श्रीमद् भगवत् गीता प्रथम अध्याय
।। ऊँ श्री गुरूवे नम: ।।
श्रीमद् भगवत् गीता
।। अथ प्रथमोअ्ध्याय :।।
धृतराष्ट्र उवाच :-
धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: ।
मामका: पाण्डवाश्र्चैव किम कुर्वत संजय ।।
घृतराष्ट्र बोले :-
हे संजय,धर्मभूमि करूक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्रित मेरे पुत्रों तथा पाण्डु पुत्रों ने क्या किया।
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धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे परन्तु उन्होंने महाभारत के युद्ध को देखने की भगवान से इच्छा प्रगट की तो भगवान ने संजय का तीसरा नेत्र,शक्तिपात द्वारा खोल दिया तथा धृतराष्ट्र को कहा की युद्ध में जो भी कुछ होगा उसको यह संजय देख सकेगा तथा वह आपको आँखो देखा हाल सुनायेगा।
प्रथम श्लोक में धृतराष्ट्र की जिज्ञासा प्रकट हुई है। वह संजय से युद्ध भूमि में होने वाली घटना को जानना चाहते है । वर्तमान में जैसे खेलो की कॉमेन्ट्री कॉमेन्ट्रेटर सुनाते है वैसे संजय धृतराष्ट्र के लिए कॉमनट्रेटर का कार्य कर रहा है।
भगवान चाहते तो धृतराष्ट्र का तीसरा नेत्र खोल सकते थे परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि धृतराष्ट्र पुत्रमोह व अपनी महत्वकांक्षा के कारण उन्होंने अन्याय का पक्ष लिया। उनकें सामने पाण्डुपुत्रों पर अन्याय होता रहा परन्तु वह चुपरहे तथा पुत्र के अनैतिक कार्यों में सपोर्ट किया।
अर्थात जिसका मन मलीन हो उसको गुरू की कृपा प्राप्त कैसे हो सकती है। जब तक व्यक्ति अपने मन के पात्र को साफ सुथरा नहीं बनाता तब तक उस पर गुरू की कृपा नहीं बरस सकती इसलिए भगवान ने धृतराष्ट्र पर शक्तिपात कर उनका तृतीय नेत्र नहीं खोला वरन् संजय का खोला क्योंकि संजय मन का साफ था।
तीसरा नेत्र खुलने पर व्यक्ति भुत,भविष्य व वर्तमान देख सकता है।जब तक व्यक्ति में अहंकार रहता है तब तक तृतीय नेत्र नहीं खुलता जब व्यक्ति अहंकार विहिन हो जाता है तो व्यक्ति के शरीर में ऐसे हार्मोंन्स का स्त्राव होता है जिससे तीसरे नेत्र के खुलने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।व्यक्ति जब सदगुरू के सामने अहंकार विहीन होकर समर्पण करता है तब गुरू के आशीर्वाद से उर्जा की गति तीसरे नेत्र की ओर होने लगती है तथा उसका तीसरा नेत्र खुल जाता है।
जब व्यक्ति मंदिर में भगवान की मूर्ति के सामने साष्टांग दण्ड़वत या प्रणाम करता है तथा अपना सिर झुकाता है तो अहंकार का नाश होता है तथा उर्जा तीसरे नेत्र की ओर बहती है। वर्तमान में फैशनेबल युवाओं को मंदिर में झुकते यदि शर्म आती है तो अपने कमरे में अपने सिर को पृथ्वी पर लगाए तथा परमात्मा को याद कर साष्टांग दंड़वत करे। अपने से बड़ो का आशीर्वाद ले तो आपके शरीर में हार्मोंन्स का स्त्राव आरम्भ हो जायेगा जो तीसरा नेत्र खोलता है।