people close eyes to pray in hindi-सृष्टि के कण कण में ईश्वर का वास है. यह बात सदियों से कही सुनी जा रही है. मनुष्य के रोम रोम में भगवान बसे हैं.
यह पहले वाक्य का ही रूपांतरित हिस्सा है जिसे मनुष्य पर केन्द्रित कर दिया गया है.
सवाल यह है कि जब रोम रोम में भगवान बसे हैं, सृष्टि के कण कण में ईश्वर विद्यमान है तो हमें दिखाई क्यों नहीं देता ?
और उससे भी बड़ी बात यह है कि जब हम भगवान की पूजा के लिए उनकी तस्वीर या मूर्ति के सामने जाते हैं तो अपनी आंखें बंद करके ही उनका ध्यान करते हैं.
सवाल यह है कि अपनी आंखें खोलकर हम ईश्वर में ध्यान क्यों नहीं लगाते. कई दिनों से यह सवाल चुभ रहा था. इसलिए इसका उत्तर खोजने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी…
ये दोनों सवालों का जवाब ढूंढते-ढूंढते एक कहानी पढ़ने को मिली. इस कहानी ने बहुत कुछ साफ कर दिया.
अपने काम में माहिर एक हार्ट सर्जन न जाने कितने मरीजों को नया जीवन दे चुके थे. दूर-दूर तक उनकी ख्याति फैली थी.
जिस शहर में वे रहते थे उसी के बाहर एक नदी थी जिसके किनारे एक संत का आश्रम था.
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हर दिन सैकड़ों लोग उनसे मिलने आते और अपनी समस्या का समाधान पाकर खुशी खुशी लौट जाते.
एक दिन डॉक्टर के मन में संत से मिलने का विचार आया. बिना देर किए वे संत से मिलने जा पहुंचे.
पेड़ के नीचे बैठे संतबेहद शांत भाव से लोगों के सवालों और जिज्ञासाओं के जवाब दे रहे थे.
ऐसा करते करते डॉक्टर का भी नंबर आ गया. उन्होंने संत से कहा ‘महाराज, क्या यह सच है कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में रहता है.?
मैं तो हार्ट सर्जन हूं कितने ही दिलों को मैंने खोलकर देखा है. उसके एक एक अंग से परिचित हूं लेकिन मुझे कभी उसमें ईश्वर के दर्शन नहीं हुए.
सवाल सुनकर संत मुस्कुराने लगे. उन्होंने तत्काल अपने शिष्यसे एक गाय बुलवाई.
गाय आते ही संत ने डॉक्टर से कहा कि वे जाएं और गाय का दूध निकाल लाएं.
आज्ञा मिलते ही डॉक्टर ने बर्तन उठाया और गाय का दूध दुहने पहुंच गए लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी वे गाय का एक बूंद दूध भी नहीं निकाल पाए.
आखिरकार इस काम में नाकाम होकर वे संत के पास लौट आए.
संत ने मुस्कुराते हुए इस बार शिष्य से कहा कि वो गाय का बछड़ा ले आए. शिष्य ने बछड़े को गाय के पास लाकर बांध दिया.
बछड़े के आते ही गाय उसे दुलारने लगी. संत ने डॉक्टर से कहा ‘अब आप दूध दुहने की कोशिश कीजिए.
डॉक्टर ने फिर से वही प्रक्रिया दोहराई लेकिन इस बार उन्हें नाकामी नहीं बल्कि कामयाबी मिली और गाय ने इतना दूध दिया कि देखते ही देखते बर्तन लबालब हो गया.
डॉक्टर हैरानी के साथ संत के पास लौट आए. संत डॉक्टर की हैरानी को समझकर बोले
‘जैसे गाय के दुधारू होते हुए भी पहले आप उससे दूध नहीं पा सके, वैसे ही जब तक आपके भीतर सच्चे ध्यान और बाहर सच्चे प्रेम की लौ प्रज्वलित नहीं होगी,
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तब तक आप ईश्वर को नहीं पा सकेंगे.
आंखें बंद रहें तो प्रकाश कितना ही तेज क्यों न हो, दिखाई नहीं देता. आंखें खुल जाएं तो यह सवाल ही बेकार हो जाता है.
अपने भीतर आस्था, विश्वास और प्रेम का दीप जलाएं, यह जान लें कि उनका उजियारा संदेह के अंधेरे से लाख गुना बलशाली है.
उन्होंने फिर एक उदाहरण दिया कि पानी में जब जब तंरगें हिलोरें मारती हैं चांद की परछाई उसमें साफ दिखाई नहीं देती लेकिन वही पानी जब स्थिर और शांत हो जाता है
तो उसमें चांद का प्रतिबंब एकदम साफ दिखाई देता है. संत ने कहा कि दिल में यदि यहीं शांति और निर्मलता हो तो ईश्वर के दर्शन के लिए दूर नहीं जाना होगा.
देखा जाए तो ये महज एक कहानी है लेकिन जो संदेश इसमें छिपा है वह कितने ही लोगों के सवालों का जवाब है मुझे भी अपने सवाल का जवाब इसी कहानी को पढ़कर मिला.
हालांकि दौड़भाग और आपाधापी के बीच मन को शांत रखना एक बड़ी चुनौती है लेकिन एक सवाल का जवाब भी दिल को बहुत सुकून देता है.
मैं अब भी पहले की ही तरह पूजा-अर्चना के दौरान आंखें बंद कर लेता हूं. लेकिन तब और अब के दौरान काफी बदलाव महसूस करता हूं…करके देखिए और अपने अनुभव शेयर कीजिए.