loneliness in hindi -एक बात कही जाती है कि अकेलापन सेहत का दुश्मन है. ऐसे में सवाल उठता है कि दोस्त कहां से लाएं ? दुनिया इतनी तेजी से दौड़ रही है कि किसी के पास रुकने का समय तक नहीं है.
ऐसे में दोस्त बनाना दूर की कौड़ी लगती है.loneliness in hindi
दूर क्यों जाना. अपने आस पड़ोस, दफ्तर में ही देख लीजिए. कितने दोस्त हैं आपके ? कौन खड़ा होता है आपके साथ ? जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा.
वैसे जवाब पाजीटिव है तो आप लकी हैं. और निगेटिव है तो समझ लीजिए आप 21वीं सदी की सबसे बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं. और ये समस्या है अकेलेपन की.
परिवारवालों का साथ एक हद तक तो आपको व्यस्त रख सकता है लेकिन उसके बाद? जी हां खालीपन. तो इस खालीपन को कौन दूर सकता है. हमारे मित्र, पड़ोसी, परिचित. यही तो होंगे न.
हम अहमदाबाद में हाल ही में जिस जगह पर शिफ्ट हुए हैं. वह शहर का बाहरी इलाका है. अहमदाबाद शहर से करीब 10 किमी दूर.
इस टाउनशिप में रहने वाले ज्यादातर लोग बाहर से आए हैं. कोई मुंबई से, कोई पुणे से, कोई दिल्ली से तो कोई किसी और शहर से.
टाउनशिप में एंट्री जितना सुकून देती है. वहां का अकेलापन उतना ही लोगों को परेशान करता है. अक्सर ऑफिस से लौटने पर पत्नी से दिन भर क्या कुछ हुआ,
इसी पर बात होती है. चूंकि टाउनशिप बड़ी है तो कोई न कोई नया मेहमान श्रीमतीजी से रोज टकरा ही जाता है.
और पहली बातचीत का बिंदु अक्सर यही होता है कि यहां कोई बात नहीं करता. यहां कोई मिलता जुलता नहीं है.
जिस शहर से हम आए हैं वहां तो लोग एक दूसरे से मिलते जुलते थे. बातें होती थीं. लेकिन यहां मामला अलग है.
loneliness in hindi
कोई किसी से बात ही नहीं करना चाहता. हैरानी की बात तो ये है कि जितने लोग मिलते हैं. उनमें से ज्यादातर की शिकायत यही होती है.
और उस पर एक हैरानी यह भी कि हर किसी का सामना हमारी श्रीमती से ही होता है. खैर. उसकी आदत है लोगों से बातें करने की. बेतकुल्लफ होकर किसी से भी बात करने में उसका कोई सानी नहीं है.
इसी चक्कर में इस भीड़ भरी टाउनशिप में अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के बीच काफी कम समय में बहुत सारी मित्राणियां उसने बना ली हैं.
अब उनका घर आना जाना भी शुरू हो गया है. ऐसा शहर शहर दर शहर कई बार हो चुका है..
खैर! हम मुख्य पाइंट पर आते हैं. मैंने महसूस किया है कि हम किसी से जिस तरीके से मिलते हैं. वही तरीका अंत में हमारी आगे की रिलेशनशिप के लिए काम आता है.
फिर चाहे वो दोस्ती हो. अच्छे पड़ोसी का रिश्ता हो या फिर अच्छा परिचय.
दरअसल हर कोई बात करना चाहता है, अपने आसपास के लोगों से मिलना जुलना चाहता है. लेकिन संकट पहल करने का होता है.
ज्यादातर लोग इस सोच में ही अकेले रहे जाते हैं कि सामने वाले से बात करूं या नहीं. कहीं उसे अच्छा नहीं लगा तो.
मैं क्यों बात करूं. उसे पहले बात करनी चाहिए. जैसी छोटी छोटी बातों में उलझकर रह जाते हैं.
जबकि होना ये चाहिए कि खुद पहल कर ली जाए. इससे फायदे ज्यादा नुकसान कम होते हैं.
दरअसल जीवन स्पर्धा में इतना मशरूफ हो गया है कि हर कदम उठाने से पहले अच्छे बुरे का विचार मन में स्वाभाविक तौर पर आने लगता है.
इसे छोड़ना होगा.
ऑफिस में भी मेलजोल बढ़ाने के लिए काम की बातों के अलावा भी बातें करनी चाहिए.
साथियों से ऐसा व्यवहार जिसमें आप उनकी खुशी में खुश और तकलीफ में साथ देने वाले की भूमिका में आएंगे तो रिश्तों की गर्मी बनी रहेगी.
एक अलग सा संबंध विकसित होगा और उसका फायदा आपको निजी तौर पर अनुभव भी होगा. निश्चित रूप से काम में भी और काम के बाहर भी.
दोस्त कैसे बनाए जाएं. हम इस सवाल से चले थे. तो इसके दो तरीके हैं एक तो पहल करना. और दूसरा तारीफ करना.
तारीफ आपको दूसरों के सबसे ज्यादा करीब लाती है. दूसरों में बुराई देखने से बेहतर है उनकी तारीफ करें. जितने लोगों की तारीफ करेंगे उतने ही दोस्त बनाएंगे.
बस, तारीफ झूठी न हो. इसका ध्यान रखें. आप पाएंगे कि लोग आपसे जुड़ रहे हैं.
आपके आसपास जितने ज्यादा लोग होंगे. उतना ही कम अकेलापन होगा.
अकेलापन नहीं होगा तो कुंठा नहीं होगी. कुंठा नहीं होगी तो बीमारी नहीं होगी और बीमारी नहीं होगी तो जीवन का आनंद चौगुना नहीं तो दोगुना तो हो ही जाएगा…
आजमाकर देखिए