sadhna Kahi sanyasi na bana de-आज उस सवाल का जिक्र करुंगा…..जिसे कई साथी सकुचाते हुए पूछते है और अधिकतर लोगो के जेहन मै यही सवाल होता है…..
सवाल है कही साधना का पथ हमें सांसारिक जीवन से दूर ना कर दे….अभी हम पर ढेरो जिम्मदारी है….
हम बाबा बन गए तो परिवार का क्या होगा….बस इसी का समाधान आज करना है……..आज मै जगदगुरु को समर्पित अपनी ही …..जीवन आनंद साधना की बात करुगा……
—- जीवन आनंद साधना ..जीवन मै….परिवार मै…सेहत मै ….और सम्रद्धता मै आनंद का भाव है
—- यह जीवन पथ से जुड़े सवालों का समाधान है….
—- यह अपने कर्म जीवन के साथ आध्यत्म जीवन का आत्मीय मेल है….प्रार्थना …साधना पथ का पहला कदम (Prarthana in hindi)
—- यह जीवन की उलझनों को सुलझाने की वो जादुई छड़ी है जो हमें जीवन पथ से ही विमुख करने मै लगी हुई है….
—- कई बार हम आध्यात्म के रहस्यों को समझने के लिए परिवार से विमुख होते जा रहे है…यह साधना उन रहस्यों का भी समाधान करेगी..
—- दुसरो का भला करो तो अपना भी होगा…..यह हम सब जानते है ….पर इसको करने का रास्ता नहीं पता….यह साधना बदलने का मार्ग ही बताएगी….
—- 100 मै से 85 फीसदी बीमारिया भीतर की है….इनको हम ही पालते है…पोषते है….बीज को वृक्ष बनाते है….और दुखी होते है…..बस इसका समाधान यह साधना है…..
sadhna Kahi sanyasi na bana de
—- सच तो यह है की ईश्वर हमारे भीतर ही है वो जगदगुरु हमें सब देने को आतुर है….पर हमें ठीक से मांगना भी नहीं आता है…..बस मांगने की कला ही तो बतानी है…..
अब आप बताये ….यह मार्ग क्या सन्यास का है….सबसे बड़ा सन्यास तो गृहस्थ जीवन मै अपनों के साथ मौज से जीने का है….
घर मै रहो तो परिजनों की खुशियों का केन्द्र बने …नौकरी और काम पर जायो तो सबके चहेते बने…बस इतना ही समझना है….
हमें साधना को ही तो समझना है… मांगने के भेद को समझना है….हम जगदगुरु यांनी इश्वर को भी बाहर ही ढूढ़ते है…..
और उनसे बाहरी जगत यानि भौतिकता के सारे साजो सामान के साथ प्रेम और शांति से जीने का आशीर्वाद मांगते है…..बस यही हम चुक करते है….सुकून, प्रेम और शांति भीतर का भाव है….
मांगना भीतर है और हम बाहर मांगते है…जीवन आनंद साधना ….भीतर का रास्ता है….जगदगुरु हमारे भीतर ही है….और यहाँ हम बाहरी नहीं भीतर का आनंद मागते है….
यानि हर हाल में हर पल आनंद मै रहने की कला समझते है….बाहर कैसे भी हालात हो पर भीतर हर पल एक सा समभाव रहे…
जीवन आनंद साधना मै हम यही समझेगे….हम मागने के रहस्य को समझेगे….जो हमें चाहिए वो हमें तभी मिलेगा जब हम हम उसे पुरे भाव से औरो को देगे….
उन भावो को समझेगे….बस इतना ही समझना है भीतर मौज आ गयी तो बाहर मौज ही देखेगी ….तब बाहर अपने लिए नहीं सारे जहां के लिए मांगेगे….
और यह भी तय है की जितना हम दुसरो के लिए मागेगे उससे कई ज्यादा इश्वर हमें देने को आतुर है
धन्यवाद
दिव्यराज दीपक
गहरा आध्यत्म दर्शन ।।।ॐ गुरवे नमः