श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय द्वितीय श्लोक – 12
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12।।
अर्थः-
न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था,तु नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।।2.12।।
तात्पर्यः-
भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक से आत्मा की अमरता के बारे में बता रहे है। तथा कह रहे है कि ऐसा कोई समय नहीं था जब हम सब नहीं थे तथा आगे भी ऐसा कोई समय नहीं रहेगा जब हम नहीं रहेंगे अर्थात भुतकाल मै में भी था,तुम भी थे तथा ये समस्त राजा लोग भी थे तथा भविष्य में भी यह सब रहेंगे क्योंकि आत्मा अमर है उसे कभी नष्ट नही किया जा सकता।
कृष्ण इस बात को जानते है क्योंकि श्री कृष्ण जगदगुरू है तथा उन्होंने अपनी आत्मा का ज्ञान प्राप्त कर रखा है अर्थात आत्मसाक्षात्कारी है तथा वह आत्मा की अमरता के बारे में जानते है तथा अपने को आत्मा मानते है तथा शरीर नहीं मानते।
आत्मा परमात्मा का अंश है तथा जो भी व्यक्ति अपनी आत्मा को जान लेता है वह परमात्मा को भी समझ जाता है जैसे कोई पानी की बूंद के बारे में सब कुछ जान लेता है वह समुद्र के बारे में भी जान जाता है क्योंकि दोनो एक ही है।
हम अभी इस शरीर को ही मैं मान रहे है जबकि यह बात असत्य है इस शरीर को चलाने वाली जो अदृश्य शक्ति है वहीं आत्मा है। जो दिखती नहीं परन्तु पुरे शरीर को चलाती है तथा जब वह शरीर से निकल जाती है तब मानव शरीर मृत हो जाता है जबकि शरीर में पॉचों तत्व विघमान होते है।
जो शक्ति शरीर को चलाती है वहीं आत्मा अजर-अमर है तथा कभी नष्ट नहीं होती। जैसे पंखा,टयूबलाइट,हीटर,मशाने आदि विधुत उर्जा से चलते है तथा जैसे ही बटन को बंद किया जाता है विघुत आपुर्ति बंद होने पर पंखा बंद हो जाता है।
टयूबलाइट बुझ जाती है तथा मशीने रूक जाती है जबकि इन उपकरणों में कोई कमी नहीं रहती जैसे ही बटन चालु करते है ये सभी उपकरण पुनः चालु हो जाते है।
इसी प्रकार आत्मा ऐसी अदृश्य शक्ति है जो शरीर को चलाने वाली है तथा शरीर नहीं है।
हमारी सब आत्माएं जिसका अंश है उसे परम् आत्मा कहा गया है।
गीता का ज्ञान जो दे रहे है वह श्री कृष्ण के शरीर का आश्रय लेकर परमात्मा ज्ञान दे रहे है। यहॉ पर श्री कृष्ण बता रहे है कि उनका अस्तित्व भुतकाल में भी था वर्तमान में है तथा भविष्य में भी रहेगा।
इन बातों से ऐसा लग रहा है कि श्री कृष्ण जो वासुदेव के पुत्र है वह कह रहे है परन्तु यह असत्य है श्री कृष्ण के शरीर का आश्रय लेकर परमात्मा जिसे हम ब्रह्म,भगवान,अल्लाह,वाहेगुरी आदि नामों से पुकारते है हम जिसकी उपासना करते है वह परमेश्वर बोल रहा है।
क्योंकि इस ब्रह्माण्ड़ का रचियता,पालनकर्ता तथा संहारकर्ता वहीं है। कोई भी व्यक्ति जब तक उसमें परमात्मा तत्व विकसित नहीं हुआ हो अर्थात अपने को वेदेही न मानता हो परमात्मा के साथ एकाकार न हो गया हो तब तक यह बात नहीं कर सकता अतः गीता का ज्ञान परमात्मा के ही शब्द है।
परमात्मा कह रहे है कि सब अजर-अमर है वह पूर्ण सत्य है मृत्यु शरीर ही होती है हमारी नहीं क्योंकि हम आत्मा है तथा परमात्मा का अंश है तथा अजर-अमर है । हम इस शरीर को चलाने वाले है यह शरीर हम नहीं है।
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