Priorities in life in hindi-एक बात अक्सर कही जाती है कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए. लेकिन दुनिया में बदलाव जितनी तेजी से हो रहे हैं
उतनी ही तेजी से हमारी जरूरतें भी बढ़ती जा रही हैं.
दरअसल ये दौर जरूरतों का कम जरूरतें पैदा करने का ज्यादा नजर आने लगा है. मार्केटिंग का फंडा भी यही है जरूरत पैदा करो.
जरूरत नहीं होगी तो मार्केर्टिंग कैसे होगी. फायदा कैसे होगा, मुनाफा कैसे होगा. सामान की पहुंच कैसे बनेगी.
मार्केटिंग के इसी फंडे ने बाजार में तहलका मचा रखा है.
हमने वो दौर देखा है जब न मोबाइल हुआ करते थे, न टीवी न दूसरे गैजेट्स और साजो सामान. आज भी कई हिस्सों में इन चीजों की पहुंच नहीं है.
जरूरत पैदा हुई तो आविष्कार हुए. फिर मार्केटिंग हुई और अब हर घर को ये चीजें चाहिए ही चाहिए. टीवी, मोबाइल को आए अभी बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं.
लेकिन ये चीजें अब हर किसी के पास जरूरत से ज्यादा उपलब्ध हो गई हैं. सवाल टीवी मोबाइल का नहीं है. सवाल ये है कि आखिर हमारी जरूरत क्या है.
अक्सर हम महंगाई का रोना रोते हैं. लेकिन ये नहीं देखते कि हम जो खर्च कर रहे हैं वह वाकई जरूरी है या नहीं.
Priorities in life in hindi
जिस दिन हम अपनी जरूरत का आंकलन कर लेंगे मेरा मानना है हमारी बहुत सी समस्याएं हल हो जाएंगीं. फिर हमारे पास वहीं चीजें होंगीं जिनकी हमें वाकई जरूरत है.
वैसे जरूरत कहां से पैदा होती है ? ये भी बड़ा सवाल है. इसके कुल जमा चार सोर्स होते हैं. पहला वाकई जरूरत, दूसरा विज्ञापन, तीसरा कंपीटिशन और चौथा प्रदर्शन.
इनमें से जरूरत को छोड़ दें तो बाकी की तीन बातें केवल आपको प्रभावित करने के लिए हैं.
जरूरत ने ही हमें आग, पानी और हवा दिए हैं. क्योंकि जीवन के लिए ये जरूरी हैं….खैर
विज्ञापन हमें दिखाता है कि कैसे कोई चीज हमारे लिए आज के समय की बड़ी जरूरत है. वो हमें ये मानने के लिए मजबूर करता है कि उस चीज का हमारे पास न होना यानी हमारे पास कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है.
बाजार में मिलने वाली बच्चों के खाने पीने की गैरजरूरी चीजों से लेकर हर छोटी बड़ी चीज पर यही सिद्धांत लागू होता है.
फिर कंपीटिशन की बारी आती है किसी के पास कोई चीज को देखकर मन कुलबुलाता है.
अंदर से आवाज आती है कि हमारे पास भी ये चीज होनी चाहिए. ये अलग बात है कि हमें उस चीज की जरूरत है या नहीं.
चौथी चीज होती है प्रदर्शन. कुछ लोगों की आदत होती है अपने पास मौजूद वस्तु को दिखाने की. आजकल ब्रांड का दौर चल रहा है.
आपके पास जितना बड़े ब्रांड की चीज होगी आप उतने ही चर्चा में रहेंगे.
मुझे नहीं लगता कि इन तीन बातों के अलावा कोई चीज होती है जो हमें जरूरत का अहसास कराती है.
अब बात करते हैं कमाई और जरूरत के कनेक्शन की. क्योंकि जरूरतें आप तभी पूरी कर सकते हैं जब आपके पास पर्याप्त मात्रा में धन हो.
बिना धन के जीवन नहीं चल सकता. लेकिन हमारी कमजोरी होती है कि जरूरत को हम मानसिक रूप से पैदा करते हैं. यही सबसे बड़ी दिक्कत होती है.
यदि जरूरत को प्रैक्टिकल नजरिए से देखें तो कई चीजें आसान हो जाती हैं. इससे हमें अपनी चादर का पता रहता है और वह चीज हमारे लिए वाकई जरूरी है या नहीं इसका भी पता चल जाता है.
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हमारे एक मित्र की इच्छा थी (कई लोगों की होती है) कि उनका अपना एक घर हो. लेकिन जेब इजाजत नहीं देती थी.
लेकिन सोच थी. पैदा हुई तो बड़ी भी हुई. फिर युवा हो गई. फिर चंचल हो गई और आखिरकार उन्होंने लोन ले डाला. और घर बना लिया.
पैसे इतने खर्च हो गए कि चादर बहुत छोटी पड़ गई. लोन के अलावा यहां वहां से कर्ज भी लेना पड़ा. मन के आगे कहां किसी की चलती है.
उस समय लक्ष्य केवल मकान बनाने का था. सब कुछ आसानी से हो भी गया. लेकिन कर्ज का बोझ कहां पीछा छोड़ता है.
तनख्वाह के आधे पैसे किश्तों में जाने लगे. फिर बच्चों की पढ़ाई घर के खर्च अलग. समस्या बढ़ने लगी. फिर लोन और उधार ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन हो गया.
एक दबाव ने उनके जीवन को मुश्किल बना दिया. आजकल वे घर बेचने की बात करते हैं. नींद न आने की बात करते हैं. पैसों के गुणा भाग में ही लगे रहते हैं. नौकरी स्थायी नहीं है तो उसकी चिंता अलग.
सवाल ये है कि आखिर क्यों हम अपनी सच्चाई को छिपाते रहते हैं. अपने हालात से आगे जाकर निर्णय करते हैं और फिर जीवन भर परेशान होते रहते हैं.
जीवन का आनंद उसे जीने में है न कि उसे बोझ बना लेने में. जरूरतें हमने पैदा की हैं. कई बार तो हम भी नहीं बल्कि जरूरतें बाजार पैदा करता है. इसलिए थोड़ी सी समझ का इस्तेमाल करने में बड़ी भलाई है.
जरूरत केवल ये सोचने की है कि क्या ये जरूरत वाकई मेरे लिए जरूरी है.
इसका उत्तर ही आपकी आने वाली समस्याओं का समाधान है और मौजूदा वक्त की खुशी भी.
Excellent writing in hindi full of solutions in an easy way….Just reduce your needs….One of the thought belong s to Mahatma Gandhi….Keep writing…Thanks for valuable words..
Thnx Dheerji