Saccha Dharmik kon in hindi-कभी-कभी मेरी बात से आपको ऐसा लगता होगा की एक लेख में मैं जिस बात को कहता हूं । दूसरे लेख में उससें विपरीत बात को कह रहा हूं ।
सच्चा धर्म क्या है ।
अत: आपसे विनम्र निवेदन है कि उस समय मेरे शब्दों पर न जाकर जो मैं समझाने का प्रयत्न कर रहा हूं उस बात को समझना क्योंकि आध्यात्म को समझने के लिए मन को खुला रखना होगा तभी मैं जो कह रहा हूं
वह समझ में आयेगा जैसे ही मैं जो समझाना चाहता हूं वह बात समझ में आ जाए तो मुझे व मेरे शब्दों को भुल जाना।
अभ्यास में लग जाना तथा अपनी आत्मा का अनुभव करना इतिहास उठा के देख लो दुनियां में जितनी लड़ाईयां धर्म के नाम पर हुई है उतनी किसी बात पर नहीं।
धर्म के नाम पर लाखों मनुष्यों की बलि दी गई काफी नरसंहार हुआ तथा आज भी यही हो रहा है तथा आगे भी होता रहेगा।
क्या कभी सोचा ऐसा क्यों हो रहा है ?
धर्म तो प्रेम की धारा बहाने वाला है सभी धर्म कहते है प्रेम करों क्योंकि प्रेम ही परमात्मा है। परन्तु फिर वहीं धार्मिक मनुष्य को मारने में ज़रा भी संकोच नहीं करता ।
कोई किसी के धर्म के विरूद्ध कोई बात कह दे तो धर्म खतरे में पड़ जाता है लोग हथियार उठा लेते है तथा मानव धर्म को भुल जाते है।
एक धर्म का लड़का दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम करे तो उन बालको को एक दूसरे से दुर कर दिया जाता है या उन्हे मार दिया जाता है। मैंने पहले भी कहां है कि सारे धर्म सत्य पर आधारित है।
जिन्होंने उस धर्म की नींव रखी उन्होंने आत्म तत्व व परमात्मा का अनुभव किया तथा अपने ज्ञान को लोगो में बांटा।
कई धर्म इस पृथ्वी पर पनपे परन्तु जिन धर्मो ने शास्त्र नहीं रचे वह धर्म कमजोर हो कर समाप्त हो हए तथा जिन धर्मो ने शास्त्रों की रचना कि वह धर्म फैलते चले हए।
आजकल जो धर्म प्रचलित है वे किसी एक पुस्तक को पुजनीय समझते है तथा उसके आधार पर चलते है तथा उस पुस्तक में लिखी बात को सत्य मानते है
मनुष्य जीवन में धर्मो का महत्व -(Importance of religion in life in hindi )
कोई अन्य व्यक्ति उस पुस्तक में लिखी किसी बात के विरूद्ध कोई टिप्पणी कर दे तो उनका धर्म खतरे में पड़ जाता है।
तथा उस धर्म को मानने वाले मानव धर्म जो उनका मुल धर्म है भुल जाते है जबकि धर्म तो मानवजीवन को दिशा दिखाने के लिए है।
धर्म को जिया जाता है धारण किया जाता है ताकि मानव सुखी समपन्न बन सके तथा अपने जीवन में आनंद भर सके फिर ये विरोधाभ्यास क्यों ?
आज प्रचलित सारे धर्म कहते है विश्वास करो कि इस पुस्तक में लिखी प्रत्येक बात सत्य है तथा जो इस बात पर विश्वास न करे अर्थात जो ईश्वर को न माने तथा अपने धर्म का अनुसरण न करे उसे इस दुनिया में रहने का हक नहीं है।
मै मन से सारे धर्मो का आदर करता हूं मानता हूं कि धर्म ग्रन्थों ने ही हमें सही रास्ता दिखाया है।
ये ग्रंथ उन महापुरूषों का प्रसाद है जिन्होंने परमात्मा का अनुभव किया तथा उन्होंने ग्रंथ लिखा चूंकि वह परमात्मा तत्व से जुड़े हुए थे अत: हम कह सकते है कि उनके शरीर में बैठे परमात्मा ने उन ग्रन्थो को लिखा।
लेकिन आज यह हो रहा है कि हम ग्रन्थो का अर्थ अपने हिसाब से करते है।
उन महापुरूषों ने जो कहा उस बात को समझने के लिए हमारी मन:स्थिति उस लेवल की होनी चाहिए जो उन महापुरूषों की थी तभी हम उनकी कही बात को समझ सकेंगे।
Saccha Dharmik kon in hindi
परन्तु होता उसका उल्टा है। हम उन ग्रन्थो को हमारी जो “आईक्यू” है उसके आधार पर उसका अर्थ निकालते है परिणाम यह होता है कि उन्होंने कहा कुछ व हम समझते कुछ है।
हम धार्मिक तभी कहला सकते है जब हम हमारे धर्मो में बताए हुए रास्ते पर चल कर आत्मानुभव करे। यदि हम आत्मानुभव नहीं करते तो हम धार्मिक नहीं कहलाएंगे।
आज स्थिति यह हो गई है कि हम जिस परिवार में जन्म लेते है अर्थात माता-पिता का जो धर्म होता है उसे हम मानते है। Saccha Dharmik kon in hindi
धर्म के नियमों का पालन करते हुए हम मान लेते है कि हम धार्मिक हो गए परन्तु आप तब तक धार्मिक नहीं कहे जाएंगे जब तक आप अपने आत्म तत्व का अनुभव नहीं कर ले।
क्योंकि सही आध्यात्मिक यात्रा तो आत्म तत्व का बोध होने पर ही प्रारम्भ होती है।
जब आत्म तत्व का बोध हो जायेगा तो आप सबसे प्रेम करेंगे तथा चाहकर भी आप दूसरों से राग-द्वेश नहीं रख पायेंगे तथा आप में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना विकसित होगी तथा आप धार्मिक कहलायेंगे।
अर्थात धर्म को मानना नहीं है जानना है धर्म को जानना ही ज्ञान प्राप्त करना है
भगवान के नाम पर जितना भी खुन वहां है वह इसलिए की कोई भी व्यक्ति धर्म के मूल में नहीं गया। पूर्वज जैसा करते है आप भी वैसा करके संतुष्ट है
यदि किसी को आत्मानुभव या ईश्वरीय साक्षात्कार नहीं हुआ है तो उसको आत्म व ईश्वर के बारे में कहने का अधिकार नहीं है। क्योंकि वह जो कहेगा व सत्य नहीं होगा। क्योंकि उसने माना है जाना नहीं है।
उस व्यक्ति से नास्तिक अच्छा। अर्थात ढ़ोगी आस्तिक होने से तो नास्तिक होना अच्छा।
मैं आपको कितना भी उपदेश करू तथा आप उसको माने परन्तु जब तक साधना करके आत्म तत्व का अनुभव कर ले आप धार्मिक नहीं कहलायेगें।
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