shrimad bhagwat gita

श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय द्वितीय – श्लोक -13 देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।2.13।। अर्थः- जैसे जीवात्मा की इस शरीर में बालकपन,जवानी और

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what is soul ?

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय द्वितीय श्लोक – 12 न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12।। अर्थः-  न तो ऐसा ही

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bhagwad gita jivandarshan

श्रीमद् भगवद्गीता – द्वितीय अध्याय श्लोक – 10 व 11 तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।2.10।। अर्थः- हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अन्तर्यामी श्री कृष्ण

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shrimad bhagwat gita adhyay 2 shlok 8,9

श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय द्वितीय – श्लोक 8 व 9 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय द्वितीय – श्लोक 8 व 9न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धम्राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।।2.8।।अर्थः- भुमि

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guru tatav kya hai jivandarshan

श्रीमद्भगवद्गीता-अध्याय द्वितीय-श्लोक 7 (Mahabharata story in hindi) Mahabharata story in hindi-श्रीमद्भगवद्गीता-अध्याय द्वितीय-श्लोक 7कार्पण्यदोषोपहतस्वभावःपृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।यच्छ्रेयः स्यान्निश्िचतं ब्रूहि तन्मेशिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।  (Mahabharata story in

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shrimad bhagwatgeeta adhyay 2 shlok 6 jivandarshan

श्रीमद्भगवद्गीता – द्वितीय अध्याय – श्लोक 6 न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः। यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।।2.6।। अर्थः-

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shrimad bhagwatgeeta dwitiya adhyay jivandarshan

श्रीमद्भगवद्गीता – द्वितीय अध्याय :- श्लोक 4 व 5 अर्जुन उवाच कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन। इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।2.4।। अर्थः- अर्जुन बोले – हे

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Apne kartvya ka palan kare hindi

Apne kartvya ka palan kare hindi-श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय द्वितीय सञ्जय उवाचः- तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।2.1।। अर्थः- संजय बोले – उस प्रकार करूणा से

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अर्जुन रथ के पिछले भाग में क्यों चले गए ? अध्याय प्रथम का अंतिम श्लोक 47 सञ्जय उवाच एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्। विसृज्य सशरं चापं

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Shrimadbhagwadgita

क्या अर्जुन का युद्ध करने से मना करने का निर्णय सही था ? श्लोक 45 से 46 अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं

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सनातन कुलधर्म तथा जाति धर्म क्या है ? श्लोक 43 से 44 दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः। उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।43।। अर्थः- इन वर्णसंकर कारक दोषों से

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Pitro ki mukti ke liye kya kare jivandarshan

श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम श्लोक 41 से 42 पितरों की मुक्ति के लिए क्या करे ? अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।41।। अर्थः-

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