Voice of silence in hindi-सभी धर्मों ने शब्द की महिमा का बखान किया है। शब्द लिखने, पढ़ने और बोलने में नहीं आ सकता ।
शब्द ही सृष्टि का कर्ता है शब्द ही परमात्मा का नाम है, शब्द ही सर्वव्यापक है शब्द शरीर के अंदर मिलता है ,शब्द सबका प्राण, सबका मूल है जो कुछ भी गुप्त या प्रकट रूप में है वह शब्द के आसरे है।
शब्द ईश्वर, ब्रह्म सबका आधार है शब्द ही उत्पत्ति व प्रलय का कारण है । पहले न सूर्य था न चन्द्र था न आकाश था। शब्द निराकार था। वेद कहते है कि शब्द(नाद) से ही चौदह भुवन बने है ।
कुरान शरीफ में “कलमें” से चौदह तबकों के बनने का वर्णन है।
बाइबल में बताया गया है कि शब्द आदि में था, शब्द परमात्मा था तथा सब चीज़े उसने बनाई है। गुरू वाणी कहती है कि सारी सृष्टि का कर्ता शब्द है धरती और आकाश सभी शब्द से बने है ।
हिन्दु शास्त्रों के अनुसार शब्द आकाश से भी सुक्ष्म और व्यापक है । सभी धर्मों को मानने वाले मालिक को शब्द का स्वरूप मानते है। केवल आत्मा शब्द का अनुभव कर सकती है।
मौलाना रूम इसके बारे में फरमाते है।
तुर्की, कुर्द, फारस और अरब के लोगों ने उसे बगैर कानों और होठों से जाना है।
उपनिषदों ने उसे “प्रणव” कहा है जिसे प्राणों के द्वारा सुना जावे ओर जिसे बोलने के जिव्हा, होठ ओर तालु की आवश्यकता नहीं हो जो अपने आप हो रहा हो।
कबीर साहिब ने भी कहा है शब्द निराकार है तथा उसका जिव्हा द्वारा वर्णन नहीं हो सकता।
हज़रत बाहू भी उसका वर्णन करते फ़रमाते है कि उस कलमें को कहने की जिव्हा में शक्ति नहीं है वह उसका बयान नहीं कर सकती ।
मौलाना रूम फ़रमाते है कि हे मालिक मुझे वह मुकाम बता जहाँ तेरा कलाम बगैर अक्षरों के अपने आप हो रहा है।
ईसाइ इसको वर्ड या लोगोस कहते है। मैड़म ब्लैवाटस्की ने इसे मौन आवाज़ (VOICE OF THE SILENCE) कहाँ।
स्पष्ट है कि दुनियाँ में जितने भी धर्म प्रचलित है वह एक ही परमात्मा को मानते है उसका नाम चाहे अलग-अलग हो परन्तु वह जिसकी बात करते है वह एक ही है।
सभी के अन्दर नाद का उदय हो रहा है उसको सुनना है क्योंकि वही परमात्मा का नाम है ।
Voice of silence in hindi
अर्थात वह वाइब्रेशन जिससे यह सृष्टि उत्पन्न हुई उस वाइब्रेशन को सुनना अर्थात अपने चित्त को उस शब्द या ध्वनि पर स्थिर करने परमात्मा का अनुभव किया जा सकता है।
प्रारम्भ में इसकों सुनने के लिए कानों के छिद्रो को रूई डालकर बंद कर सकते है या दोनो हाथो की तर्जनी अंगुली से कानों को बंद कर सकते है या दोनों हाथों के अंगुठे से कानों को बंद करके उस अनहदनाद को सुनने की कोशिश करे।
दाहिने कान से सुनने की कोशिश करें तो ज्यादा अच्छा है। नाद कानों से नहीं सुनाई देता बल्कि अंदर से सुनाई देता है।
जब अच्छी प्रेक्टिस हो जाती है तो आप खुले कानों से भी अंदर पैदा हो रहे नाद को सुन सकते है तथा अन्त में मेघनाद सुनाई देता है तब आपको ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
इसको कई संतो ने अनाहत ध्वनि या एक हाथ की ताली भी कहाँ।
संसार में एक “ शब्द“ और दुसरा “प्रकाश” इनक ही “कलाम” और “नूर” कहा गया है जिन पर चलने से परमार्थ की राह में उन्नति होती है।
हमारे अन्दर ज्योति है और उस ज्योति के अंदर शब्द है जिसके द्वारा सच्ची भक्ति होती है।
शब्द व ज्योति वास्तव में एक ही है कंपन एक सीमा तक ध्वनि उत्पन्न करते है पर कंपनो की गति बढ़ जाय तो वह प्रकाश में बदल जाते है । ईसाइयों ने इसे वॉइस एण्ड़ विज़न कहा।
प्रारम्भ में शब्द प्रकट होता है बाद में प्रकाश आ जाता है।
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अद्भूत ,इतने सरल तरीके से ईश्वर की व्याख्या आज तक किसी ने नही की है।जो इस राह पर चल रहा हैं,उसके लिए यह पथ प्रदर्शक होगा।एक परमंहस ही इस बात को जान सकता है।
आपका आंकलन बिलकुल सही है….परमात्मा आपको इसी मार्ग पर आगे बढ़ने में शक्ति दे…