अध्याय प्रथम (bhagvad geeta ka updesh in hindi)
श्लोक 26 से 27
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृ़नथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ़न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।26।।
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ||27 का पूर्वार्ध||
आध्यात्म में क्रोध का करूणा मे बदलना श्रेष्ठ गुण है
अर्थ – इसके बाद अर्जुन ने दोनो ही सेनाओ में स्बास्थित ताऊ, चाचाओं,दादाओ,परदादाओ,गुरूओ,मामाओ,भाईयो,पुत्रों पौत्रो,मित्रो,ससुरो आदि को देखा ||26|| bhagvad geeta ka updesh in hindi
उन उपस्थित समस्त बन्धुओं को देखकर कुन्ती पुत्र अर्जुन अन्यन्त करूणा से भर उठे तथा शोक से भरकर बोले ||27 का पूर्वार्ध||
तात्पर्य – युद्ध क्षेत्र में जब अर्जुन ने युद्ध करने के लिए आये हुए अपने भाई-बन्धुओ एवं गुरूगुरू को देखा साथ ही पितामह मामा तथा मित्र व अपने कुल के अनेक लोगों को देखा साथ ही उसने अपने परमप्रिय,स्नेही,ससुराल वाले,भतीजे आदि सारे सगे सम्बन्धियों को युद्ध के लिए तैयार देखा।
युद्ध के लिए आये इन “कौरवो को देखो” भगवान के इस कथन का क्या प्रभाव पड़ा ?
युद्ध में केवल ऐसे लोग ही नहीं थे जिन पर उसने उपकार किये थे। वरन् ऐसे कई लोग भी थे जिन्होने अर्जुन को अनेक संकटो से बचाया था।
युद्ध में आये हुए अपने ही गोत्र व पहचान वाले लोगों को देखकर अर्जुन के मन में यह भाव उत्पन्न हुआ की युद्ध में ये सारे मारे जायेगे।
bhagvad geeta ka updesh in hindi
ऐसा सोचकर मन ही मन में अर्जुन घबराया तथा उसके मन में अपने सगे सम्बन्धियों के लिए मन में दया व करूणा का भाव उत्पन्न हुआ।
अपने ऊपर हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने का जो भाव मन में था। कौरवों के प्रति जो क्रोध अर्जुन के मन में था वह मोह उत्पन्न हो जाने से करूणा में परिवर्तित हो गया।
व्यक्ति जब आध्यात्म में प्रवेश करता है तब क्रोध का रूपान्तरण करूणा में होना श्रेष्ठ माना गया हे।परन्तु अर्जुन के मन में करूणा उत्पन्न होना गलत था।bhagvad geeta ka updesh in hindi
इतिहास प्रमाण है कि सम्राट अशोक ने जब बुद्ध धर्म ग्रहण किया तथा युद्ध करना बंद कर दिया। उसके बाद उसके पुत्रों ने भी बुद्ध धर्म के अहिंसा के दृष्टिकोण को फैलाया यहाँ तक की सैनिको ने भी हथियार छोड़कर माला हाथ में ले ली
अर्थात अहिंसा को अपना लिया उसका परिणाम ये हुआ की भारत देश पर विदेशी आक्रमणकारीयों ने जब भारतवर्ष पर आक्रमण किया तो उनका विरोध कर सके ऐसा कोई नहीं था तथा विदेशी आक्रमणकारीयों ने भारत में अपने पैर फैला दिये।
आज भी देश की सीमा पर सैनिक भारत वर्ष की रक्षा कर रहे है यदि वे अपना कर्म छोड़कर सन्यासी के भँति मन में दुश्मन के प्रति करूणा का भाव ले आये तथा हथियार डाल दे तथा युद्ध न करे तो देश का क्या होगा।
अतः गीता कर्म का उपदेश करती है जो तुम्हारा कर्म है उसे ईमानदारी से करना है ।यदि आप अपने कर्म को निभाने में आना-कानी करते है तो वह गलत है।