Bhakti sandesh in hindi-हमारा तन एवं मन यदि पवित्र हो तो प्रभु के दर्शन निश्चित होते है। अर्थात मन निर्विकारी हो तो प्रभु का दर्शन सरल है। ध्यान एवं भक्ति दोनो उपाय करने से परमात्मा का साक्षात्कार संभव है।
ध्यान एवं भक्ति में जैसे-जैसे व्यक्ति आगे बढ़ता है उसमें समदृष्टि का विकास होता है ।
जैसे ही समदृष्टि आती है परमात्मा का अनुभव होना प्रारम्भ हो जाता है ।
हमारी भक्ति दृढ़ हो इसके लिए भगवान की कथा का श्रवण,परमात्मा का कीर्तन प्रभु का नाम स्मरण अर्थात सतसंग जरूरी है।
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जैसे-जैसे हम संसार में उलझते जाते है भक्ति कमजोर होने लगती है जैसे ही हम सतसंग करते है हममें नया जोश भर जाता है तथा हम भक्ति में आगे बढ़ने लगते है। भक्ति छुटे नहीं इसके लिए सतसंग आवश्यक है।
शास्त्रों में कहा गया है कि पिंड़दान के बिना मोक्ष संभव नहीं है मरने के बाद पुत्र पिंड़दान करता है ताकि माता-पिता को मोक्ष संभव हो।
मेरा तो मानना है कि हमें जीते जी इस शरीर का अर्पण भगवान को करना है अर्थात पिंड़दान करना है यदि आप स्वयं अपना पिंड़दान भगवान को करेंगे तो निश्चित मोक्ष प्राप्त होगा।
भगवान ने यह जन्म आपको मुक्ति के लिए दिया है। भोग तो जानवर भी भोगते है । हम भी भोग विलास में उलझे रहे तो हममें तथा जानवरों में क्या फर्क है।
पिंड़दान करना अर्थात इस पिंड़ अर्थात शरीर को भगवान की भक्ति में लगाना ही सच्चा पिंड़दान है।तथा यदि आपने पिंड़दान कर दिया अर्थात जो चीज़ दान कर दी वो तो प्रभु की हुई अत: प्रभु जैसे रखे वैसे आपको रहना है।
इस शरीर को ध्यान व भक्ति में लगाना है। जीभ की सार्थकता तभी है जब इस जीभ से हरिनाम का किर्तन हो,
भक्ति कैसे करे। Bhakti sandesh in hindi
भगवान की कथा कहीं जाय तथा कान भी तभी सार्थक है जब आप भगवद कथा हर शहरों में होती ही रहती है परन्तु भगवद कथा सुनने बहुत कम जाते है तथा जो सुनने जाते है उनमें भी वहां कथा चल रही है उसकों तन्मयता से नहीं सुनते है
तथा सांसारिक चर्चा तथा संसार का चिन्तन मन में करते रहते है।
यदि आप तन्मयता से भगवान की कथा सुनोगे तो भावविभोर हो जाओगे आँखों में आँसु निकल आयेगे तथा तुम्हारा मन निर्मल हो जायेगा यदि समय हो तो किसी संत या महापुरूष द्वारा कथा व सतसंग चल रहा हो तो निश्चित जाना चाहिए।
सतसंग सुनने से आपका भक्तिभाव दृढ़ होगा। ज्ञान से मुक्ति प्राप्त होती है ऐसा कहा गया है।
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यदि तुम सुनोगे, मनन करोगे तथा उसे जीवन में उतारोगे तभी मुक्ति संभव है। ज्ञान को जीवन में नहीं उतारा तो वह व्यर्थ है।
यदि आप मंत्र जप कर रहे है तो मन में मंत्र के प्रति संदेह है तो उस मंत्र को जपने में आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।
अपनी वाणी से प्रबु का कीर्तन करना, तथा आँख से प्रभु की मुर्ति को प्रेम से निहारना तथा सामने स्वयं प्रभु है ।
ऐसा मानना, प्रभु का एकाग्रता से ध्यान करना, ध्यान करते करते अपनी देह का मान भुल जाना।
जो देह का मान भुल जाता है उसकें पीछे-पीछे प्रभु घूमते है।
हमने नरसिंह मेहता.एकनाथ,मीरा,सुरदास आदि कई भक्तों का चरित्र पढ़ा है । ये भक्त अपनी देह का मान भुल चुके थे अर्थात अपने को आत्मा मानते थे फलस्वरूप इनके काम के भगवान दौड़े आते थे।
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धन्यवाद आपका जो आपने मूझे जीने का सही तरीका सीखा दिया मैं आपको शत शत नमन करता हू
धन्यवाद
भक्ति में दृढ़ कैसे रहे के बारे में आप ने बहुत ही प्रशंसनीय और महत्वपूर्ण जानकारी लिखी है। दिल से धन्यवाद !
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आपका भी दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद