श्लोक 40 क्या प्राचीन परम्पराओं का पालन करना ही धर्म है ? कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।। 40।। अर्थः- कुल का नाश
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श्रीमद् भगवत् गीता आपकी दुविधा को दुर करती है भगवान ने अर्जुन की मन की दुविधा को दुर किया उसी प्रकार यदि आप किसी भी प्रश्न का उत्तर चाहते है या मन दुविधा से ग्रस्त है आप निर्णय नहीं कर पा रहे है कि क्या करे या न करे तो गीताजी निश्चित ही आपका मार्गदर्शन करेगी।
श्लोक 38 से 39 टकराव की स्थिति में क्या समझदार व्यक्ति को भाग जाना चाहिए ? यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।38।।
1.ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया । कालेन बलिना राजन् नङ्क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥ अर्थ:- कलियुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और
अध्याय प्रथम श्लोक 36 से 37 क्या अर्जुन के मन में पक्षपात करने की भावना थी ? निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन। पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः।।36।। अर्थः- हे
अध्याय प्रथम श्लोक 35 क्या अहिंसा का पालन सबको करना चाहिये ? एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।।35।। अर्थः- हे मधुसुदन
shrimad bhagwat geeta in hindi-अध्याय प्रथम श्लोक 33 से 34 अर्जुन युद्ध क्यों नहीं करना चाहता था ? येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
अध्याय प्रथम श्लोक 31 से 32 मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं ऐसा अर्जुन ने क्यों कहां ? निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि
अध्याय प्रथम श्लोक 27 के उत्तरार्ध से श्लोक 30 तक युद्ध में अर्जुन कांपने लगा तथा उसके हाथ से धनुष भी गिर गया क्यों ?
अध्याय प्रथम (bhagvad geeta ka updesh in hindi) श्लोक 26 से 27 तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृ़नथ पितामहान्। आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ़न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।26।। श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि। तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ||27 का पूर्वार्ध||
श्री मद् भगवद्गीता प्रथम अध्याय – श्लोक 24 से 25 “एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत | सेनयोरूभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ||24|| भीष्मद्रोणप्रमुतः सर्वेशां च महीक्षिताम् | उवाच
प्रथम अध्याय – श्री मद् भगवद्गीता श्लोक 20 से 23 “अथ व्यवस्थितान्दृष्टा धार्तपराष्ट्रान् कपिध्वजः | प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरूघम्य पाण्डवः||20|| “हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते | सेन्योरूभयोर्मध्ये
श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय प्रथम-Benefits of shankh playing in hindi Benefits of shankh playing in hindi-प्रथम अध्याय – श्लोक 14 से 19 “तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने