what is yoga in hindi by jivandarshan

योग क्या है ? What is yoga in hindi ,योग का अर्थ ,प्रकार ।

what is yoga in hindi – भारतीय आध्यात्म के अनुसार योग का अर्थ है “ जुड़ना “। योग का आध्यात्मिक अर्थ है आत्मा का परमात्मा से जुड़ाव अर्थात एकाकार हो जाना।

योग को पॉच भागो में बांटा गया है।what is yoga in hindi

1) हठयोग
2) ध्यान योग
3) कर्मयोग
4) भक्तियोग
5) ज्ञानयोग

मनुष्य में पांच शक्तियां होती है उसके आधार पर यह विभाजन किया गया है।

जैसे-प्राणशक्ति का हठयोग से, मन शक्ति का ध्यान योग से, क्रिया शक्ति का कर्म योग से, बुद्धि शक्ति का ज्ञान योग से संबंध है।

इस संबंध के होने पर व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है।

महर्षि पातंजलि ने चित्त वृति के निरोध का योग कहा है।

उन्होंने योग के आठ अंग बताये हैः-

 1.यम,2.नियम3.आसन4.प्राणायाम,5.प्रत्यार,6.धारणा,7.ध्यान,8.समाधि।

उपरोक्त में पांच अंग बाहरी तथा तीन अंग भीतरी कहे गये है। जब कोई साधक अगले पांच में सफलता प्राप्त कर लेता है तो उसको अन्तिम तीन में प्रवेश की अनुमति है।

1. यम:-अहिंसा, सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन यम कहा जाता है।

2. नियम:- संतोष,तप,स्वाध्याय,पवित्रता और ईश्वर के प्रति चिंतन करने को नियम कहते है।

3. आसन:-सुविधापूर्वक एकाग्रचित्त और स्थिर बैठने को आसन कहा गया है।

4. प्राणायाम :- श्वास तथा नि:श्वास की गति को नियंत्रित कर रोकने व निकालने को प्राणायाम कहा गया है।

5. प्रत्याहार :-इंद्रियों को भौतिक विषयों से हटाकर चित्त में स्थिर करने कि क्रिया को धारणा कहते है।

6. धारणा :- चित्त को किसी एक विचार पर स्थिर करने की क्रिया को धारणा कहते है।

7. ध्यान :- जिस विचार पर चित्त लगा हो उस पर अपना पुरा ध्यान लगा दे तथा बाहरी प्रभावो से मुक्त हो जाय उसे ध्यान कहा जाता है।

8. समाधि :-जिसका ध्यान किया जा रहा है उसमें साधक इतना डूब जाय की उसे बाहय स्थिति का भान नहीं रहे उसे समाधि कहा गया है।

मैंने देखा कि ज्यादातर व्यक्ति यम, नियम,आसन,प्राणायाम व प्रत्याहार आदि में उलझे रहते है।

what is yoga in hindi

धारणा.ध्यान तथा समाधि की ओर उनका ध्यान नहीं जाता है। आध्यात्मिकता में सफल व्यक्ति नहीं कहां जायेगा जो समाधि में प्रवेश करेगा।

जैसे ही ध्यान परिपक्व होता है तथा साधक समाधि अवस्था में प्रवेश करता है वहीं से उसकी सच्ची आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ होती है।

समाधि अवस्था में देह का भान समाप्त हो जाता है तथा व्यक्ति की जब समाधि टुटती है

तो उसका शरीर हल्का महसुस होता है तथा समाधि अवस्था में जो आनन्द प्राप्त होता है उसकी तुलना में संसार के सारे आनंद गौण है ।

समाधि अवस्था में परमात्मा की टचिंग प्राप्त होती है। तथा परमात्मा की टचिंग प्राप्त होने पर व्यक्ति बदलने लगता है उसका नजरिया बदल जाता है तथा व्यक्ति यम-नियमों का पालन करने लगता है।

जबकि आध्यात्मिक मार्ग में चलने वाले 80 % व्यक्ति यम-नियमों में ही उलझे रह जाते है तथा उनका आध्यात्मिक विकास नहीं के बराबर होता है।

समाधि अवस्था प्राप्त व्यक्ति में समदृष्टि आती है तथा सबके प्रति प्रेम पैदा होता है।तथा प्रेम में व्यक्ति सदा यह चाहता है कि जिससे वह प्रेम करता है वह सुखी रहे ।

चुंकि आध्यात्मिक व्यक्ति सभी से प्रेम करता है अत: वह चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति सुखी हो तथा उसमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना विकसित होने लगती है।

यहां तक की वह जीव जंतुओ से भी प्रेम करने लगता है तथा उनका भला चाहता है।

समाधि अवस्था प्राप्त किये हुए साधक के पास जो भी बैठता है वह भी प्रेम के सागर में गोते लगाने लगता है। महावीर स्वामी की ओरा चौदह कोस तक फैली हुई थी महावीर स्वामी जहां बैठते उनके चौदह कोस तक हिंसक जीव हिंसा करना भुल जाते थे।

क्या अहिंसा का पालन सबको करना चाहिये ?

आप भी समाधि अवस्था प्राप्त करेंगे तो आपकी भी ओरा धीरे-धीरे बढ़ेगी। आपका ओरा जितना अधिक विकसित होगा उतना सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को लाभ होगा।

क्योंकि आपकी ओर उन व्यक्तियों के केंन्दों को जाग्रत करेगी।

आप ध्यान करते हुए समाधि अवस्था में पहुंच जायेगे तो आपके साथ सामुहिक ध्यान करने वाले साधको को भी विशेष लाभ होगा अर्थात उनका आध्यात्मिक विकास होगा।

अत: एक बार फिर में आपको याद दिलाना चाहता हूं कि किसी संत के पास बैठने का अवसर प्राप्त हो तो उसे कभी भी न छोड़े। संत के पास बैठना ही आप में परिवर्तन ला देगा।

संत की करूणामय दृष्टि जब आप पर पड़ेगी तो आपका बदलना तय है । ध्यान शिविरों में जब व्यक्ति जाता है तो उसे वहां स्वर्ग सा आनंद प्राप्त होता है

परन्तु जब शिविरो को छोड़ कर अपने घर वापस आता है तो धीरे-धीरे वापस संसारिक कार्यो में उलझ कर अपना आनंद खो बैठता है।

अत: घर पर आने के बाद भी योग शिविरों में जो सिखा है उसकी प्रेक्टिस न छोड़े आलस्य को हावी न होने दे ईश्वर ने आपको 24 घंटे दिये है उसमें से एक घंटा ईश्वर के निमित्त निकाले।

हमारे लिए दुसरे कार्य महत्वपूर्ण हो जाते है तथा ईश्वर का भजन गौण हो जाता है हमें सबसे ज्यादा महत्व ईश्वर भजन को ही देना चाहिये।

एक घंटा आप ईश्वर भजन में लगाते है तो आपको जो ऊर्जा प्राप्त होगी उससे बाकी के 23 घंटो में जो कार्य करेंगे वह अच्छे होंगे।

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