Bade bujurg in Hindi-मुझे मेरी दादी से बहुत लगाव था. हम सभी (भाई-बहन) उन्हें प्यार से ‘बऊ’ कहते थे. दरअसल बुंदेलखंडी में दादी के लिए यही शब्द उपयोग होता है.
हमारी दादी अक्सर कहा करती थीं ‘हमारो बब्लू ‘कलेक्धर’ (कलेक्टर) बन है.’
ये उनका स्नेह था मेरे प्रति. स्कूल और कॉलेज के दौर में अक्सर रात में घर देर से आना होता था तो घर में एंट्री का जरिया दादी ही होती थीं.
उनके कमरे की खिड़की से फुसफुसाकर ‘बऊ-बऊ दरवाजा खोल दो’ पुकारना और फिर उनके पूछने पर झूठ बोल देना कि कोई दरवाजा नहीं खोल रहा है.
साथ में ये भी कह देना कि ‘किसी को बताना मत कितने बजे आए थे.’ दादी के साथ हमारा अनोखा रिश्ता था.
उनका दिन भर आंखें गड़ाकर भागवत पढ़ते रहना और फिर उसकी कहानियां सुनाना. हर अध्याय उन्हें वैसे तो याद था लेकिन फिर भी जब वो पढ़तीं बहुत मजा आता था
क्योंकि कई शब्दों के उनके उच्चारण सुनने लायक होते थे. ये शब्द दरअसल कठिन होते थे.
खैर, अब दूसरा किस्सा- ‘खेलोगे कूदोगे बनोगे नवाब, पढ़ोगे लिखोगे होओगे खराब’ दो दशक पहले ये लाइन हमारी पड़ोसी ‘दादी’ कहा करती थीं.
ये वाक्य कहने के साथ ही वे मुस्कुरा देती थीं. उम्र उनकी बहुत ज्यादा थी. शरीर एकदम दुबला पतला और कद नाटा. उनके मुंह से निकलने वाली बात भी उतनी ऊर्जा से नहीं निकल पाती थी.
उसे समझना पड़ता था. मुझे बचपन से ही बुजुर्गों से एक विशेष लगाव रहा है. उनसे बातें करना, उनके साथ मजाक करना,
उनकी चिंता करना और उन्हें अपना दोस्त बना लेना. ये किस्सा उस समय से शुरू हुआ जबसे मैंने होश संभाला.
जब भी उन्हें किसी चीज की जरूरत होती वो हमारे घर आतीं और फिर अपनी समस्याओं के साथ अपनी जरूरतों की लिस्ट थमातीं.
Bade bujurg in Hindi
इनमें से एक चीज होती ‘चाय’ जो उन्हें अतिप्रिय थी. बस वे चाय पीती जातीं और अपनी मुसीबतों की कथा कहती जातीं.
अब न हमारी दादी दुनिया में हैं और न पड़ोसी दादी. लेकिन आजकल हमारी कॉलोनी में रहने वाली ‘अम्मां’ से लगाव हो गया है.
दुबली पतली हैं. 7 बेटे हैं उनके. लेकिन मेरे लिए उनका प्यार ऐसा है कि बस ये पता चल जाए कि मैं शहर में आया हूं तो पलक झपकते ही मिलने आ जाती हैं.
फिर उनके कई सारे सवाल. उनके मन की ढेरों बातें, पैरों का दर्द और घर की समस्याओं पर ढेर सारी बातें. वे कभी चाय नहीं पीतीं किसी के घर. एक बार उन्हें मैंने जबर्दस्ती चाय पिला दी.
अचानक उनके हाथों से चाय के गिलास में धक्का लग गया जिससे वो गिर गई.Bade bujurg in Hindi
फिर तो जाने कितनी कहानियां लेकिन फिर उन्होंने बाहर की चाय हमेशा के लिए बंद कर दी ये कहकर कि ‘मैंने चाय पी न इसलिए सजा मिल गई.’
आज भी जब मैं अपने शहर जाता हूं अम्मां से मिले बगैर नहीं आता.
आखिर मैं ये दादियों की कहानियां क्यों लिख रहा हूं. वो दरअसल इसलिए कि इनके पास बैठकर इनसे बातें करके मुझे ढेरों सुकून मिलता है.
मुझे ऐसा लगता है कि बुजुर्ग हमारी पूंजी हैं. उनके साथ जितना समय बिताया जाए उतना अच्छा है.
एक तो वे जिंदगी के अनुभव हमसे साझा करते हैं और दूसरा उनसे मिलने वाली सीख जीवन में काम जरूर आती है.
इन लोगों ने जीवन के उस दौर को देखा है जब समस्याएं विकट थीं और समाधान बेहद कम. घर-परिवार मोहल्ला पड़ोस भी उस दौर में एक जीवन होता था. आज के दौर की तरह इंसान अकेला नहीं था.
वैसे इससे भी ज्यादा जरूरी बात ये है कि आज बुजुर्गों के लिए किसी के पास वक्त नहीं है. न उनकी सुनने का, न उन्हें जानने का. वे घुट रहे हैं.
हमारी जिंदगी की बुनियाद को मजबूत कर देने के बाद वे अकेले हैं. हालांकि वो ये जानते हैं कि समय बदल गया है, इसलिए हालात के लिए खुद को तैयार भी कर चुके हैं.
मैं अक्सर ऐसा सोचता हूं कि मेरी कोई सुनने वाला न हो तो क्या हाल होंगे. मेरे साथ बातें करने वाला कोई न हो तो मुझ पर क्या बीतेगी.
मेरी परेशानियां, मेरी खुशियां मैं किससे शेयर करूं ? यही बात मुझे बुजुर्गों के पास ले जाती है और मेरी उनसे दोस्ती करा देती है.
आज मैं अपनी दादी की बातें करूं या पास पड़ोस की दादियों की अपने मम्मी पापा की बात करूं या अपने दोस्तों के मदर-फादर की सबसे मेरा नाता दोस्ती का है.
मुझे याद है मैं एक दिन भी यदि अपने मित्र के घर नहीं जा पाता था तो उसके पिताजी ये जरूर पूछते थे कि आज ‘नेमा’ नहीं आया क्या ?
ये बात मेरे उस अजीज मित्र ने ही मुझे बताई थी. आज यही हाल उसकी मम्मी का भी है. अब तो शहर के बाहर हूं लेकिन जब मिलता हूं तो बच्चे की तरह डांटती हैं.
ये तो मैं नहीं जानता कि मेरी बुजुर्गों से इतनी करीबी कैसे हो जाती है लेकिन मैं ऐसा मानता हूं कि उनके साथ जब भी मैं बैठता हूं तो सुकून पाता हूं और उन्हें भी खुशी का अहसास होता है.
उनके इस अहसास के लिए ही मम्मी-पापा की सालगिरह के दिन अचानक सुबह-सुबह घर पहुंच गया था.
ये अहसास ही हैं जो जिंदगी की असली कमाई हैं और ताकत भी. वरना पैसों और दिखावे के पीछे अंधी होती जा रही दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है जो असली खुशी दे सके न विदेशों की सैर, न पैसों की बरसात और न ही बड़े बड़े बंगले और गाड़ियां….
Babloo jo bhi Likha mene feel Kiya tumne mere man ke bhav ko shawdo mai piro diya… Bahut Shandar Dil ki baat apno ke sath..
Thanks