श्रीमद्भगवद्गीता – द्वितीय अध्याय :- श्लोक 4 व 5 अर्जुन उवाच कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन। इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।2.4।। अर्थः- अर्जुन बोले – हे
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अर्जुन रथ के पिछले भाग में क्यों चले गए ? अध्याय प्रथम का अंतिम श्लोक 47 सञ्जय उवाच एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्। विसृज्य सशरं चापं
क्या अर्जुन का युद्ध करने से मना करने का निर्णय सही था ? श्लोक 45 से 46 अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं
सनातन कुलधर्म तथा जाति धर्म क्या है ? श्लोक 43 से 44 दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः। उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।43।। अर्थः- इन वर्णसंकर कारक दोषों से
श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम श्लोक 41 से 42 पितरों की मुक्ति के लिए क्या करे ? अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।41।। अर्थः-
श्लोक 40 क्या प्राचीन परम्पराओं का पालन करना ही धर्म है ? कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।। 40।। अर्थः- कुल का नाश
श्लोक 38 से 39 टकराव की स्थिति में क्या समझदार व्यक्ति को भाग जाना चाहिए ? यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।38।।
अध्याय प्रथम श्लोक 36 से 37 क्या अर्जुन के मन में पक्षपात करने की भावना थी ? निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन। पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।।36।। अर्थः- हे
अध्याय प्रथम श्लोक 35 क्या अहिंसा का पालन सबको करना चाहिये ? एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।।35।। अर्थः- हे मधुसुदन
shrimad bhagwat geeta in hindi-अध्याय प्रथम श्लोक 33 से 34 अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था ? येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
अध्याय प्रथम श्लोक 31 से 32 मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं ऐसा अर्जुन ने क्यों कहां ? निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि
अध्याय प्रथम श्लोक 27 के उत्तरार्ध से श्लोक 30 तक युद्ध में अर्जुन कांपने लगा तथा उसके हाथ से धनुष भी गिर गया क्यों ?