क्या अर्जुन का युद्ध करने से मना करने का निर्णय सही था ?
श्लोक 45 से 46
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।45।।
अर्थः- हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गये है तथा राज्य सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिए तैयार है ।
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।।46।।
अर्थः- यदि मुझ शस्त्र रहित तथा सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिए हुए धृतराष्ट्र के पुत्र युद्ध मे मार जाले तो वह मरना भी मेरे लिए कल्याण कारक होगा ।
तात्पर्यः- एक दम से अर्जुन का मन पश्चाताप से भर जाता है तथा उसके मुख से निकलता है कि ओह में यह क्या करने वाला था बुद्धिमान होकर भी में यह पाप करने के लिए तैयार कैसे हो गया राज्य सुख के लोभ में पड़कर में अपने ही सगे – सम्बन्धियों को मारने के लिए तैयार हो गया।
अर्जुन का मन पश्चाताप की अग्नि में जल उठा तथा वह मन ही मन अपने को धिक्कारनें लगा कि लोभ में पड़कर में युद्ध करने कैसे आ गया तथा मन में पश्चाताप का भाव पैदा होने पर अर्जुन श्री कृष्ण को अपना निर्णय सुनाते है कि मैं शस्त्र को छोड़ दुंगा यदि कौरव मुझसे युद्ध करने आयेंगे तो भी मैं युद्ध न करूंगा अपने स्वजनों पर हथियार नहीं उठाउंगा चाहे मुझे कौरव मार डाले।
मृत्यु मेरे लिए कल्याणकारी होगी क्योंकि में कुलघातक पाप से बच जाउंगा। तथा केवल मेरे मरने से सगे सम्बन्धियों और मेरे आत्मीय जन की रक्षा हो जायेगी तथा मैं अपना बलिदान कर कुल की रक्षा करूंगा तो मुझे पुण्य की प्राप्ति होगी।
सन्यासी के लिए ऐसी बाते करना अच्छा है अर्जुन भी श्री कृष्ण का भक्त है तथा मन वैराग्य भाव पैदा होना अच्छा है । हमारे बापू गाँधीजी भी अंहिसा का यही पाठ पढ़ाना चाहते थे क्योंकि वह आध्यात्मिक वृति के थे इसलिए कहते थे कि कोई एक गाल पर मारे तो दुसरा गाल आगे कर दो निश्चित ही सामने वाले के मन में इन्सानियत का भाव या करूणा जाग जायेगी उसका मन बदल जायेगा तथा वह अत्याचार करना छोड़ देगा।
इसलिए जब अंग्रेज अत्याचार करते थे तो गाँधीजी कहते थे कि अंहिसात्मक करो तथा यदि लोगो की सहनशक्ति जवाब दे जाय तथा वह हिंसक हो जाय तो वह अपना आंदोलन वापस ले लेते थे। अर्जुन भी यहीं कर रहा है वह खुद मर जाना चाहता है परन्तु अपने सगे-सम्बन्धियों व आत्मीय जनों के सामने हथियार नहीं उठाना चाहता है ।
हमारी भारतीय सेना ने भी अभी-अभी रमजान के पवित्र महीने में अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा की परन्तु पाकिस्तान की ओर से गोलाबारी होती रहीं तथा हमारे सैनिक हताहत हुए।
मेरे मन में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि क्या भारतीय सेना का अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा करना अर्जुन के हथियार डालने जैसा ही नहीं था । क्या अर्जुन का अपने हथियार डालने का निर्णय सही था ? क्या गाँधीजी का अंहिसा का संदेश जब अंग्रेज गोलियाँ बरसा रहे हो तब गोलियाँ खाना तथा उसका प्रतिकार नहीं करना सही था ?
दोस्तों आप अपनी राय कोमेंट बोक्स में जरूर लिखे जय श्री कृष्णा ।