Part of the life in hindi -जीवन एक रंगमंच की तरह है जिसमें व्यक्ति विभिन्न पार्ट निभाता है । कभी पिता का,पति का, भाई का, प्रेमी का ,पुत्र का पार्ट निभाता है ।
व्यक्ति जो नौकरी या व्यवसाय करता है उस पेशे का पार्ट भी निभाता है । कभी सुखी तो कभी दुखी । कभी अमीर तो कभी गरीब। कभी साधू तो कभी शैतान ।
एक ही व्यक्ति में सभी चरित्र समयानुसार प्रकट होते रहते है ।
क्या आपको समयानुसार जो पार्ट निभाना है वह आप पुरी तन्मयता से निभाते हो ? आज व्यक्ति समय के अनुसार उसको जो पार्ट निभाना होता है
उसमें से कुछ पार्ट तो अच्छी तरह निभाता है जबकि कुछ पार्ट निभाने में कोताही बरतता है अर्थात चरित्रों को अच्छी तरह नहीं निभाता।
एक एक्टर जब उसकों जो पार्ट दिया जाए उसमें अपना शत प्रतिशत नहीं देता तो क्या आप उसे अच्छा एक्टर मानोगें ?
मेरा एक मित्र है जो पेशे से डॉक्टर है ।
वह पिता का पार्ट बहुत अच्छी तरह से निभाता है उसनें अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे विद्यालय में दाखिला दिलवा दिया है । बच्चों की सभी ज़रूरत भी पुरी करता है उनसे प्रेम भी करता है अर्थात एक अच्छा पिता है।
पति का पार्ट भी वह बहुत अच्छी तरह निभाता है अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता है तथा उसकी सभी आवश्यकता की पूर्ति करता है परन्तु पुत्र का पार्ट वह अच्छी तरह नहीं निभाता । उसके माता-पिता गॉव में अकेले रहते है ।
केवल वह अपनी पत्नी व बच्चों को ही अपना परिवार मानता है । माता-पिता से मिलने गॉव भी नहीं जाता ।
उसके माता-पिता जिन्होंने उसे डॉक्टरी की पढ़ाई पुरी करवाने में अपनी ज़िन्दगी भर की कमाई फूक दी उन माता-पिता को ये डॉक्टर याद भी नहीं करता उसके माता-पिता उसके छोटे भाई के साथ रहते है जो मज़दूरी करके अपने माता-पिता की सेवा करता है ।
डॉक्टर अपने भाई से भी प्रेम नहीं रखता क्योकिं वह मजदुर है तथा किसी को पता न लगे की उसका भाई मजदुरी करता है यहां तक की अपनी बहनों को भी यह अच्छा नहीं रखता ।
राखी के दिन बहनें अपने मजदुर भाई को राखी बांधने जाती है तो यह डॉक्टर पत्नी की बातों में आकर अपनी बहनों से नहीं बोलता है अर्थात भाई का पार्ट अच्छी तरह नहीं निभाता है ।
डॉक्टरी के पार्ट को वह अच्छी तरह निभाता है अर्थात वह बहुत अच्छा डॉक्टर है परन्तु पैसों का लालच इसमें इतना अधिक है कि लोगो को जॉचे नहीं करवानी होती तो भी जब मरीज उसके पास जाता है तो कमीशन के लालच में सारी जॉचे करवाता है दवाईयां भी ऐसी कम्पनियों की लिखता है जिसमें उसकों अच्छा कमीशन मिले।
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ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे कमाया जाए इस बात की कोशिश करता है। मन्दिर भी यह डॉक्टर रोज़ जाता है तथा ईश्वर से प्रार्थना करता है कि ज्यादा से ज्यादा मरीज उसके पास आए ताकि वह ज्यादा पैसा कमा सके। मरीजो से जो भी आय होती है उसमें से वह 10 प्रतिशत मन्दिर को भी दान करता है ।
चूकिं वह मन्दिर में दान करता है तथा रोज़ दर्शन करने जाता है इसलिए ईश्वर की कृपा का पात्र है अत: वह सुखी ही रहेगा ऐसा मानता है । सचमुच में वह सुखी है। लेकिन भगवान ने तो उसे भेजा है सारे पार्च पूर्णतया निभाने के लिए परन्तु उसने कुछ पार्ट को निभाने में कमी की ।
आज उस डॉक्टर का पुत्र जवान हो चुका है परन्तु उसे नशे की लत लग गई है । नशे की वजह से पुत्र मृत्यु से जुझ रहा है डॉक्टर ने जो पैसा कमाया वह पुत्र के इलाज में खर्च हो रहा है।
उसकी पुत्री ने एक दुसरे धर्म को मानने वाले से प्रेम विवाह कर लिया अत: लड़की से भी उसके सम्बन्ध खत्म हो गए है। पत्नी का स्वास्थ भी कमजोर हो गया है अर्थात बीमार चल रही है।
डॉक्टर ने मुझसे कहां कि देखो मित्र मै भगवान की भक्ति भी करता था व अब भी कर रहा हूं परन्तु फिर भी आज मेरा जीवन दुखमय हो गया है।
दुसरी ओर डॉक्टर का छोटा भाई जो मजदुरी कर रहा था उसका लड़का अध्यापक बन गया । वह अपने पिता व दादा-दादी की खुब सेवा कर रहा है ।
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पुरा परिवार इतना सुखी है कि वह एक प्रकार से अपने डॉक्टर बेटे को भुल ही गए है सभी स्वस्थ है प्रसन्न है। डॉक्टर बेटा दुखी होकर अपने माता-पिता के पास गया कि वह उसके पास आकर रहे क्योकिं डॉक्टर की पत्नी व बच्चा बीमार है माता –पिता होंगे तो वह घर को संभाल लेंगे।
परन्तु माता-पिता ने बुढ़ापे में डॉक्टर बेटे के पास रहना स्वीकार नहीं किया क्योकिं जब माता-पिता को डॉक्टर बेटे की जरूरत थी तब तो उसे माता-पिता याद न आये।
इस पुरे घटनाक्रम को देखकर मैने जाना कि स्वर्ग व नर्क यहीं इसी दुनियां में है यदि तुम्हारा कर्म सहीं नहीं है अर्थात यदि तुम अपने सभी पार्ट पूर्णतया नहीं निभाओगे तो कर्म का फल तो इसी जीवन में मिलना है।
डॉक्टर हमेशा मन्दिर जाता है तथा 10 प्रतिशत दान कर रहा है इसलिए डॉक्टर स्वस्थ है। इसने पुत्र का पार्ट अच्छी तरह नहीं निभाया इसलिए संतान होने के बावजुद संतान से उसे दुख प्राप्त हो रहा है।
पत्नी का बातों में आकर उसने भाई बहिनों से रिश्ता तोड़ दिया अत: आज वह अकेला है। उसने भगवान से रोज़ मरीजो को बढ़ाने की प्रार्थना की थी इसलिए पत्नी व बेटा भी मरीज बन गए है।
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रिश्तों का आधार आध्यत्म होना जरूरी है। बहुत अच्छे से हम पोस्ट से समझ पाये है। ओम गुरवे नमः
बस इसी तरह मानव कल्याण होना है