श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम
श्लोक 41 से 42
पितरों की मुक्ति के लिए क्या करे ?
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।41।।
अर्थः- हे कृष्ण पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती है तथा इससे वर्णसंकर संतान पैदा होती है
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।42।।
अर्थः- वर्ण संकर कुल को तथा कुलघातियों को नरक में ले जाता है तथा श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितर अधोगति को प्राप्त होते है ।
बलदेव रावल
तात्पर्यः- अर्जुन कृष्ण को अपने युद्ध नहीं करने के विचार को सही साबित करने के लिए कृष्ण को कह रहे है कि है कृष्ण यदि युद्ध हुआ तो पुरे परिवार में पाप फैल जाएगा तथा उससे वर्णसंकर संतान उत्पन्न होगी तथा इस कारण पितरों की मुक्ति नहीं होगी।
अर्जुन कृष्ण से यह बात कहने की कोशिश कर रहे है कि युद्ध में परिवार के बुजुर्ग तथा बड़े लोग यदि युद्ध हुआ तो मृत्यु को प्राप्त होंगे, युद्ध में पुरूषों के मृत्यु प्राप्त करने के पश्चात् स्त्री अकेली रह जायेगी तथा पुरूष के न होने से अपने बच्चों का पेट पालने के लिए तथा अपने जीवन निर्वाह के लिए वह व्याभिचारिणी हो जाएगी तथा इससे जो संतान उत्पन्न होगी वह वर्णसंकर होगी तथा वह अपने पितरों को श्राद्ध तर्पण आदि क्रियाएं नहीं करेगी।
पारिवारिक परम्पराओं का पालन करवाने वाले भी नहीं होंगे तथा वर्ण संकर संताने पितरों का तर्पण करने की क्रिया करेंगे तो भी वह पितरों को प्राप्त नहीं होगा क्योंकि शास्त्रों में बताया गया है कि अपने पुत्र जब श्राद्ध तर्पण आदि क्रियाएं करते है तो वह पितरों को प्राप्त होता है।
वर्ण संकर संताने यह क्रिया करेगी तो युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों को कुछ प्राप्त नहीं होगा इसलिए पितर अधोगति को प्राप्त होंगे।
परिवार की पवित्रता नष्ट हो जायेगी। श्राद्ध में जो पिण्डदान किया जाता है तथा पितरो के निर्मित जो ब्राह्मण भोजन आदि कराया जाता है वह पिण्ड-क्रिया है और तर्पण में जल की अंजुली दी जाती है इसे हीं श्राद्ध तर्पण करते है। जो लोग शास्त्र और कुल की मर्यादा को मानने वाले है वे श्राद्ध-तर्पण आदि क्रियाएं करते है जिससे पितरों को यह प्राप्त होता है तथा श्राद्ध-तर्पण की क्रियाएं पुत्र द्वारा की डाती है।
शास्त्र कहता है कि श्राद्ध तर्पण आदि क्रियाएं बड़े पुत्र को करनी चाहिए इससे पितर प्रसन्न रहते है तथा उनका आशिर्वाद प्राप्त होता है।
यदि श्राद्ध तर्पण आदि क्रियाएं नहीं की जाती है तो पितर दुःखी होते है तथा अधोगति को प्राप्त होते है अतः शास्त्र की इस तरह बात कर अर्जुन कृष्ण से युद्ध न करने के अपने विचारों के पक्ष में तर्क देता है….