Sant janabai ki kahani in hindi

राजा ने कैसे जाना जनाबाई की भक्ति का चमत्कार-Sant janabai ki kahani in hindi

संत जनाबाई की कहानी (Sant janabai ki kahani in hindi)

Sant janabai ki kahani in hindi-जनाबाई के पिता तेली थे तथा तेल निकालने का कार्य करते थे। जनाबाई जब जब छोटी थी तब उसे साथ लेकर पंढ़रपुर मंदिर में दर्शन के लिए गये।

बालिका के मन में ठाकुरजी की मूर्ति के प्रतिप्रेम पैदा हो गया । मन में भगवान के प्रति भक्ति जाग्रत हो गई। थोड़े दिन तक जनाबाई रोज ठाकुरजी के दर्शन करने जाती तथा नामदेव जी का भजन सुनती ।

संत नामदेव विठ्ठलनाथ भगवान के सामने जब कीर्तन गाते तथा पैरो में घुंघरू भबांध कर जब नाचते तो चारो ओर भक्तिरस की सरिता बहने लगती।

जनाबाई के पिता ने जब कहां की बेटी कल हम गॉव चलेंगे तो जनाबाई बोल उठी की पिताजी अभी तक मेरा मन विठ्ठलनाथ के दर्शन से तृप्त हुआ नहीं है अतः मैं यही रहना चाहती हूं।

संत ज्ञानेश्वर की अद्भुत लीला (sant gyaneshwar in hindi)

नामदेवजी के प्रति भी जनाबाई की अपार श्रद्धा उमड़ पड़ी थी। जब जनाबाई गॉव जाने के लिए तैयार नहीं हुई तब उसके पिताजी संत नामदेव के पास पहुँचे तथा बोले की आपकी सेवा के लिए में जनाबाई को यहीं छोड़ जाता हूं

यह मंदिर में पुजा अर्चना में आपकी सहायता करेगी तथा मंदिर में सफाई करेगी। इसके मन में विठ्ठलनाथ के प्रति भक्ति जाग्रत हो गई है तथा यह मेरे साथ गॉव नहीं आना चाहती है।

जब नामदेव जी ने ध्यान किया तो उन्हें पता चला की द्वापर में जब कृष्णावतार हुआ तो यह कुब्जा थी जिस पर कृष्ण की कृपा हुई थी तथा पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण इसमें भक्ति जाग्रत हुई है तो वह जनाबाई को वहाँ रखने के लिए तैयार हो गये ।

नामदेव ने जनाबाई को दीक्षा दी ताकि उसका मन भक्ति में रम सके।Sant janabai ki kahani in hindi

जनाबाई नामदेव के घर रहने लगी तथा भगवान विठ्ठलनाथ की भक्ति करने लगी। जब बड़ी हो गई तो नामदेवजी के घर के सामने रहने लगी तथा भक्ति करने लगी।

जनाबाई की एक पड़ोसन उनसे बहुत ईर्ष्या करती थी तथा तेज स्वभाव की थी तथा जब जनाबाई भगवान का भजन गाती तो उसे भला बुरा कहती।

हमेशा जनाबाई से लड़ाई का अवसर ढुढ्ती रहती। जनाबाई गाय के गोबर के कण्ड़े थापती तथा मन में विठ्ठलनाथ जी का नाम जपती। पड़ोसन कितना भी भला बुरा बोलती परन्तु जनाबाई मन में न लेती थी।

एक बार पड़ोसन ने सोचा कि इतनी गालियॉ देने पर भी यह नहीं बोलती है तो उसने जनाबाई को परेशान करने के लिए उसके सारे कण्ड़े चुरा लिये तथा कण्ड़ो को अपने घर ले जा रही थी तो जनाबाई ने उसे पकड़ लिया तथा

कहॉ कि मेरे कण्ड़े चोरी करके कहॉ ले जा रही हो तब पड़ोसन उन कण्ड़ो को अपना बताने लगी नोक झोंक में भीड़ इकठ्टी हो गई तब सैनिक दोनो को कण्ड़ो के साथ राजा के सामने ले गये ।

राजा के सामने भी पड़ोसन कण्ड़ो को अपना बताने लगी तथा जनाबाई को झुठा कहने लगी।

एक बार तो राजा ने सोचा कि जनाबाई को उतने ही कण्डे दे देते है परन्तु यह न्याय नहीं होता। तथा कण्ड़ो के देखने पर तो सभी समान लगते है न्याय कैसे करे।

जब राजा ने जनाबाई से कहा कि इनमें से तुम्हारे कण्ड़े कौनसे है तथा पड़ोसन के कौनसे यह कैसे पता चलेगा,कौन सत्य बोल रहा है तथा कौन असत्य कैसे पता चलेगा।

कोई निशानी बताओ ताकि पता लगे की तुम्हारे कण्ड़े कौन –कौन से है।

जब जनाबाई ने कहॉ कि मेरे कण्ड़ो को थापने के वक्त में भगवान विठ्ठलनाथ का नाम लेती हूं

अतः मेरे जप के वाइब्रेशन कण्ड़ो में होगे आप अपने दाहिने कान के पास कण्ड़े को रख के मन शांत करके सुने को तो विठ्ठलनाथ का नाम कण्ड़ो में सुनाई देगा।

राजा ने जब कण्ड़ो को अपने दाहिने कान के पास रखा तो उसे कण्ड़ो से भगवान का नाम सुनाई पड़ा।

जिन कण्ड़ो में भगवान का नाम सुनाई पड़ा उन कण्ड़ो को अलग कर जनाबाई को सौप दिये तथा पड़ोसन के कण्ड़े अलग कर दिये तथा पड़ोसन को सजा दी तथा राजा ने संत जनाबाई की भक्ति को पहचाना।

पुरी सभा में भगवान की जय जयकार गूँज उठी। भक्ति के चमत्कार को देख राजा जनाबाई के चरणों में गिर पड़ा।

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.