Parmatama prapti ka saral tarika in hindi by jivandarshan

परमात्मा प्राप्ति का सरल तरीका (Parmatama prapti ka saral tarika in hindi)

कैसे करे परमात्मा की प्राप्ति (Parmatama prapti ka saral tarika in hindi)

Parmatama prapti ka saral tarika in hindi – मेरे गुरूजी सदा कहते है कि यदि परमात्मा का अनुभव करना है तो अपने मन को बालकों के मन की तरह बना लो। स्वयं बालक ही बन जाओ। बच्चों के मन में कोई विकार नहीं होता है।

उनका मन निर्दोष होता है । बच्चों का कोई अपमान करे,तो रोने लगता है परन्तु पुचकारकर कोइ उन्हें चुप कराये तो वो चुप हो जाते है अपने अपमान को भुल जाते है तथा अपमान करने वाले के प्रति कोई द्वेष भाव नहीं रखते।

जबकि इसके विपरीत तुम्हे कोई कटु शब्द कह कह दे तथा अपमान कर दे तो तुम उसे जिन्दगी भर नहीं भुलते हो। बालक खेलते-खेलते लड़ पड़ते है तो थोड़ी देर में उसे भुल जाते है तथा वापस खेलने लगते है।

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जैसे अंदर से तुम हो बाहर से तुम वैसे ही रहो अर्थात बच्चों की तरह अपनी मन वाणी और क्रिया को एक रखो।

मन में जो है वहीं बोलो जैसा बोलो वैसा ही आचरण करो। यदि तुम अंदर से कुछ और हो तथा बाहर से कुछ ओर तो यह पाखंड कहलाता है।

बच्चों के मन में अभिमान नहीं होता है । तुम्हे भी अपने मन में अभिमान नहीं आने देना है चाहे तुम कितने ही अधिक ज्ञानी हो परन्तु परमात्मा की भक्ति में जब बैठो तो अज्ञानी बन जाओ सरल बन जाओ तभी तुम्हारे मन का स्पर्श परमात्मा से हो सकेगा।

किसी को भी कमजोर नहीं समझना है सबमें ईश्वर का अंश विघमान है । इसलिए सबसे प्रेम रखो,मन मन में किसी के प्रति द्वेष-भाव मन रखो।

यदि अपने मन में दुसरो के प्रति खराब भाव रखोगे तो तुम्हारा ही मन खराब होगा तथा तुम परमात्मा से दुर होते जाओगे।

जाने अनजाने तुमसे कोई पाप हो गया होतो परमात्मा से क्षमा मांग लो तथा कोशिश करो कि ओर पाप ना हो । ईश्वर बड़ा दयालु है वह माफ कर देता है।

अपने जीवन में संयम धीरे-धीरे बढ़ाते चलो। नवरात्री में तो आप परमात्मा की कृपा प्राप्त करने के लिए बैठते हो परन्तु जैसे ही नवरात्री पूर्ण हो जाती है तुम परमात्मा को भुल जाते हो।

Parmatama prapti ka saral tarika in hindi

तुम्हें परमात्मा को भुलना नहीं है प्रतिदिन परमात्मा के प्रति प्रेम बढ़ाते रहो अपना सुमिरन या गुरू मंत्र का जप करते रहो।

धीरे-धीरे मन निर्मल होने लगेगा।तथा परमात्मा का स्मरण हमेशा होने लगेगा एक समय ऐसा आयेगा की चौबीसो घंटे तुम्हारा मन परमात्मा में रमने लगेगा।

तुम कोई भी कार्य कर रहे हो तुम्हारा मन सुमिरन में लगा हुआ अर्थात परमात्मा की याद में रमा रहेगा तभी परमात्मा का अनुभव होगा।

यदि आपने प्रेम किया हो को तुम्हे पता होगा की खाते,पीते,उठते बैठते जैसे तुम्हे प्रेमी की याद मन में रहती है तथा तुम सारे कार्य करते हो उसी प्रकार परमात्मा का स्मरण निरन्तर तुम्हारे अंदर होने लगेगा।

अंत समय में तुम जब शरीर छोड़ोगे तो यही परमात्मा के सुमिरन की आदत तुम्हे अंत में मुक्ति को प्रदान करेगी।

परमात्मा की भक्ति का नशा जब तुम्हे चढ़ेगा तो तुम्हे सर्वत्र परमात्मा का अनुभव होने लगेगा तथा धीरे-धीरे तुम्हारा देहभाव विलीन होने लगेगा तथा तुम विदेही बन जाओगे

अर्थात परमात्मा के सुमिरन करते-करते देह का मान जाता रहेगा यही उच्च स्थिति है जिसमें संत अपने देहभाव को भुलकर परमात्मा के अंदर खो जाते है।

ऐसी अवस्था में चैतन्य महाप्रभु जैसे संत जब किर्तन करते है तो उनका प्रभाव निर्जीव व सजीव सभी पर पड़ने लगता है।

गीता में कृष्ण भगवान ने कहा है कि जब तुम मेरे चरणो में अपना समर्पण कर दोगे तो तुम्हारी देखभाल में स्वयं करूंगा।

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