manpasand santan kaise paye in hindi – प्राचीन भारत में अनेको विद्याएं प्रचलित थी तथा उन विद्याओं के जानकार उन विद्याओं का प्रयोग जनहित के लिए करते थे ताकि सभी सुखी सम्पन्न हो ।
“स्वरोदय विद्या”“मनचाही सन्तान कैसे प्राप्त करे”manpasand santan kaise paye in hindi
में आपको इन विभिन्न विद्याओं के बारे मे समय-समय पर बताऊंगा ताकि आप सब उसका उपयोग कर अपने जीवन को आनन्दपुर्ण बना सके आपके जीवन में कोई भी अभाव या समस्या ना रहे।
आज में आपको “स्वरोदय विद्या” के बारे में बताऊंगा जिसका उपयोग आप अपने जीवन में कर अपने जीवन को स्वर्ग बना सकते है । प्राचीनकाल में भारत के प्रत्येक घर में इस विद्या का प्रचलन था उस समय सभी सुखी व संपन्न थे दु:ख का नामोनिशान नहीं था क्योकिं सभी “स्वरोदय विद्या” का नित्य अभ्यास करते थे।
हम जन्म के समय से मृत्यू तक निरन्तर श्वास लेते रहते है क्षण के लिए भी श्वास लेना भुल जाए तो हम मर जाएंगे इसी कारण परमेश्वर ने श्वास लेने का जिम्मा हमे नहीं दिया क्योकिं यदि हम श्वास लेना भुल जाए तो क्या होगा ? यदि हम नींद में हो,बेहोश हो तब भी श्वसन क्रिया जारी रहती है। अत: स्पष्ट है कि श्वास ही जीवन है तथा श्वास ही हमें शरीर से जोडे रखता है ।
“स्वरोदय विद्या” का अभ्यास प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है तथा उसका उपयोग कर लाभान्वित हो सकता है यदि व्यक्ति सरल ह्दय का हो तथा “स्वरोदय विद्या” पर विश्वास रखे तो वह अपने जीवन को सुखी संपन्न बना सकता है ।manpasand santan kaise paye in hindi
“स्वरोदय विद्या” को समझने वाला परमात्मा का अनुभव प्राप्त कर सकता है,किसी भी भूत भविष्य तथा वर्तमान के प्रश्नो का उत्तर दे सकता है । किसी भी साधना को सिद्ध कर सकता है जिसे चाहे वश में कर सकता है ।
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इच्छानुसार पुत्र या पुत्री प्राप्त कर सकता है..आत्मिक ज्ञान को प्राप्त कर सकता है,रोगो को समाप्त कर पुर्ण रूप से स्वस्थ हो सकता है । अपनी यादशक्ति को बढ़ा सकता है, ओऱ भी ऐसे अनगिनत कार्य कर सकता है “स्वरोदय विद्या” को जानने वाला अपने जीवन को आन्नदपुर्ण बना सकता है।
श्वसन क्रिया में हमें लगता है कि सांस का बहना नासिका को दोनों छिद्रो से समान रूप से हो रहा है परन्तु जब हम नासिका का छिद्रो पर ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि श्वसन क्रिया में श्वास का बहना कभी दाहिनी ओऱ के नासाछिद्रो से होता है तो कभी बांयी ओर के नासाछिद्रो से होता है तथा कभी-कभी कुछ समय के लिए श्वास का बहाव दोनो छिद्रो से होता है।
जो वायू हमारी नाक के दाहिने छिद्र से प्रवाहित होती है उसे सूर्यस्वर या पिंगला कहते है तथा बांयी नाक के छिद्र से वायु प्रवाहित होती है तो उसे चंद्रस्वर या इड़ा कहते है ।
अर्थात् यदि वायु का प्रवाह दोयें नासिका छिद्र से हो रहा हो तो उसे सूर्यस्वर तथा बाये नासिका छिद्र से वायु के प्रवाह को चंद्रस्वर चल रहा कहते है ।
नासिका छिद्रो से स्वर का प्रवाह स्वाभाविक रूप से एक-एक घण्टे के अंतराल से बदलता है तो कुछ समय ऐसा आता है जब दोनो छिद्रो से समान प्रवाह होता है यह समय सन्धिकाल का स्वर शून्य स्वर या सुषुम्ना कहलाता है। शून्यस्वर चलने पर मोक्ष सम्बंधी कार्य योगाभ्यास आदि करने चाहिए।
इड़ा में चंद्र स्थित रहता है। पिंगला में सूर्य स्थित रहता है सुषुम्ना शिव स्वरूप है।
“मनचाही सन्तान कैसे प्राप्त करना”
यदि किसी के लड़कियां ही जन्म लेती हो तो पुत्र प्राप्ति तथा जिसे लड़के ही जन्म लेते हो उसको पुत्री की इच्छा हो तो “स्वरोदय विद्या” का उपयोग करने से मनचाही सन्तान प्राप्त की जा सकती है।
पुरूष का सूर्यस्वर चल रहा हो तथा स्त्री का चंद्रस्वर चल रहा हो उस समय विषय भोग करने से पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है। हम चाहे तो कुछ प्रयोगो को कर के इच्छानुसार स्वर बदल सकते है।
जिस स्वर को चलाना चाहते है उसकी विपरीत करवट लेकर कुछ समय तक लेट जाए।
अर्थात यदि पुत्र रत्न के प्राप्ति की इच्छा हो तो पुरूष बांयी करवट तथा उसकी पत्नी पति की ओर मुंह करके दांयी करवट में कुछ समय लेट जाए ऐसा करने पर पुरूष का सूर्यस्वर तथा महिला का चंद्रस्वर चलने लगेगा तथा विषय भोग के उपरान्त पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी यदि पुत्री को जन्म देना हो तो पुरूष दांयी करवट तथा उसकी पत्नी बांयी करवट पति की ओर मुंह करके लेटे कुछ समय बाद पुरूष का चंद्रस्वर तथा महिला का सूर्य स्वर चलने लगेगा तथा विषय भोग करने पर पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है।
चौथे दिन से सौलहवे दिन तक विषय भोग करने पर गर्भ की प्राप्ति होती है।
विद्धानो का कहना है कि ऋतुस्त्राव के स्नान के पश्चात चौथी,छठी,आठवी,दसवी,बारहवीं,चौदहवी रात्री को विषय भोग करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तथा पांचवी,सातवी,नवीं,ग्यारवीं तेरहवी,पन्द्ररवी रात्री को भोग करने से पुत्री की प्राप्ति होती है।
उपरोक्त दिनो में गर्भादान करने पर इच्छित संतान प्राप्त होती है ऐसा शास्त्रो में लिखा है…….