immortal in hindi-शास्त्रों में समुद्रमंथन की कथा आती है असुरो व देवो ने मिलकर शेषनाग की रस्सी बनाई तथा मंदराचल पर्वत की धुरी बनाकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुंद्र मंथन किया।
विभिन्न धर्मों में अमृत की चर्चा मिलती है । मुसलिम फकीरों ने इसे आवे-हयात कहा। वेदो में सोमरस का उल्लेख है जिसको पीकर ऋषि –मुनि अमर हो जाते थे । ईसाई इसे ज़िन्दगी का पानी कहते है।
इस शरीर के अंदर भरपुर अमृत विघमान है सदगुरू की कृपा से उनकीं बताई विधी से जब आप अमृत पान करते है तो आपको सुखों की प्राप्ति होती है तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है, भय,विकार,भ्रम तथा पापों का नाश हो जाता है।
मन स्थिर और निर्मल हो जाता है तथा अहंकार का नाश होने से मुक्ति प्राप्त होती है।
अमृत दसवे द्वार में स्थित है। प्रत्येक शरीर में अमृत विघमान है परन्तु मनुष्य मन के अनुसार चलता है जिससे वह अमृत पाने से वंचित रह जाता है ।
कबीरदास जी कहते है कि गगन में उल्टा कुआ है जिसमें ब्रह्म का वास है अर्थात परमात्मा का निवास है।
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व्यक्ति जब परमात्मा का अनुभव कर लेता है तो उसे परमात्मा के अनुभव के साथ-साथ अमृत प्राप्त होता है सदगुरू अमृतपान की विधी बताता है।
सदगुरू जब दीक्षा देते है तो परमात्मा के नाम के सुमिरन के साथ-साथ अमृत पान की निधी भी बताते है।
शास्त्रों में बताया गया है कि खेचरी मुद्रा से अमृत पान किया जाता है। व्यक्ति जब अपनी जीभ को मोड़कर तालु से लगाता है तो एक सर्किट पुरा हो जाता है
जिससे परमात्मा के प्रकाश के दर्शन होते है तथा खेचरी मुद्रा से व्यक्ति अमृत पान करता है।
अमृत पान करने से व्यक्ति जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाता है। व्यक्ति का मन जब स्थिर हो जाता है तब अमृत झरता है।
अमृत पीकर व्यक्ति अष्टसिद्धियों एवं नौ निधियों का स्वामी बन जाता है। आठों पहर आनंद में रहने लगता है।
जो इस रहस्य को नहीं जानता वह बाहर परमात्मा को ढुढ़ता रहता है जैसे कस्तुरी मृग की नाभि में स्थित होती है परन्तु वह उसे ढुँढ़ता रहता है उसी प्रकार परमात्मा अपने अंदर विराजमान है तथा व्यक्ति उसे बाहर ढुँढ़ते है।
जब प्रेमधारा नीचे के केन्द्रों में बहती है तो व्यक्ति को संसार में रस का अनुभव होता है परन्तु जब प्रेमधारा पलट जाती है
अर्थात धारा पलट जाती है तो राधा बन जाती है तथा व्यक्ति पर परमात्मा की प्रेमधारा गिरती है तथा उसमें प्रेम का उदय होता है।
राधा को कृष्ण की प्रेमिका बताया गया है वास्तव में यह प्रेम की स्थिति है जब धारा उलट जाती है तथा राधा बन जाती है।
काम ही राम बनता है अर्थात नीचे के केन्द्रों में ऊर्जा का बहाव काम पैदा करता है तथा जब यहीं बहाव या धारा उलट जाती है तो
काम ऊर्जा ही राधा (प्रेम ऊर्जा) बनकर परमात्मा का अनुभव कराती है परमात्मा का अनुभव होने पर मन प्रेम से परिपूर्ण हो जाता है।
तथा सच्चे ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाता है। कृष्ण मोरपंख धारण करते है तथा उन्हें योगेश्वर कृष्ण कहते है। मोरपंख धारण करते है तथा उन्हे योगेश्वर कृष्ण कहते है।
मोरपंख पवित्र माना गया है तथा ब्रह्मचर्य का प्रतीक है।