श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम-duryodhna ne apni sena mai utsah kaise bhara प्रथम अध्याय – श्लोक 11 से 13 “अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: | भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त:
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श्रीमद् भगवत् गीता आपकी दुविधा को दुर करती है भगवान ने अर्जुन की मन की दुविधा को दुर किया उसी प्रकार यदि आप किसी भी प्रश्न का उत्तर चाहते है या मन दुविधा से ग्रस्त है आप निर्णय नहीं कर पा रहे है कि क्या करे या न करे तो गीताजी निश्चित ही आपका मार्गदर्शन करेगी।
श्रीमद् भगवत् गीता प्रथम अध्याय प्रथम अध्याय – श्लोक 4 से 10“अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |युयुधानो विराटश्र्च द्रुपदश्र्च महारथ: ||4||धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्र्च वीर्यवान् |पुरूजित्कुन्तिभोजश्र्च शैब्यश्र्च
श्रीमद् भगवत् गीता प्रथम अध्याय श्रीमद् भगवद्गीता प्रथम अध्यायश्लोक – 2संजय उवाच –दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढ़ं दुर्योधनस्तदा |आचार्यमुपसंगम्य द्रपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ||2||संजय बोले –दुर्योधन
श्रीमद् भगवत् गीता प्रथम अध्याय ।। ऊँ श्री गुरूवे नम: ।।श्रीमद् भगवत् गीता।। अथ प्रथमोअ्ध्याय :।।धृतराष्ट्र उवाच :-धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: ।मामका: पाण्डवाश्र्चैव किम कुर्वत
ऊँ ओंकार स्वरूप गुरूदेव को मेरा साष्टांग दंड़वत। गुरूदेव मुझे आशीर्वाद प्रदान करे ताकि में गीता जी के बारे में कुछ लिख सकने में समर्थ