holi and mahashivratri by jivandarshan

फाल्गुन मास में आएंगे दो बडे पर्व, 8 मार्च को महाशिवरात्रि और 25 मार्च को होगा होलिका दहन

हिन्दी पंचांग का आखिरी बारहवां महीना फाल्गुन शुरू हो गया है। मार्च महीने में महाशिवरात्रि और होलिका दहन, ये दो बड़े पर्व मनाए जाएंगे, इनके साथ ही दो चतुर्थियों और दो एकादशियों के व्रत भी किए जाएंगे।

25 मार्च के बाद चैत्र मास शुरू होगा।
इसी के साथ मौसम में भी बदलाव आने वाला है । ठंड खत्म हो रही है और अब गर्मी की शुरुआत होगी। ऐसे में पूजा-पाठ के साथ ही स्वास्थ्य संबंधी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए।

इन दिनों में मौसमी बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए खानपान और अपनीजीवन शैली का ध्यान रखना चाहिए।

8 मार्च को देवो के देव महादेव का महापर्व महाशिवरात्रि

माना जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर ही ब्रह्मा जी और विष्णु जी के सामने शिव जी शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।

इस संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच विवाद हो रहा था। दोनों खुद को श्रेष्ठ बता रहे थे। यही विवाद की वजह थी। दोनों के बीच की लड़ाई बहुत बढ़ गई थी। उस समय वहां शिव जी एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे।

शिव जी ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी का विवाद खत्म कराया। ये घटना फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की थी। इसी वजह से हर साल इस तिथि पर महाशिवरात्रि मनाई जाती है। एक मान्यता ये भी है कि इस तिथि पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।

मौसमी बदलाव का स्वागत उत्सव के साथ करें

अभी शीत ऋतु खत्म हो रही है और गर्मी की शुरुआत होगी। मौसम बदलेगा, पेड़ों से पत्ते गिरने लगेंगे और फिर नए पत्ते आएंगे। इस मौसमी बदलाव का स्वागत होली उत्सव मनाकर किया जाता है।

प्रकृति हमें संदेश देती है कि जब पुरानी चीजें खत्म होती हैं, तब ही नई चीजों की शुरुआत होती है। इसलिए हर परिवर्तन के लिए हमें सकारात्मक रहना चाहिए।

होली के संबंध में सबसे ज्यादा प्रचलित मान्यता भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यपु से जुड़ी है। प्रहलाद असुरराज हिरण्यकश्यपु का पुत्र था और वह विष्णु जी का परम भक्त था।

इसी बात से गुस्सा होकर हिरण्यकश्यपु अपने ही पुत्र का मारना चाहता था। असुरराज की बहन होलिका प्रहलाद को मारने के लिए अंगारों में बैठ गई थी।

होलिका को वरदान मिला था कि वह आग में जलेगी नहीं, लेकिन विष्णु जी की कृपा से प्रहलाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी।

इसलिए हर साल फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका जलाई जाती है। ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।

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