अधिकमास क्यों ?-Adhik mass importance in hindi
Adhik mass importance in hindi-सौर वर्ष का मान 365 दिन,15 घटी, 22 पल, और 57 विपल है । जबकि चांदवर्ष का मान 354 दिन, 22 घटी, 1 पल और 23 विपल होता है। दोनो वर्षो में लगभग ग्यारह दिन का अंतर होता है।
सौर वर्ष तथा चांद वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रत्येक तीसरे वर्ष में पंचांग में एक चांद मास बढ़ाया जाता है। इसी को पुरूषोत्तम मास, मलमास या अधिकमास कहते है ।
अधिकमास कब आता है ?
चांद मास में तिथियां घटती-बढ़ती रहती है । तीन वर्षो के उपरान्त ये घटी-बढ़ी तिथियां एक पुरे माह का निर्माण करती है।
इस माह में संक्रांति नहीं होती है अर्थात जब सूर्य के एक राशि में रहते दो अमावस्या आ जाय तो मलमास कहलाता है।
मलमास का नाम पुरूषोत्तम मास क्यों पड़ा ?
भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपनी गणना पद्धतियों में हर चांद मास के लिए एक देवता निर्धारित किये परन्तु अधिकमास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुआ तो ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे इस मास के अधिपति बन जाए।
भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया। भगवान विष्णु के नाम पर यह मास पुरूषोत्तम मास कहलाया।
पुरूषोत्तम मास 2020 कब ?
इस वर्ष अश्विन मास के दो महीने होंगे । इन दो माह में बीच की अवधि वाला समय अधिकमास होगा । इस वर्ष 17 सितम्बर 2020 को अमावस्या है तथा 16 अक्टुबर 2020 को अमावस्या है ।
चूंकि प्रतिपदा से अधिकमास प्रारम्भ होता है । अतः 18 सितम्बर से 16 अक्टुबर तक पुरूषोत्तम मास रहेगा। तथा 17 अक्टुबर से शारदीय नवरात्रि पर्व शुरू होगा।
मलमास का महत्व- Adhik mass importance in hindi
ऋषि-मुनि कहते है बिना दिया हुआ नहीं मिलता,सर्वत्र दिया हुआ ही मिलता है । दान-हीन का जीवन व्यर्थ है।
भगवान पुरूषोत्तम कहते है कि ब्राह्मणों को दान देने वाला आप ही दाता तथा आप ही भोक्ता है अर्थात जो दान आप करते है
वह आपको ही प्राप्त होता है वह भी कई गुना बढ़कर।
मलमास में दान करते वक्त अपने मन में यह भाव नहीं रखे की आप दुसरो को दान दे रहे है क्योंकिं वह आपको ही वापस मिलने वाला है।
आप मलमास में जो जप-तप,पुजा-अर्चना,दान-पुण्य करेंगे वह अक्षय है अर्थात नष्ट नहीं होने वाला है। यह आपके द्वारा बैंक में किए गए फिक्स डिपोजिट की तरह बढ़कर आपको वापस मिलना है।
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यदि आप आर्थिक रूप से समपन्न है तो दान करने पर आप ज्यादा समपन्न बनेंगे तथा यदि आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर है तो दान करने पर आपकी आर्थिक स्थिति मजबुत होगी।
यदि आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो तो व्यतिपात,द्वादशी,पौर्णमासी,चतुर्दशी,नवन नवमी तथा अष्टमी को तो इस व्रत को निश्चित करना चाहिए । इससे आप सम्पन्न बनेंगे।
यदि आप सम्पन्न है तो प्रतिप्रदा से अमावस्या तक पुरे माह आप व्रत करे। अधिक मास का व्रत करने से आपका यह जीवन तो सुधरता है साथ ही परलोक भी सुधरता है।
भगवान पुरूषोत्तम कहते है कि जो मेरे उद्धेश्य से स्नान, दान, जप,होम,स्वाध्याय,पितृतर्पण,देवार्चन तथा सुभ कर्म जो मनुष्य करते है वह अक्षय होता है।
जिन्होंने मलमास को आलस्य से खाली बिता दिया उनका मनुष्य लोक में दारिद्रय,पुत्रशोक, पाप से भरा निन्दित जीवन होता है इसमें संदेह नहीं है।
अधिक मास में जो ब्राह्मणों का पुजन करते है उन पर लक्ष्मी की कृपा बरसती है ।
जब मनुष्य को मलमास मिले तो अपना भला चाहने वालो को इस मास को उत्सव की तरह मनाना चाहिये।
कृष्ण पक्ष की चौदस,नवमी व अष्टमी को यह शोकनाशक व्रत करना चाहिये।
मलमास में क्या न करें ?
