!! ऊँ श्री गुरूवे नम: !! Adhyatmik vichar in hindi -जीवन दर्शन एक ज़िन्दगी जीने का तरीका है ।
Adhyatmik vichar in hindi -जीवन दर्शन एक ज़िन्दगी जीने का तरीका है । आप किसी भी संप्रदाय को मानते हो परन्तु दुनियां में मानव धर्म सर्वोपरि है । मानव अद्भुत प्राणि है जब से पैदा हुआ तब से मन में स्वयं को जानने की जिज्ञासा हुई की मै कौन हूं ये प्रकृति क्या है ? ये किसने उत्पन्न की ? प्रकृति के नियम क्या है ? क्या कोई शक्ति है जो इस सृष्टि का संचालन करती है ?
इन प्रश्नों का उत्तर पाने का मानव ने प्रयत्न किया तथा सृष्टि के रहस्यों को समझा व जाना । मृत्यु क्या है ? क्या इस लोक से परे कोई ओर लोक है ? इस संसार को चलाने वाली शक्ति क्या है ? कैसे इस शक्ति को प्राप्त करके मानव अपने जीवन को आन्नदपूर्ण बना सकता है ?
इन प्रश्नों का उत्तर मानव ने प्राप्त किया तो उसने सोचा की अन्य लोगों को भी इस आन्नद के रहस्य को बताया जाए ताकि सभी मानव का जीवन सुखी तथा आन्नदपूर्ण बन सके ।
जिन लोगों ने रहस्य जैसा अनुभव किया उसकों सभ को बताने लगे चुंकि इन्होंने लोगों को ज्ञान देने का रास्ता चुना , लोगों की भलाई का मार्ग चुना वे गुरू कहलाए।
इन गुरूओं तथा महापुरूषों ने परमात्मा के रहस्य को खुद अनुभव कर अपने हृदय के अंधकार को दुर कर ज्ञान प्राप्त किया तथा लोगों को इस ज्ञान को बांटा जिससे सभी प्रेम-आनंद प्राप्त करे ।
तथा जिस प्रकार गुरू सदैव चौबीसों घंटे आनंद में रहते है वैसे सभी मानव आनंदपूर्ण हो जाए तथा सारा संसार एक कुटुम्ब की भांती प्रेम से रहे तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना विकसित की ।
प्रारम्भ में केवल एक ही धर्म था सनातन धर्म ।
आप किसी भी गुरू को मानते हो, किसी भी संप्रदाय या धर्म को हो या नास्तिक हो सभी को जीवन दर्शन के माध्यम से आध्यात्मिक चेतना विकसित करने का प्रयत्न किया जायेगा।Adhyatmik vichar in hindi
आप निर्गुण उपासक हो या सगुण उपासक आपकी कोई भी विचारधारा हो आपको आत्मचेतना को विकसित करने की जानकारी भी आपको प्राप्त होगी ।
आप किसी भी विचारधारा के समर्थक हो अर्थात किसी भी धर्म को मानते हो परन्तु वह विचारधारा यदि मानव विरोधी हो तो सोचने की आवश्यकता है।
हमारी ज़िन्दगी में धर्मों का महत्व – आध्यात्मिक विचार
यदि हम यह मानते है कि हमारी जो विचारधारा है उस विचारधारा उस विचारधारा के व्यक्तियों को ही संसार में रहने का अधिकार है अन्य को नहीं तो समझो की विचारधारा का यह कट्टरपन संसार की सुन्दरता को समाप्त कर देगा।
यदि हम किसी बगीचे में जाए तो एक ही तरह के फुल पुरे बगीचे में लगें हो तो क्या हमें वह बगीचा अच्छा लगेगा ? अथवा उस बगीचे में भांति-भांति के फूल खुले हो वह बगीचा ज्यादा सुन्दर लगेगा
ठहरों एक क्षण तथा सोचों केवल तुम्हारीं विचारधारा से मेल नहीं खाने वाले व्यक्ति को भी इस दुनियां में रहने का पुरा अधिकार है । क्योकिं वह भी मानव है तथा उसे भी उसी शक्ति ने पैदा किया है जिसे तुमको पैदा किया है ।
सभी से प्रेम करों, किसी से भी घृणा न करो,किसी के प्रति मन में द्वेष न रखो अन्यथा तुम्हारे स्वयं का ही पतन होगा ।