टकराव की स्थिति में क्या समझदार व्यक्ति को भाग जाना चाहिए ?

श्लोक 38 से 39
टकराव की स्थिति में क्या समझदार व्यक्ति को भाग जाना चाहिए ?

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।38।।

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।39।।

अर्थः- यघपि लोभ से भ्रष्टचित् हुए ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से विरोध करने में कोई दोष नहीं देखते तो भी….. है जनार्दन हम लोग तो कुल नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले है अतः इस पाप को नहीं करने का विचार क्यों नहीं करना चाहिये।
बलदेव रावल
तात्पर्य – यहॉ पर अर्जुन अपने युद्ध न करने के विचार को तर्क द्वारा कृष्ण के सामने सही ठहराने के लिए कह रहे है कि दुर्योधन व कौरवो का युद्ध में आना अत्यन्त अनुचित है गलत है परन्तु लोभ के कारण इनकी मति भ्रष्ट हो गई है तथा इनका विवेक नष्ट हो गया है।
“विनाश काले विपरीत बुद्धि” अर्थात इनका विनाश होने वाला है इसलिए नियति ने इनकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है इससे ये अपना अच्छा बुरा देख नहीं पा रहे है परिवार के नाश के साथ क्या-क्या दुष्परिणाम होंगे इस बात की समझ इनमें नहीं है… परिवार व मित्रों को मारना पाप है यह समझ नहीं पा रहे है क्योंकि इनका विवेक नष्ट हो चुका है परन्तु हमारा विवेक तो जाग्रत है तथा हम तो कुलनाश से होने वाले दोष को जानते है अतः हम समझदार है अतः हमको यहॉ से हट जाना चाहिये।
सुनने में उपर्युक्त बात बहुत अच्छी मालुम पड़ती है तथा हमें भी अक्सर यहीं बात सज्जन व्यक्ति समझाते है कि तुम तो समझदार हो सामने वाला नासमझ है अतः तुम हट जाओ साथ ही उदाहरण देते है कि कुत्ता तुमको काट दे तो क्या तुम भी कुत्ते को काटोगे अतः अपने विरोधी को माफ कर दो।




टकराव की स्थिति में सज्जन व सीधे व्यक्ति को समझाकर टकराव टालने का प्रयास किया जाता है इसका परिणाम यह होता है कि अनैतिक कार्य करने वाले व्यक्ति के हौसले बुलन्द होते जाते है ।
कृष्ण भगवान तथा इस बात को जानते है कि दुष्ट को दंड देना आवश्यक है दंड से ही उसकी दुष्टता का दमन संभव है दंड का भय ही अत्याचारी को सही रास्ता दिखा सकता है इसलिए हमारे संविधान में गलत कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए दंड की व्यवस्था की ताकि दंड के भय से दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता का त्याग कर दे तथा यदि वह ऐसा नहीं करता तो उसे दंड दिया जाय । कितना भी बलशाली व्यक्ति हो आज कमजोर पर अत्याचार नहीं कर सकता क्योंकि उसे कानुन का भय होता है तथा फिर भी कोई कानुन तोड़ता है तो वह सजा का पात्र होता है ।
धन्यवाद

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