Premdhara a spiritual thought in Hindi-प्रेम से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है प्रेम ही परमात्मा का स्वभाव है इसलिए ही परमात्मा को “सच्चिदानंद” कहा गया है ।
जैसे ही व्यक्ति को परमात्मा का अनुभव होता है उसकें मन में प्रेम हिलोरे मारने लगता है। प्रेम से भी परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है….प्रेम ही भक्ति है ।
मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया तथा भक्ति के चरमोत्कर्ष तक पहुंची , गोपियों ने कृष्ण से प्रेम कर परमात्मा को प्राप्त किया । प्रेम जब नैत्र में भर जाता है तो जो देखते है वह रूपवान लगता है…
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जब प्रेम जीभ पर विराजमान होता है तो व्यक्ति जब बोलता है तो लगता है उसकी मधुर वाणी को सुनते ही चले जाए अर्थात अगर इन्द्रियों में प्रेम न हो जीवन नीरस हो जाता है परन्तु….. क्या हम प्रेम को पुरा जानते है ?
यदि आप प्रेम को समझना चाहते है तो पहले अपने से प्रेम करे मतलब खुद से प्रेम करे। यह शरीर एक मन्दिर है जिसमें “आत्मदेव” विराजमान है तथा हमें इस मन्दिर को साफ सुथरा व स्वस्थ रखना है।
लेकिन कोई भी व्यक्ति इस शरीर से प्रेम नहीं करता…क्योकिं ये शरीर तो हमे मुफ्त में मिला है तथा मुफ्त में मिले शरीर का महत्व मनुष्य नहीं पहचानता तथा मनुष्य शरीर को सताता है
परन्तु शरीर का महत्व तब समझ में आता है जब शरीर में कोई बीमारी लग जाती है तब व्यक्ति शरीर को स्वस्थ करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।
प्रेमधारा-Premdhara a spiritual thought in Hindi
उसे ज़िन्दगी भर की कमाई भी खर्च करनी पड़े तो भी वह तैयार हो जाता है । मेरा आपसे निवेदन है कि इस शरीर से प्रेम करों ये शरीर तुम्हारा सेवक है,तुम्हारा सबसे बड़ा मित्र है,
तुम्हारा आज्ञाकारी है जहाँ ले जाओ जाने के लिए तैयार रहता है जो पिलाओं पीने के लिए जो खिलाओं खाने के लिए तैयार रहता है।
परमात्मा प्राप्ति में ये शरीर सहायक है….. यदि आप इस शरीर को सताकर,कष्ट देकर, कमजोर बनाओंगें तो तुम्हे परमात्मा तक कौन पहुंचाएगा । इन्द्रियाँ आनंद प्राप्त करने का उपकरण मात्र है ।
जैसे यदि हमारी आँखे खुली हुई है परन्तु मन उसके साथ जुड़ा हुआ नहीं है तो हमारी आँखों के सामने कोई भी निकले हम उसे नहीं देख पाएंगे ।
हमारा मन कई ओर लगा हुआ है तथा हमें कोई पास से पुकारता है तो भी हमें सुनाई नहीं पड़ता है । ये इन्द्रियाँ हमारी मित्र व सहयोगी है ।
यदि आँखें किसी दूसरे के रूप को देखकर लालच में भर जाए तो आँखों पर क्रोध करके आँखों को निकाल लेना या त्याग व वैराग्य के नाम पर आँखों को कष्ट देना क्या उचित है ?
आँखे तो रूप देखने में सहायक मात्र है । अत: अपनी इन्द्रियों से तथा इस शरीर से प्रेम करो । संयम तथा इन्द्रिय-निग्रह अच्छी बात है परन्तु त्याग व वैराग्य के नाम पर इस शरीर को कष्ट नहीं देना चाहिए।
इस शरीर को योग, प्राणायाम व ध्यान द्वारा नियमबद्ध बनाओं इसे अच्छा आहार खिलाओं ताकि वह स्वस्थ रहे यदि शरीर स्वस्थ रहेगा तो ही तुम परमात्मा को प्राप्त कर पाओगे ।
शरीर से प्रेम करने के पश्चात प्रेम को ओर फैलाओ सबसे प्रेम करो क्योकिं सभी के अन्दर परमात्मा का अंश विराजमान है ।
प्रेम अहंकार का विसर्जन है । जब तुम प्रेममय हो जाओंगे तो अहंकार का नाश हो जायेगा तथा अहंकार ही परमात्मा प्राप्ति में सबसे बड़ा रोड़ा है।