की आपके गुरू ही उनके माध्यम से आध्यात्मिक संदेश आपको देना चाहते है ।
सबका सतसंग सुने तथा अभ्यास जारी रखे आपको बार-बार गुरू बदलने की आवश्यकता नहीं है तथा आप दुसरे संप्रदाय के गुरूओं से द्वेश रखोगे तो आध्यात्मिक यात्रा रूक जाएगी।
यदि समय हो तो शहर में कोई भी धर्म गुरू आए उसे जरूर सुनना चाहिए।
वहां से भी आपके गुरू कोई न कोई मार्गदर्शन आपको देंगे। समय हो तो अपने धर्म स्थान पर जाकर भी बैठना चाहिए। गुरू तत्व को प्राप्त करने की विभिन्न विधियों की मै चर्चा आगे करूंगा।
गुरु भक्ति आध्यत्म का गहरा रहस्य है। आपने सच लिखा। यही जीवन आनंद है