always trust yourself in hindi-बचपन में हमने स्कूल में एक कहानी पढ़ी थी. बचपन था इसलिए कहानी ही थी. बड़े हुए तो समझ में आया कहानी नहीं सीख थी. सबक था.
कहानी आत्मनिर्भर थी. खुद पर भरोसे की थी. दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय खुद कदम उठाने की थी.आपके साथ भी कहानी को फटाफट बांटते हैं.
अच्छी तरह तो याद नहीं. जितनी याद आ रही है उतनी बांटते हैं.always trust yourself in hindi
एक खेत में चिड़िया रहती थी. उसके तीन नए नवेले बच्चे भी उसके साथ ही रहते थे.
खेत में एक पेड़ था उसी पर घोंसले में चिड़िया अपने बच्चों को बड़ा करने की जद्दोजहद में जुटी रहती थी. खेत का मालिक आलसी था.
अपने काम के लिए हमेशा ही दूसरों पर निर्भर रहता था. समय बीत रहा था. खेती की तैयारी करनी थी. नया सीजन था.
पेड़ खेती में बाधा बन रहा था. क्योंकि पक्षी आकर उस पर रुक जाते थे. फसल को नुकसान पहुंचाते थे. एक दिन मालिक खेत पर आया.
उसके मन में आया पेड़ कटवा दिया जाए तो समस्या हल हो जाएगी. अपने साथ आए शख्स से उसने ये बात शेयर की. साथ ही कहा कि कल अमुक शख्स को भेजकर पेड़ कटवा देंगे.
चिड़िया के बच्चे ये सुनकर डर गए कि पेड़ कट जाएगा. यदि ऐसा हुआ तो वे कहां जाएंगे ? उनका घर उजड़ जाएगा. वगैरह वगैरह.
शाम को चिड़िया आई. बच्चों ने उसे अपनी चिंता बताई. सारी बात सुनकर चिड़िया बोली, डरो नहीं, कुछ नहीं होगा. अगला दिन आया. खेत पर कोई नहीं आया.
चिड़िया के बच्चे हैरान. इसी तरह कुछ दिन निकले. एक बार फिर ऐसा ही हुआ. खेत के मालिक की वही बात. बच्चों की वही चिंता. चिड़िया की भी वही दलील.
अगले दिन भी जस के तस. बच्चे फिर हैरान. ऐसा ही चलता रहा. करीब महीने भर का समय बीत गया. कोई पेड़ काटने नहीं आया. चिंड़िया और बच्चे आराम से रहते रहे.
एक दिन फिर खेत का मालिक आया. इस बार थोड़ा चिंतित था. अपने साथ आए शख्स से इस बार उसने कहा,
अब किसी और के बजाय खुद ही काम करना होगा. कल भले ही खुद काम करना पड़े लेकिन पेड़ को हटाना ही होगा. ऐसा कहकर वह चला गया.
बच्चों ने शाम को घर लौटी चिड़िया से पूरी बात बताई. इस बार चिड़िया ने पहले वाला जवाब नहीं दिया.
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उसने बच्चों से कहा कल सवेरे हम दूसरे घर में चले जाएंगे. बच्चे हैरान रह गए.
अपनी मां से ऐसी बात उन्होंने पहले सुनी जो नहीं थी. सुबह होते ही बच्चों समेत चिड़िया ने दूसरे ठिकाने के लिए उड़ान भर दी.
पहले से ही वह तैयारी कर रही थी. इधर चिड़िया ने पेड़ छोड़ा उधर खेत का मालिक खुद वहां आया. इस बार उसने खुद पेड़ काट दिया.
उधर चिड़िया के बच्चों ने अपनी मां से सवाल किया कि आखिर पहले उसने क्यों खेत के मालिक की बातों को गंभीरता से नहीं लिया.
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तब चिड़िया बोली, बच्चो जब तक आदमी अपने काम के लिए इंसान खुद कदम नहीं उठाता तब तक उस काम के होने की संभावना बहुत कम होती है.
आखिरी बार जब खेत के मालिक ने खुद पेड़ काटने की बात कही तो सका मतलब था कि वह इसके लिए तैयार था. इसलिए हमारे पास ठिकाना छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
ये थी कहानी. हकीकत में भी क्या हमारे साथ ऐसा नहीं होता है ? सोचिएगा. वो काम जो हम करने की ठान लेते हैं. कर के ही दम लेते हैं. जरा सा किसी पर निर्भर हुए.
फिर काम कब होगा. इसका भरोसा नहीं रहता. छोटे काम हों या बड़े. जरा सा सोचेंगे तो पाएंगे कि वाकई बात में सच्चाई है.
यही जिंदगी का फलसफा भी है. दो हाथ, दो पैर, एक दिमाग और बाकी के अंग सबको मिले हैं. इसलिए कि अपने काम के लिए खुद को झोंको. काम होगा ही.
सफल लोगों की जिंदगी का ये एक बड़ा पहलू होता है. यकीन न हो तो किसी भी सफल व्यक्ति का किस्सा ले लीजिए.
कदम उसी ने उठाया. मुसीबतें उसी ने झेलीं. हर समस्या से वही जूझा. और आखिर में जीत गया.
खुद पर भरोसा और खुद पर निर्भरता बड़ी बात होती है. यकीन न हो तो आजमा कर देखिए.
आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही. मजा भी आएगा. जूझने का भी. और हां जिंदगी का भी…!!