- विवाह संस्कार न करे ।
- नये गृह का निर्माण प्रारम्भ ना करे ।
- वाहन नहीं खरीदे ।
- भूमि पूजन न करे ।
- नये घर में प्रवेश न करे।
- यज्ञोपवित संस्कार,मुण्डन संस्कार,कर्णवेध संस्कार,नववधु प्रवेश,स्वर्ण या भूमि खरीदना, नव तीर्थादन करना,उधार लेना तथा उधार देना,नवीन वस्त्र धारण करना, आदि कार्य मलमास में वर्जित है ।
- माँस,मदिरा का सेवन भी मलमास में वर्जित है ।
मलमास में क्या करें ? -Adhik mass importance in hindi
मलमास को आत्म शोधन करने का समय माना गया है।ज्योतिष में सूर्य आत्मा का कारक है तथा गुरू मुक्ति का कारक है ।
इसलिए इस समय में हमको सांसारिक कार्यो का मोह छोड़कर आत्मा के उत्थान का कार्य करना चाहिये।
इस समय में हम स्वाध्याय अर्थात शास्त्रों का अध्ययन कर सकते है।अपने इष्ट देवता का मंत्र जप कर सकते है । यदि आप गुरूमुखी है तो अपने गुरू मंत्र का जाप कर सकते है।
इस समय में आप शिवपूजन,श्राद्ध कर्म, कथा का श्रवण,जप,तप आदि कर सकते है।मलमास विष्णु की पुजा के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है।
इस मास में आप भगवान कृष्ण की आराधना, श्रीमद् भागवतगीता,श्री राम की आराधना, श्री मद् भागवत पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर सकते है। कथा श्रवण कर सकते है।
मलमास में भूमि पर शयन करना भी अच्छा माना गया है। मलमास में पुरे परिवार को एक साथ भोजन करना भी लाभकारी होता है ।
भगवान पुरूषोत्तम की पुजा करते वक्त पीले रंग के वस्त्र धारण करना भी श्रेष्ठ माना गया है।
इस माह में विष्णु सहस्त्रनाम,कनकधारा स्त्रोत,श्री सुक्त,रामायण पाठ,रूद्राभिषेक आदि सभी धार्मिक कृत्य जो परलोक सुधारने के लिए हो आप कर सकते है ।
मलमास का व्रत कैसे करे ?
प्रातःकाल उठकर अपनी दैनिक क्रिया करने के पश्चात स्नान कर भगवान का हृदय में स्मरण कर अपने मन ही मन संकल्प करे।
पुरे माह आप जो भी जप,व्रत,कथाश्रवण आदि धार्मिक कार्य करने वाले हो उसका मन ही मन निश्चय करें।
यदि आप डायबिटीज़ या अन्य ऐसी बीमारी से पीड़ित हो जिसमें भूखे नहीं रह सकते तो उपवास न करे।
आप सात्विक भोजन एक समय कर सकते है। फलाहार ले सकते है। अपनी शरीर की सामर्थय के अनुसार ही संकल्प ले। यदि भुखे रहना संभव न हो तो हल्का भोजन करके भी भगवान का नाम पुरे माह लिया जा सकता है।
यदि पुरे माह का संकल्प लेना संभव नहीं हो तो प्रतिदिन प्रातः संकल्प कर सकते है कि में आज यह करूंगा।
अधिक मास के प्रारम्भ के दिन दान आदि शुभ कर्म का फल अधिक मिलता हैं । मलमास की समाप्ति पर भी दानादि का काफी महत्व होता है।
व्रत के उघ्यापन के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा अपनी श्रद्धा के अनुसार दान देना चाहिए। मलमास में वस्त्रदान,अन्नदान ,गुड़ व घी से बनी वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है ।
पुरूषोत्तम मास में पानी के कुंभ पर लक्ष्मी व नारायण की प्रतिमा स्थापित कर पंचोपचार या षोडसोपचार विधी से उनकी पुजा करे।
सुगंधित चंदन,पुष्प ,नैवैघ,घूप,दीप आदि से इनकी पुजा करे तथा भगवान को पीले वस्त्र चढ़ावे।
यदि आप पुजा करना नहीं जानते हो तो ब्राह्मण को बुलाकर पुजा करवा सकते हो।
घंटा,शंख,मृदंग धवनि के साथ कपुर,अगरू या चन्दन से आरती करे ।
चंदन,अक्षत(चावल),फूलों के साथ तांबे के पात्र में पानी भरकर भक्ति से अर्घ्य दे।
अर्घ्य देते समय ब्रह्मा व विष्णु का स्मरण करते हुए महादेव से प्रार्थना करें।
हे महादेव ! प्रलय,उत्पत्ति करने वाले हे देव । मेरे पर कृपा करके मेरा अर्घ्य ग्रहण कीजिए।
है स्वयंभु में आपको प्रणाम करता हूं। हे पुरूषोत्तम लक्ष्मी के साथ आप मुझ पर कृपा करे। इस प्रकार गोविन्द का पुजन करे।
सूर्य की प्रसन्नता के लिए 33 मालपुए प्रात्र में रखकर दान करे।
इस प्रकार जो स्त्री व्रत करती है उसे दारिद्रय पुत्रशोक और वंधव्य नहीं होता है।
जो पुरूष इस तरह मलमास का व्रत करता है उसे दारिद्रय,पुत्रशोक या वंधव्य नहीं होता है।
यह लेख व्रतराज तथा अन्य शास्त्रों को पढ़कर लिखा है इसलिए में उनका आभारी हूं।