anand ko kaise paye in hindi-मानव ईश्वर का अंश है । ईश्वर को सच्चिदानंद स्वरूप मानते है। मानव में ईश्वर के दो गुण सत् और चित् विघमान है वह तीसरे गुण आनन्द को प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयत्न करता रहता है तथा आत्मा से परमात्मा बनने का प्रयास करता है
अर्थात जीव से ब्रह्म बनने का प्रयत्न करता है।
कई संतो ने कहा है कि ईश्वर में आनंद है परन्तु ऐसा कहने से ऐसा लगता है कि ईश्वर व आनंद दो अलग-अलग है।
कई संतो ने कहा है कि आनंद ही ईश्वर है आनंद ईश्वर से अलग नहीं है। आनंद आत्मा का स्वभाव है ।
सुख-दुःख मनमन के कारण महसुस होते है। आत्मा सुखी व दुःखी नहीं होती है क्योंकि आत्मा परमात्मा का अंश है इसलिए आनंद स्वरूप ही है।
कभी सुख आता है तो कभी दुःख आता है परन्तु आप सुख दुःख से परे आनंद स्वरूप आत्मा हो।
व्यक्ति स्वयं ही आनंद का स्त्रोत है फिर भी वह बाहर संसार में आनंद तलाशने का कार्य करता है ।
आनंद किसी स्त्री को प्राप्त करने में या किसी पुरूष को प्राप्त करने में नहीं है, कार या बंगले में नहीं है,
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आनंद तो तुम्हारे भीतर ही विराजमान है जब अपने अंदर आनंद ढुढने का प्रयास करोंगे तो आपको मिल जाएगा। आनंद मिलने पर सुख या दुख आपको प्रभावित नहीं कर पाएंगे।
आनंद ही सच्ची शांति देता है। जब तुम सोते हो तो आनंद महसुस होता है क्योंकि उस समय आत्मा में बैठे हुए परमात्मा का आनंद मिलता है।
दुनिया के सारे कार्यो को छोड़कर सोने की ईच्छा होती है। क्योंकि सोने में आनंद है।
इन पांच लोगों को सोते से जगाया तो खतरा निश्चित – चाणक्य नीति
अच्छी नींद तब आती है जब आप बाहरी दुनियॉ को बिलकुल भुला दो अर्थात इन्द्रियों को अन्तर्मुख कर लो।
नींद के समय जो स्थिति होती है मन जिस तरह से शांत रहता है ऐसी अवस्था जाग्रत अवस्था में ले आओ तो फिर जहॉ भी जाओ वहा आनंद ही आनंद रहेगा।
मन तभी शांत होगा जब उसे संसार से हटाकर प्रभु के स्मरण में लगा दो।
प्रभु के सुमिरन में मन लग गया तो सदैव आप आनंद में ही रहेंगे क्योंकि परमात्मा तो आनंद स्वरूप ही है।
यदि मन भुतकाल की बातो में या भविष्यकाल की बातों में लगा हुआ हो तो अच्छी गहरी नींद नहीं आती है तथा नींद में आनंद अनुभव होता है
उसी प्रकार जाग्रत अवस्था में भी हमें भुतकाल तथा भविष्य की बातों में न उलझकर हमेशा वर्तमान में रहनारहना चाहिये तभी हम आनंद का अनुभव कर पाएंगे।
बलदेव रावल