चाणक्य ने बताया है कैसे शख्स के साथ दुष्टता करने पर नहीं लगता पाप ?

• किसी भी शख्स को महत्व उसके गुणों के कारण मिलता है. वह जिन पदों पर काम करता है सिर्फ उससे कुछ नहीं होता. यदि ऐसा नहीं होता तो क्या एक कौवे को गरुड़ कहा जाता यदि वह एक ऊंची इमारत के छत पर जाकर बैठ जाता.




• जिसकी लोग सराहना करते हैं वह दुनिया में काबिल माना जा सकता है. लेकिन जो आदमी खुद की ही डींगें हांकने में लगा रहता है वह अपने आप कोदूसरों की नजरों में गिराता है. भले ही वह स्वर्ग का राजा इंद्र ही क्यों न हो.
• यदि एक विवेक संपन्न व्यक्ति अच्छे गुणों का परिचय देता है तो उसके गुणों की आभा को रत्न जैसी मान्यता मिलती है. एक ऐसा रत्न जो प्रज्वलित है और सोने के अलंकर में मढ़ने पर और चमकता है.
• वह व्यक्ति जो सर्वगुण संपन्न है अपने आप को सिद्ध नहीं कर सकता है जब तक उसे समुचित संरक्षण न मिल जाए. उसी प्रकार एक मणि तब तक नहीं निखर सकती जब तक उसे आभूषण में न सजा दिया जाए.

• सभी जीव मीठे वचनों से आनंदित होते है. इसीलिए हमें मीठे बोल बोलने चाहिए.
• जिसका ज्ञान किताबों में सिमट गया है और जिसने अपनी दौलत दूसरों के सुपुर्द कर दी है वह जरूरत पड़ने पर ज्ञान या दौलत कुछ भी इस्तेमाल नहीं कर सकता.
• हमें दूसरों से जो मदद मिली है. उसे हमें लौटाना चाहिए. उसी प्रकार यदि किसी ने हमसे दुष्टता की है तो उससे दुष्टता करने में कोई बुराई नहीं है. ऐसा करने में कोई पाप नहीं है.
• जिसका ह्रदय शुद्ध है उसे तीर्थयात्रा की क्या जरूरत है. यदि स्वभाव अच्छा है तो और किस गुण की जरूरत है. यदि कीर्ति है तो अलंकार की क्या जरूरत है. यदि व्यवहार ज्ञान है तो दौलत की क्या जरूरत है. और यदि अपमान हुआ है तो वह मृत्यु से भयंकर है.

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.