what is the goal of life in hindi – खाना-पीना,खेलना,वंश वृद्धि करना यह सभी कार्य तो पशु भी करते है।मनुष्य भी यहीं कार्य करे तो उसमें तथा पशु में अंतर क्या रहेगा। मानव-जीवन का लक्ष्य होना चाहिए परमात्मा का अनुभव करना, अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर देना।
मानव जीवन का लक्ष्य क्या है ?
मानव शरीर जो तुम्हें मिला है केवल भोग भोगने के लिए नहीं मिला है वरन् आप कौन हो इसकी पहचान कर सको तथा परमात्मा का अनुभव कर उसके साथ एकाकार हो सको ताकि तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जाए।
चौरासी लाख योनियों के पश्चात यह मानव जीवन मिला है इसको व्यर्थ जाने नहीं देना चाहिए। सभी से प्रेम करना है जब तुम आत्मा के संपर्क में कुछ क्षण के लिये ही आओगें तो तुम्हारे अंदर प्रेम का झरना बहने लगेगा तथा जो तुम्हारे अंदर प्रेम का झरना बहने लगेगा तथा जो तुम्हारे सम्पर्क में आएगा वह तुम्हारे अंदर प्रेम का जो झरना बह रहा है उसका अनुभव होगा।
जैसे चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है उसी प्रकार तुम्हारे मन से निकलने वाली प्रेम धारा तुम्हारे सम्पर्क में आने वाले को प्रभावित करेगी।what is the goal of life in hindi
सभी संतो ने कहा प्रेम करो। प्रेम से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। गोपियों ने केवल प्रेम से कृष्ण को प्राप्त किया। उनहोंने भगवान का अनुभव करने के लिए कोइ योग साधना नहीं की केवल कृष्ण से प्रेम किया तथा कृष्ण के परमात्मारूप का साक्षात्कार किया।
यदि आप प्रेम करना सीख जाओगे तो तुम्हे परमात्मा को तो अनुभव होगा साथ ही साथ भौतिक रूप से भी तुम सम्पन्न हो जाओगे। पुरे ब्रह्मांड़ में जो भी चाहोगे वह तुम्हे प्राप्त होगा। तुम हमेशा आनंदित रहोगे तथा स्वर्ग ही धरती पर उतर आएगा।
परमात्मा प्राप्ति क्या है ?
जब तुम आत्मा के संपर्क में आओगे तो तुम्हारे अंदर प्रेम जाग्रत हो जायेगा या तुम प्रेम करोगे तो प्रेम करते करते तुम परमात्मा का अनुभव करने लग जाओगे। प्रेम ऐसी सकारात्मक शक्ति है जो तुम्हारे मन के नकारात्मक भावों को समाप्त कर देगी।
जैसे गुरूत्वाकर्षण शक्ति होती है तथा उसका प्रभाव प्रत्येक कण पर पड़ता है उसी प्रकार मन में प्रेम की शक्ति उत्पन्न होती है उसका प्रभाव प्रत्येक पर पड़ता है गुरूत्वाकर्षण शक्ति भी प्रेम की शक्ति का एक रूप है।
अगर प्रेम नहीं होता तो यह ब्रह्मांड़ नहीं होता। परमात्मा या प्रेम का नियम प्रत्येक सजीव व निर्जीव पर समान रूप से लागु होता है क्योकि वह सत्य है। दो परमाणु मिलकर अणु बनाते है तो उनमें प्रेम की शक्ति ही होती है।
एक परमाणु इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनावेशित हो जाता है। जबकि दुसरा परमाणु इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणावेशित हो जाता है तथा वह स्थायित्व प्राप्त करने के लिए अणु बनाता है ।
वह चाहता है कि अपने बाह्य कोण में इलेक्ट्रॉन पुरे कर ले ताकि वह स्थायित्व को प्राप्त कर सके।
इसके लिये वह इलेकेट्रॉन का साझा करता है यह प्रेम की शक्ति ही है। उसी प्रकार मानव व पशुओं में भी यह प्रेम की शक्ति होती है इसलिए सजीव,निर्जीव पर परमात्मा का एक ही नियम लागु होता है तथा वहीं सत्य है।
तुमको मानव जन्म मिला है यदि सुख व दुःख के चक्र में ही उलझे रहोगे तो क्या होगा।अभी सुखी हो तो दुख भी आयेगा परन्तु दुःख व सुख में समान भाव से रहे तथा सदैव आनंदित रहे तो ही मनुष्य जन्म सार्थक है।
भगवान राम का जब राज्याभिषेक हो रहा था तो उन्हें सुख का अनुभव नहीं हो रहा था तथा तुरन्त उन्हें वन में जाना पड़ा तो वे दुखी भी नहीं हुए।
समभाव से रहना सदैव आनंद में रहना ही भक्ति है । सुख दुःख तो आते जाते रहते है।
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