श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम-Benefits of shankh playing in hindi
Benefits of shankh playing in hindi-प्रथम अध्याय – श्लोक 14 से 19
“तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |
माधव: पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङखौ प्रदध्मतुः||14||
अर्थ –इसके बाद सफेद घोड़ो से युक्त श्रेष्ठ रथ में बैठे हुए कृष्ण भगवान और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बताये।
“ पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः |
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ||15||
अर्थ – श्री कृष्ण भगवान ने पांजन्य शंख, अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख तथा भीमसेन ने पौण्डनामक महाशंख बजाया|
“ अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |
नकुलः सहदेवश्र्च सुघोषमणिपुष्पकौ||16||
अर्थ – कुन्ती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंख बजाये।
“काश्यश्र्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः |
धृष्टघुमो विराटश्र्च सात्यकिश्र्चापराजितः||17||
“द्रुपदो द्रौपदेयाश्र्च सर्वशः पृथिवीपते |
सौभद्रश्र्च महाबाहुः शङखान्दध्मुः पृथक् पृथक्||18||
अर्थ – श्रेष्ठ धनुषधारी काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टधुम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि,राजा द्रुपद तथा द्रोपदी के पॉचो पुत्रो और सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु इन सभी ने अपने-अपने शंख बजाये।
“ स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्|
नभश्र्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ||19||
अर्थ – शंखो से उत्पन्न भयानक ध्वनि ने आकाश और पृथ्वी को गुजायमान करते हुए धृतराष्ट्र की सेना के हृदय विदीर्ण कर दिये।
कौरवो की सेना के शंख बजाना सुनकर पांडव सेना के वीरो ने भी शंख बजाये। शंख बजाने से जो ध्वनि उत्पन्न हुई उसके कम्पन्न ब्रह्माण्ड़ में फैल गये तथा ऐसा लगने लगा मानों इस शंख की ध्वनि से संसार नष्ट हो जायेगा।
शंख को पवित्र माना गया है तथा पुजा-उपासना में शंख का उपयोग होता है। शंख में रखे हुए जल को यदि घर में छिडका जाय तो नकारात्मक उर्जाओं को खत्म करता है
शंख को बजाने पर जो ध्वनि नाद पैदा होता है वह जहॉ तक इसकी आवाज जाती है नकारात्मक उर्जाओं को नष्ट करता है।
इसको बजाने पर फेफड़े मजबुत होते है तथा प्राणायाम करने से जो फायदे होते है वह शंख बजाने पर मिलते है।
शंख की पुजा आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाती है।
शंख बजाने पर एकाग्रता बढ़ती है तथा मन एक जगह केन्द्रित हो जाता है। प्रतिदिन शंख बजाना आपके शरीर व मन को स्वस्थ बनाता है। शंख बजाना कार्य के आरंभ का संकेत है।
युद्ध में शंख बजाते समय शंख की आवाज के साथ-साथ व्यक्ति अपनी निर्भयता तथा वीरता को,शत्रु को दिखाता है
युद्ध के लिए आये इन “कौरवो को देखो” भगवान के इस कथन का क्या प्रभाव पड़ा ?
शंख ध्वनि के साथ-साथ बजाने वाले की निर्भयता की मानसिकता शत्रु के ऊपर पड़ती है तथा शत्रु के हृदय में भय उत्पन्न करती है।
शंख बजाते समय बजाने वाला एकाग्र हो जाता है तथा ऐसा लगता है मानो शंख की ध्वनि विजयघोष कर रही हो तथा सामने वाले को पराजय का अनुभव करवा रही हो।
शंख बजाने वाला शंख में फूंक मारने में इतना अधिक एकाग्र हो जाता है कि वह उसके आस-पास के वातावरण एवं देह का भान भुल जाता है तथा देह का भान भुल जाने से उसके मन से भय निकल जाता है।
शंख बजाना सबसे उत्तम प्राणायाम है अर्थात प्राणो का विस्तार इससे होता है। शंख बजाने से व्यक्ति देह का भान भुलकर वैदेही बन जाता है तथा उसे परमात्मा का अनुभव भी होने लगता है।
अनहद नाद जब व्यक्ति सुनता है तो उसे अंदर से भी शंख की ध्वनि भी सुनाई पड़ती है। शंख की आवाज जहॉ तक जाती है वहॉ तक खराब जीवाणु,वायरस आदि खत्म हो जाते है।
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